प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857: लखनऊ और भोपाल-दो शहरों की जुदा तदबीर!
क्या लखनऊ शहर की बर्बादी भोपाल का तरीका अपना कर बचाई जा सकती थी? क्या कोई मध्य मार्ग था? या आज़ादी की पहली लहर इस विनाश से भी कहीं ज्यादा श्रेयस्कर थी? ऐसे अनेक अनसुलझे सवालों पर आयोजित परिचर्चा , लखनऊ सैन्य -साहित्य -समारोह की आगे बढ़ रही श्रृंखला की दूसरी कड़ी का हिस्सा बनी ı
चर्चा में भाग लेते हुए ब्रिटेन की प्रसिद्ध लेखिका डॉ रोजी लेवोलीन और अवकाश प्राप्त जनरल मिलन नायडू ने अपनी पुस्तक निजाम- ऐ- भोपाल के संदर्भ में तत्कालीन इतिहास के कई रोचक विवरण दिए।
डॉक्टर रोजी लेवलइन ने उस समय के शासकों और सैनिकों की मनोदशा पर प्रकाश डालते हुए पुराने विध्वंस के चित्रों को आभासी माध्यम से उजागर करते हुए कहा कि लखनऊ शहर में 2 दिनों तक ब्रितानी सेना लूटपाट करती रही।
यह ब्रिटिश सेनापतियों का, अपने सैनिकों को शह देने का एक क्रूर तरीका कहा जा सकता है ı इस लूट में कुछ स्थानीय लड़ाके भी पाला बदलकर शामिल हो गए थे। डॉक्टर रोजी की नव प्रकाशित हो रही पुस्तक "लखनऊ -1857" मैं ऐसी बहुत सारी घटनाओं का तत्कालीन सामाजिक एवं ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में विश्लेषण किया गया है।
आभासी माध्यम से जुड़े जनरल नायडू ने, जो कि पूर्व में भारतीय सेना के उपाध्यक्ष रह चुके, हाल में ही अपनी पुस्तक निजाम -ए- भोपाल से संदर्भित कई पहलुओं पर चर्चा करते हुए कहा कि तत्कालीन व्यवस्था में धार्मिक आधार पर राज्यों के भौगोलिक विस्तार का चलन नहीं था बल्कि, अन्य कारण, जैसे प्रचुर संपत्ति, भूभाग पर कब्जा इत्यादि हुआ करते थे। भोपाल रियासत की फौजों का गठन बाहरी लोगों को शामिल करके किया गया था। उसमें एक अफगानी सैनिकों की भी बटालियन थी जिसे विलायती पलटन के नाम से जाना जाता था।
संगोष्ठी का संचालन लखनऊ की जानी-मानी लेखिका,पत्रकार एवं मीडिया कर्मी सुश्री मेहरू जाफर ने किया ı उनके खोजी सवाल चर्चा को जीवंत बनाने में सफल रहे। तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था में महिला सशक्तिकरण के प्रतीकात्मक स्वरूप में बेगम हजरत महल की राजनीति एवं सैन्य दृढ़ता बरतानी सेनाओं के लिए चुनौती बनी रहे । यद्यपि नवाब वाजिद अली शाह ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के समय कोलकाता में बैठकर अंग्रेजी हुकूमत के मन मुताबिक ही कार्य किया।
कार्यक्रम का प्रारंभ लखनऊ सैन्य साहित्य के प्रणेता, मेजर जनरल हेमंत कुमार सिंह ने सभी वक्ताओं का स्वागत करके किया। उन्होंने इस साहित्य सम्मेलन के चल रहे कार्यक्रमों की रूपरेखा पर संक्षिप्त प्रकाश डालते हुए बताया की स्वतंत्रता -दिवस से प्रारंभ इस आयोजन के विषय क्रमशः आज़ादी, मुक्ति, बलिदान और स्मृतियाँ हैं। उद्घाटन माह में अभी तक 2 कार्यक्रम हो चुके हैं और दो आगामी सप्ताह अंत तक होने शेष हैं।
-- बसंत नारायण
(लेखक अवकाश प्राप्त सैन्य अधिकारी हैं)