तीसरी बार कितना शुभ होगा मेरठ से प्रधानमंत्री का चुनावी अभियान का शंखनाद ?

तीसरी बार कितना शुभ होगा मेरठ से प्रधानमंत्री का चुनावी अभियान का शंखनाद ?

पिछले दो लोकसभा के लिए मेरठ से ही प्रधानमंत्री के चुनावी अभियान का आगाज से मिली थी कामयाबी

लखनऊ, अप्रैल 1 (TNA) पिछले दो लोकसभा चुनाव में भी प्रधानमंत्री ने मेरठ से ही चुनावी अभियान का आगाज किया था और भाजपा को न केवल उत्तर प्रदेश में बड़ी कामयाबी मिली थी, बल्कि सरकार भी बनी थी। 2014 में जहां भाजपा को प्रदेश में 73 सीटें मिली थी, वहीं 2019 में 63 सीट हासिल हुई थी। रविवार को मेरठ की रैली में प्रधानमंत्री ने इसका जिक्र करते हुए कहा भी कि यहीं से पिछले दोनों लोकसभा के लिए चुनावी अभियान की शुरूआत की थी और दोनों चुनावों का परिणाम शुभ रहा। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि अबकी बार चार सौ पार के लक्ष्य के साथ चुनावी मैदान में उतरी भाजपा के लिए इस बार मेरठ कितना शुभ होगा?

2014 में जब अखिलेश, मायावती और जयंत चौधरी अलग अलग चुनाव लड़े थे तो भाजपा प्रत्याशी ज्यादातर सीटों पर बड़े अंतर से चुनाव जीते थे। वहीं 2019 में जब तीनों एक साथ मिलकर भाजपा के सामने चुनावी मुकाबले में उतरे तो भी भाजपा को कामयाबी मिली, लेकिन जीत का अंतर थोड़ा कम हो गया था। तब जबकि इस बार रालोद भाजपा के साथ है और बसपा अकेले ताल ठोक रही है। वहीं सपा और कांग्रेस का गठबंधन चुनावी मैदान में हैं।

इसमें महत्वपूर्ण तथ्य एक यह है कि राजनीतिक जानकार बसपा को इस बार जमीनी स्तर पर कमजोर मानकर चल रहे हैं। ऐसे में इस बार क्या जातीय समीकरण बनेगा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा को कितना फायदा होगा, इस पर भी सबकी नजर है।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जातीय समीकरण को देखें तो यहां मुसलमान एक बड़ा वोट बैंक है। इसकी संख्या औसतन 32 फीसदी मानी जाती है, जबकि अनुसूचित जाति के 26 फीसदी और जाट वोट 17 फीसदी बताए जाते हैं। पश्चिम की ढेर सारी सीटों पर यादव मतदाता भी निर्णायक स्थिति में रहे हैं। पश्चिम के राजनीतिक समीकरण की समझ रखने वालों का मानना है कि यहां जाट वोटर परिणाम बदलने में प्रमुख भूमिका अदा करते रहे हैं, और जिस ओर उनका का झुकाव होता है उधर जीत आसान हो जाती रही है, लेकिन इसमें उन्हें मुस्लिम वोटरों का भी साथ मिलता रहा है।

अब इस बार रालोद, जिसका जाट वोटरों पर सबसे ज्यादा प्रभाव है, वह भाजपा के साथ है। ऐसे में इस बार भी मुस्लिम वोटर उसके साथ जाएगा, उसकी संभावना नहीं दिखती है। वहीं किसान आंदोलन के चलते जाट वोटर भी रालोद के साथ किस स्तर तक जाएगा, यह भी देखने की बात होगी। दूसरी और सपा-कांग्रेस गठबंधन के चलते माना जा रहा है कि मुस्लिम वोटों का बंटवारा भी आसान नहीं होगा।

अगर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की 27 लोकसभा सीटों की बात करें तो पिछले चुनाव में भाजपा को 19 सीटों पर जीत हासिल हुई थी और सपा, बसपा और रालोद गठबंधन के खाते में आठ सीटें गई थीं। 2014 के चुनाव में भाजपा को जहां 24 सीटों पर कामयाबी मिली थी, वहीं समाजवादी पार्टी अकेले दम पर तीन सीटें जीत ली थी। बहुजन समाज पार्टी का तो खाता ही नहीं खुला था।

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