पश्चिम उत्तर प्रदेश में आज एनडीए, इंडिया गठबंधन और बसपा का कड़ा इम्तिहान!

पश्चिम उत्तर प्रदेश में आज एनडीए, इंडिया गठबंधन और बसपा का कड़ा इम्तिहान!

भाजपा के सामने बढ़त बनाने तो विपक्ष के लिए गढ़ बचाने की चुनौती, पहले चरण की आठ सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले के आसार

लखनऊ, अप्रैल 19 (TNA) लगातार तीसरी बार दिल्ली की सत्ता पर काबिज होने के लिए भारतीय जनता पार्टी इस बार उत्तर प्रदेश में सभी 80 लोकसभा सीटें जीतने के लक्ष्य के साथ चुनाव मैदान में उतरी है। शुक्रवार को पहले चरण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आठ सीटों पर मतदान होने जा रहा है। पहले चरण में तकरीबन सभी आठों सीटों पर त्रिकोणीय मुकाबले के आसार दिखाई दे रहे हैं। जाटलैंड से लेकर रुहेलखंड तक कमल खिलाने के लिए भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।

दूसरी तरफ, विपक्ष ने भी पूरा दम लगा रखा है लेकिन विपक्षी एकजुटता न होने से भाजपा फायदे में नजर आ रही है। इस बार चुनाव में भाजपा के सामने जहां पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बढ़त लेने की चुनौती है वहीं विपक्ष के लिए गढ़ बचाने की चुनौती है। एक तरह से देखा जाए तो पहले चरण में एनडीए, इंडिया गठबंधन और बसपा का कड़ा इम्तिहान होने जा रहा है। पहला चरण इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है कि 2019 के आम चुनाव में इन आठ सीटों पर विपक्षी दल भाजपा पर भारी पड़े थे।

रालोद के एनडीए का हिस्सा बनने के बाद भाजपा को इस बार चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है तो वहीं कांग्रेस से गठजोड़ के बाद सपा ने भी इस क्षेत्र में पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) के समर्थन से अपनी सीटों में इजाफा करने की आस लगा रखी है। बसपा ने भी इन सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं इसलिए त्रिकोणीय मुकाबला हो गया है। जहां तक मतदाताओं तक पहुंच का सवाल है तो भाजपा-रालोद गठबंधन इसमें सपा-कांग्रेस गठबंधन से काफी आगे है।

पीएम मोदी, सीएम योगी और रालोद प्रमुख जयंत चौधरी से लेकर तमाम दिग्गज नेताओं ने इन सीटों पर अपने उम्मीदवारों के पक्ष में माहौल बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। कांग्रेस नेता राहुल गांधी, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, कांग्रेस की प्रियंका गांधी समेत विपक्ष के तमाम नेता भी प्रचार के लिए पहुंचे। अब गेंद मतदाताओं के पाले में है। शुक्रवार को इन आठ सीटों से किस्मत आजमा रहे उम्मीदवारों का भाग्य ईवीएम में कैद हो जाएगा।

पहले चरण में सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, कैराना, बिजनौर, नगीना, मुरादाबाद, रामपुर और पीलीभीत संसदीय सीट का चुनाव होने जा रहा है। ये सभी सीटें ऐसी हैं जहां जाट के साथ ही पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक मतदाता चुनाव नतीजे तय करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। पहले चरण की सीटों पर इस बार समीकरण बदले हुए हैं।

बीते दो चुनावों में सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ने वाला रालोद इस बार भाजपा के साथ है जबकि बसपा अकेले ही मैदान में है। सहारनपुर सीट पर भाजपा ने राघव लखनपाल पर फिर दांव लगाया है। 2019 में इस सीट पर बसपा के हाजी फजीलुर रहमान चुनाव जीते थे। इस बार बसपा ने माजिद अली को टिकट दिया है जबकि कांग्रेस ने इमरान मसूद को मैदान में उतारा है। कांग्रेस और बसपा से मुस्लिम उम्मीदवार के मैदान में होने का फायदा भाजपा को मिल सकता है।

मुजफ्फरनगर में भाजपा प्रत्याशी व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान जीत की हैट्रिक लगाने के लिए मैदान में हैं। रालोद के साथ आ जाने से समीकरण काफी हद तक उनके पक्ष में हैं लेकिन स्थानीय स्तर पर नेताओं के आपसी मतभेद सतह पर आ जाने से मतदाताओं के बीच अच्छा संदेश नहीं गया है। बालियान के सामने सपा ने हरेंद्र मलिक और बसपा के दारा सिंह प्रजापति मैदान में हैं। त्रिकोणीय चुनाव में भाजपा का पलड़ा भारी नजर आ रहा है।

कैराना सीट से भाजपा ने एक बार फिर प्रदीप चौधरी को चुनाव मैदान में उतारा है। प्रदीप चौधरी 2019 में 50 प्रतिशत से ज्यादा वोट प्राप्त करके जीते थे। दूसरी तरफ सपा ने इकरा हसन को टिकट दिया है। इकरा हसन कैराना के पूर्व सांसद मुनव्वर हसन की बेटी और कैराना के सपा विधायक नाहिद हसन की छोटी बहन हैं। इकरा हसन की मां भी सांसद रह चुकी हैं। बसपा से श्रीपाल राणा मैदान में हैं। इस सीट पर भी त्रिकोणीय मुकाबले में भाजपा का पलड़ा भारी दिखाई दे रहा है।

पीलीभीत से भाजपा ने इस बार वरुण गांधी का टिकट काटकर प्रदेश के लोक निर्माण मंत्री जितिन प्रसाद को अपना उम्मीदवार बनाया है। इंडिया गठबंधन की ओर से उनके सामने सपा प्रत्याशी भगवत सरन गंगवार मैदान में हैं। बसपा ने अनीस अहमद खां उर्फ फूलबाबू को टिकट दिया है। 2019 में यहां से वरुण गांधी बड़े अंतर से चुनाव जीते थे। यहां भी समीकरण भाजपा के पक्ष में ही नजर आ रहे हैं।

मुरादाबाद में पिछले आम चुनाव में सपा के एसटी हसन 97 हजार से ज्यादा मतों से जीते थे। इस बार सपा ने रुचि वीरा को टिकट दिया है जिन्हें इंडिया गठबंधन का उम्मीदवार भी बताया जा रहा है। इस सीट पर भाजपा ने पिछली बार चुनाव हारने वाले कुंवर सर्वेश सिंह को टिकट दिया है। बसपा ने इरफान सैफी को अपना प्रत्याशी बनाया है। सपा ने पहले मौजूदा सांसद एस.टी. हसन को टिकट दिया था और फिर उनका टिकट काटकर रुचि वीरा को मैदान में उतारा है। सपा के सामने इस सीट पर कब्जा बरकरार रखने की बड़ी चुनौती है जबकि भाजपा यहां से जीतने के लिए पूरा जोर लगाए हुए है। स्थानीय स्तर पर सपाइयों में चल रही खींचतान भाजपा के लिए फायदेमंद हो सकती है।

रामपुर सीट पर इस बार दिलचस्प मुकाबला दिखाई दे रहा है। 2019 में इस सीट से सपा के कद्दावर नेता मो. आजम खां चुनाव जीते थे लेकिन सजा हो जाने के कारण उन्हें सीट छोड़नी पड़ी थी। उपचुनाव में भाजपा के घनश्याम लोधी चुनाल जीते थे। भाजपा ने फिर घनश्याम लोधी को मैदान में उतारा है। उनके सामने सपा ने दिल्ली के इमाम मोहिबुल्ला नदवी को मैदान में उतारा है। इस सीट पर भी टिकट को लेकर पैदा हुआ विवाद सपा को भारी पड़ सकता है।

बसपा से जीशान खान को टिकट मिला है। अल्पसंख्यक बहुल इस इस सीट पर मुस्लिम मतों में विभाजन का फायदा भाजपा को मिल सकता है। वैसे भी आजम खां के प्रभाव वाली इस सीट पर कब्जा बरकरार रखन के लिए भाजपा कोई कसर बाकी नहीं रख रही है। सीएम योगी आदित्यनाथ समेत भाजपा के तमाम दिग्गज नेता इस सीट पर धुआंधार प्रचार कर चुके हैं।

भाजपा ने अपने नए-नए सहयोगी बने रालोद को बिजनौर सीट समझौते में दे रखी है। यहां से रालोद ने अपने विधायक चंदन चौहान को उतारा है। भाजपा और रालोद के संयुक्त प्रत्याशी के रूप में उनके पक्ष में ठीक-ठाक माहौल बना है। बिजनौर से सपा ने दीपक सैनी को प्रत्याशी बनाया है जबकि बसपा ने चौधरी विजेंद्र सिंह को टिकट दिया है। यहां से 2019 में बसपा के मलूक नागर ने सपा-बसपा के गठबंधन के प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीता था।

इस बार नगीना सीट पर मुकाबला बेहद दिलचस्प है। भाजपा, सपा, बसपा के साथ-साथ आजाद पार्टी के मैदान में आ जाने से मुकाबला कड़ा हो गया है। पिछले चुनाव में यह सीट बसपा के खाते में गई थी। इस बार बसपा ने सुरेंद्र पाल सिंह को मैदान में उतारा है। भाजपा ने ओम कुमार को टिकट दिया है जबकि सपा से मनोज कुमार को टिकट मिला है। आजाद समाज पार्टी के प्रमुख चंद्रशेखर भी इस सीट से किस्मत आजमा रहे हैं। इस सीट पर मुकाबला चतुष्कोणीय हो गया है।

2019 के चुनाव के नतीजे

जहां तक लोकसभा चुनाव 2019 के नतीजों का सवाल है तो यूपी में भाजपा को 2014 के मुकाबले नौ सीटों का नुकसान हुआ था और इनमें से भी अधिकतर सीटें पश्चिमी यूपी की थीं। पहले चरण की आठ सीटों की ही बात करें तो 2019 में भाजपा इनमें से केवल तीन सीटें पीलीभीत, कैराना और मुजफ्फरनगर ही जीत सकी थी। दो सीटें रामपुर और मुरादाबाद सपा तथा तीन सीटें सहारनपुर, नगीना और बिजनौर बसपा के खाते में आई थीं।

गठबंधनों की तस्वीर बदली, नए समीकरण

पिछले चुनाव से इस चुनाव तक उत्तर प्रदेश में गठबंधनों की तस्वीर बदल चुकी है। 2019 में सपा और बसपा के साथ जाट वोट बैंक वाली जयंत चौधरी की पार्टी रालोद भी विपक्षी गठबंधन का हिस्सा था। इस बार सपा का कांग्रेस से गठबंधन है लेकिन रालोद भाजपा के साथ है। बसपा किसी से गठबंधन किए बगैर अकेले चुनाव मैदान में है। नए समीकरणों में रालोद के साथ आने से अगर जाट वोट बैंक भाजपा के साथ जाता है और बसपा अपना वोट बैंक बचाने में कामयाब रहती है तो सपा-कांग्रेस गठबंधन की राह मुश्किल हो सकती है। अब मतदाता किस ओर जाते हैं इसका पता तो 4 जून को ही चलेगा।

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