सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: राष्ट्रपति व राज्यपाल के बिल मंजूरी पर समयसीमा तय करना न्यायपालिका के दायरे से बाहर
नई दिल्ली, नवंबर 20 (TNA) राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत भेजे गए संदर्भ पर सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (20 नवंबर) को महत्वपूर्ण राय देते हुए साफ कहा कि वह अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राष्ट्रपति या राज्यपाल द्वारा विधेयकों पर निर्णय लेने की कोई समयसीमा तय नहीं कर सकता।
कोर्ट ने कहा कि "डिम्ड असेंट" यानी समय सीमा बीतने पर स्वीकृति मान लेना, संविधान की मूल भावना और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के विरुद्ध है। यह राज्यपाल या राष्ट्रपति के विशिष्ट अधिकारों में न्यायपालिका का अनुचित हस्तक्षेप होगा।
पीठ ने कहा, “डिम्ड असेंट की अवधारणा न्यायपालिका द्वारा कार्यपालिका के अधिकारों को अपने हाथ में लेने के समान है, जो हमारे लिखित संविधान में स्वीकार्य नहीं है।” हालांकि, कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि किसी बिल पर राज्यपाल द्वारा अत्यधिक या अकारण विलंब हो, जिससे विधायी प्रक्रिया बाधित हो रही हो, तो न्यायालय राज्यपाल को एक निश्चित समयावधि में निर्णय लेने का निर्देश दे सकता है, बशर्ते बिल की मेरिट पर कोई टिप्पणी न की जाए।
मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ (संदर्भ में BR Gavai का उल्लेख अद्यतन संरचना के अनुसार), जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर की पांच-judge संविधान पीठ ने इस मामले पर दस दिनों तक सुनवाई की थी और 11 सितंबर को राय सुरक्षित रखी थी।
यह राष्ट्रपति संदर्भ मई में तब भेजा गया जब दो-judge बेंच ने तमिलनाडु राज्यपाल मामले में राष्ट्रपति और राज्यपाल के लिए निर्धारित समयसीमा तय की थी।
