आरक्षित सीटों पर जिसने फहराया परचम, उसकी बनी सरकार

आरक्षित सीटों पर जिसने फहराया परचम, उसकी बनी सरकार

दो बार से यूपी में सुरक्षित सीटों पर सफल नहीं हो रही सपा और बसपा!

लखनऊ, अप्रैल 4 (TNA) अपनी सोशल इंजीनियरिंग के मार्फत सूबे में स्पष्ट बहुमत की सरकार बनने में सफल रहने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) लोकसभा चुनावों में अनुसूचित जाति और जन जाति के लिए आरक्षित सीटों पर अब सफल नहीं हो पा रही है. बीते दो लोकसभा चुनावों में सूबे की 17 आरक्षित सीटों में से अधिकांश पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने एकतरफा कब्जा जमाया है. भाजपा ने वर्ष 2014 में सभी 17 आरक्षित सीटों पर और फिर वर्ष 2019 में 17 आरक्षित सीटों में से 14 सीटों पर जीत दर्ज की थी.

अब फिर भाजपा सूबे की सभी 17 आरक्षित सीटों पर अपनी विजय पताका फहराने की कवायद में जुट गई है. पार्टी ने इस सीटों पर जीत हासिल करने के लिए बूथ स्तर पर अपने नेटवर्क को मजबूत करते हुए 70 फीसदी से अधिक मतदान आरक्षित सीटों पर कराने का लक्ष्य रखा है. पार्टी नेताओं का मत है, आरक्षित सीटों पर अधिक होने ने उनकी प्रत्याशी की जीत सुनिश्चित होती है. भाजपा के इस गुणा गणित के आधार पर सूबे की सभी 17 सीटों पर सपा और बसपा के नेता भी अपने जातीय समीकरण को दुरुस्त करते हुए अपनी-अपनी किलेबंदी में जुटे हैं.

आरक्षित सीटों का इतिहास

उत्तर प्रदेश से उत्तराखंड के बंटवारे से पहले सूबे में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए लोकसभा की (18) सीटें आरक्षित थी. उत्तराखंड बनने के बाद एक सीट कम हो गई और अब यूपी में कुल 17 आरक्षित सीटें हैं. बीते चार लोकसभा चुनावों के आंकड़े देखे तो यूपी में वर्ष 2004 के लोकसभा चुनावों में सपा को सात, बसपा को पांच, भाजपा को तीन, कांग्रेस को एक और राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) को एक सीट पर जीत हासिल हुई थी.

जबकि वर्ष 2009 के लोकसभा चुनावों में सपा को 10, बसपा को दो, भाजपा को दो, कांग्रेस को दो और रालोद को एक सीट पर जीत मिली थी. वर्ष 2014 और वर्ष 2019 के चुनावों में भाजपा ने आरक्षित सीटों पर एकतरफा जीत हासिल कर यह साबित कर दिया कि सबसे अधिक आरक्षित सीटों जीत हासिल करने वाला दल सी सत्ता शीर्ष पर काबिज होता है.

यूपी विधानसभा के नतीजे भी यही साबित करते हैं. यूपी में विधानसभा ही 76 आरक्षित सीटें हैं. इन सीटों के चुनावी आंकड़ों के मुताबिक यूपी में वर्ष 2017 में बसपा ने सबसे अधिक 61 सीटें जीती और सूबे की सत्ता पर काबिज हुई. फिर वर्ष 2012 में सपा ने सबसे अधिक 58 आरक्षित सीटें विधानसभा में जीती और सरकार बनाई. इसके बाद भाजपा ने वर्ष 2017 में 70 और वर्ष 2022 में 65 आरक्षित सीटें जीती और सरकार बनाई.

सुरक्षित सीटों को जीतने की किलेबंदी

यूपी में नगीना, बुलंदशहर, हाथरस, आगरा, शाहजहांपुर, हरदोई, मिश्रिख, मोहनलालगंज, इटावा, जालौन, कौशांबी, बाराबंकी, बहराइच, बांसगांव, लालगंज, मछलीशहर और राबर्ट्सगंज मौजूदा वक्त में आरक्षित (रिजर्व) सीटें हैं. बीते लोकसभा चुनाव में बसपा ने लालगंज और नगीना सीट पर जीत दर्ज की थी. जबकि भाजपा ने 14 और अपना दल (एस) के एक सीट पर जीत हासिल की थी. आरक्षित सीटों पर सभी दलों को दलित प्रत्याशी उतारने होते हैं. ऐसे में दलित समाज में भी खास वर्ग को अपने पाले में लाने की कोशिश हर दल करने में जुटा हुआ है.

नगीना,बुलंदशहर, आगरा, हाथरस,इटावा, जालौन, मिश्रिख, मोहनलालगंज, शाहजहांपुर सीट पर प्रमुख दलों ने अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं. फिलहाल अब सूबे की 29.04 प्रतिशत दलित आबादी को सपा ने अपने पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) फार्मूले के जरिए उनका हितैषी होने का संदेश दिया है. भाजपा भी अपने सहयोगी दलों के जरिए यह बता रही है कि वह दलित समाज का खास ख्याल रखती है. बसपा तो शुरू से ही इस वर्ग पर फोकस करती रही है. अब देखना यह है कि सूबे की 17 आरक्षित सीटों पर इस बार बाजी किस दल के हाथ लगती है.

-- राजेंद्र कुमार

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