अलीगढ़ शराब कांड: सत्ता के सियासत में दब गई पीड़ित परिवारों की सिसकियां

अलीगढ़ शराब कांड: सत्ता के सियासत में दब गई पीड़ित परिवारों की सिसकियां

लखनऊ, जून ७, २०२१ ।। उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में जहरीली शराब से मरनेवालों का आंकड़ा 108 तक पहुंच गया है। अभी भी दर्जन भर लोग जीवन व मौत से जूझ रहे हैं। राज्य में हाल के वर्षों में शराब से मौत की अबतक की यह बड़ी घटना कही जा रही है। इसके बावजूद हालात यह है कि सैकड़ों परिवारों की तबाही के चलते उठ रही उनकी सिसकियों की आवाज आज सत्ता के सियासत में दब सी गई है। ये आरोप विपक्षी दल भी लगाने लगे हैं।

यह बातें अनायास ही नहीं कही जा रही है। अलीगढ़ के टप्पल और अकराबाद थाना क्षेत्र में गत 28 मई से शुरू हुआ जहरीली शराब पीने से मौतों का सिलसिला कई दिनों तक जारी रहा। कोरोना से कहर के वक्त में जहरीली शराब से मौत को लेकर प्रशासन भी शुरुआती दिनों में अनजान बना रहा। तेजी से मौत की संख्या बढ़ने के बाद हर बार की तरह प्रशासन हरकत में आया। प्रशासनिक कारवाई के साथ मुकदमा दर्ज कर अफसरों ने मामले की इतिश्री करने की कोशिश की।

लेकिन मौत व तबाही की संख्या अनुमान से अधिक हो जाने पर आखिरकार सरकार की कुछ पल के लिए नींद खुली। संबंधित अधिकारियों के निलंबन समेत अन्य कई कारवाईयां की गई। खास बात यह है कि ऐसे मामलों की पुनरावृति न हो,इस लिहाज से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अपने मिजाज के अनुसार कारवाई करते नहीं दिखे। जैसा कि उन्होंने अपने कार्यकाल में कई अन्य मामलों में सख्ती दिखाई है।

यहां ध्यान देनेवाली बात यह है कि ऐसी घटनाओं में आमतौर पर मरने वाले गरीब वर्ग के होते हैं। योगी सरकार को सत्ता में लाने में इन तबके के लोगों ने सर्वाधिक विश्वास जताया। इसके बावजूद पुनरावृति रोकने को लेकर क्यों नहीं कारगर कदम उठाए जाते हैं। इसको लेकर सवाल उठा रहे लोगों का कहना है कि कहीं ना कहीं शराब के अवैध धंधे में जुटे लोगों का पुलिस, संबंधित विभाग से लेकर शासन तक पैठ होती है।

अलीगढ़ शराब कांड में भी देखने को मिला कि मुख्य अभियुक्त ऋषि शर्मा बीजेपी का नेता है। लगातार विफलताओं से घिरी सरकार को इसकी गिरफ्तारी के लिए सभी हथकंडा अपना पड़ा। अब गिरफ्तारी के बाद सरकार उसे कानून से सजा दिला पाती है कि नहीं यह तो समय ही बताएगा।

समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव व पूर्व सांसद रमाशंकर राजभर कहते हैं कि ढीली कानूनी प्रक्रिया का लाभ उठाते हुए अभियुक्त आमतौर पर छूट जाते हैं। इसके पीछे संरक्षण देने में पुलिस, प्रशासन, माफिया व सत्ता का गठजोड़ काम करता है।वे कहते हैं कि शराब के अवैध कारोबार को रोकने के लिए कभी ठोस कदम उठाया ही नहीं गया। किराना की दुकानों पर छापा मारकर विभागीय टीम खाद्य सामग्रियों की सैंपलिंग करती है।

शराब की दुकानों पर भी दबिश डालकर विभाग जांच की कारवाई क्यों नहीं करता। अगर ईमानदारी से कार्रवाई हुई होती तो अलीगढ़ में शराब से मौत की ऐसी घटनाएं नहीं होती। सैकड़ों परिवारों की तबाही के बाद सरकार आरोपियों पर गैंगस्टर व एनएसी लगाने की बात कर रही है। नदियों के किनारे द्वाबा क्षेत्र में कच्ची शराब निर्माण का धंधा जोरों पर चलता है।

जिसके खिलाफ कार्रवाई के नाम पर निर्माण में लगे कुछ मजदूरों को गिरफ्तार किया जाता है लेकिन अवैध कारोबार का मुख्य धंधेबाज गिरफ्तार नहीं हो पाता है। ऐसे मामलों में रोक के लिए शासन को यह तय करना चाहिए कि जहां भी ऐसे मामले आएंगे, उस सर्किल के दरोगा पर कार्यवाही होगी।

सपा महासचिव कहतें हैं कि यह सरकार इंसाफ दिलाने के बजाय हमेशा लोगों को बरगलाने का काम करती है। कोरोना तो दुर्भाग्य पूर्ण मामला है, पर शराब से हो रही मौत के लिए सिस्टम पूरी तरह जिम्मेदार है।

शराब व कोरोना से हो रही मौत, गंगा में तैरती लाशें व सरकार की खिसकती जमीन से ध्यान हटाने के लिए मुख्यमंत्री से लेकर मंत्रिमंडल में फेरबदल जैसी कयास आधारित खबरों को प्री-प्लांड तरीके से मीडिया में उछाला जा रहा है। जिससे राज्य की जनता को कोई लेना देना नहीं है। सच्चाई तो यह है कि बीजेपी के गिरते जनाधार से परेशान होकर इसके 125 विधायक दल छोड़ने की तैयारी में हैं।

कांग्रेस पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू भी सरकारी संरक्षण में शराब के अवैध धंधा की बात करते हैं । उनका कहना है कि आबकारी विभाग-पुलिस और शराब माफियाओं की मिलीभगत से प्रदेश में करीब 10 हजार करोड़ के अवैध शराब का कारोबार का चल रहा है। इसका कारोबार करने वालों पर पुलिस प्रशासन और आबकारी विभाग का संरक्षण प्राप्त है।

वे कहते हैं, ज़हरीली शराब पीने से उत्तर प्रदेश में पिछले चार सालों में 400 से अधिक लोगों की जान जा चुकी है। लेकिन प्रदेश सरकार ज़हरीली शराब के उत्पादन को रोकने में असफ़ल है। योगी सरकार द्वारा ज़हरीली शराब के कारोबारियों के विरुद्ध कार्रवाई न करना यह साबित करता है कि शराब के अवैध कारोबारियों को प्रदेश सरकार का संरक्षण मिला हुआ है।

सरकार यदि पूर्व में हुईं ज़हरीली शराब से मौतों को लेकर संवेदनशील होती और अवैध शराब कारोबारियों पर सख्त कार्रवाई की गयी होती तो आज अलीगढ़ में हुईं मौतों को रोका जा सकता था। इसलिए अलीगढ़ में हुई मौतों के लिए योगी आदित्यनाथ की भाजपा सरकार ज़िम्मेदार है।

राष्ट्रीय लोकदल के राष्ट्रीय महासचिव अनिल दुबे के अनुसार प्रदेश की भाजपा सरकार में ज़हरीली शराब के अवैध कारोबार को रोकने में असफ़ल रही है। प्रदेश में कई दर्जनों हादसे हुए और सैकड़ों जाने चली गई, लेकिन सिर्फ़ औपचारिक कार्रवाई हो कर मामला ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। अलीगढ़ मामले में सम्मिलित सभी पुलिस व आबकारी विभाग के अधिकारियों को बर्खास्त किया जाना चाहिए।

मृतक परिवारों को राहत पहुंचाने के बजाय सरकार को अपनी छवि सुधारने की चिंता

शराब कांड से तबाह हुए परिवार को राहत पहुंचाने के बजाय सरकार की पहली चिंता अपनी छबि में सुधार लाने की है। कोरोना की दूसरी लहर अभी ठंडी भी नहीं पड़ी थी कि सरकार आने वाले वर्ष में होने वाले चुनावों की तैयारी में जुट गई है। इसको लेकर दिल्ली में हुई पहली बैठक व इसके चले लंबे मंथन की खबरें मीडिया के सुर्खियों में आ गई।

इस मंथन के चलते कभी मुख्यमंत्री तो कभी उप मुख्यमंत्री सहित मंत्रिमंडल में फेरबदल की खबरें चर्चा में बनी रही। यह सिलसिला अभी भी चल रहा है। ये सारी कवायदें भाजपा एक बार फिर यूपी में अपनी सत्ता को बरकरार रखने के लिए कर रही है। जिससे प्रदेश की जनता को सही मायने में कोई लेना देना नही है। आखिरकार इसका असर यह हुआ कि जहरीली शराब से मौत की खबरें सियासत की उठा पटक के आगे ओझल होती चली गई।

योगीराज में जहरीली शराब से मौत का चलता रहा है सिलसिला

प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों से ज़हरीली शराब पीने से लोगों के मरने की ख़बरें आती रही हैं। अभी पिछले महीने 28 अप्रैल को हाथरस ज़िले में कथित रूप से ज़हरीली शराब पीने से 5 लोगों की मौत हो गई थी।

हाथरस मामले में लापरवाही बरतने के आरोप में एक दारोगा तथा एक सिपाही को निलंबित कर दिया गया था और शराब बेचने वाले शख्स को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। प्रतापगढ़ में कथित तौर पर ज़हरीली शराब पीने से फ़रवरी में, पूर्व प्रधान सहित 6 लोगों की मौत हो गई। ज़िले में 24 फ़रवरी को तीन और 25 फ़रवरी को भी तीन लोगों की मौत हुई थी।

अंबेडकरनगर, आजमगढ़बदायूं, ज़िलों में ज़हरीली शराब पीने से अब तक 26 लोगों की मौत हो चुकी है। इसके अलावा लोगों में आंख की रौशनी चले जाने की बात सामने आई। इस वर्ष की शुरुवात में बुलंदशहर में 8 जनवरी को 5 लोगों की ज़हरीली शराब पीने से मौत हो गई थी। यह इस वर्ष का पहला मामला था। लेकिन ज़हरीली शराब सालों से घरों को बर्बाद कर रही है। साल 2020 में भी ज़हरीली शराब पीने से बड़ी संख्या में लोगों की मौत हुई थी।

पिछले वर्ष नवंबर में ज़हरीली शराब से प्रदेश में क़रीब 15 लोग मारे गये थे। राजधानी लखनऊ के बंथरा इलाक़े में 13 नवंबर को ज़हरीली शराब पीने से 6 लोगों की मौत हो गयी। इसके चार दिन बाद 17 नवंबर को फिरोजाबाद ज़िले खैरागढ़ क्षेत्र के शेखपुरा गांव में ज़हरीली शराब से 3 लोगों की जान गई। इस महीने में ही 21 नवंबर को प्रयागराज के फूलपुर में 6 लोगों की ज़हरीली शराब पीने से जान चली गयी। मेरठ और बागपत में 10 सितंबर 2020 को ज़हरीली शराब की वजह से 7 लोग मर गये।

मरने वालों में बागपत के चांदीनगर क्षेत्र के चमरावल गाँव के 5 लोग और मेरठ के जानी के 2 लोग थे। कानपुर के घाटमपुर में ज़हरीली शराब पीने से 12 अप्रैल 2020 को 2 लोगों की मौत हुई। अगर आबकारी विभाग और प्रशासन के आँकड़ों की बात करें तो 2017 में 18 लोगों की मौत, 2018 में 17 लोगों की मौत ज़हरीली शराब से हुई।

प्रदेश में जब भी ज़हरीली शराब से कोई त्रासदी होती है तो शासन प्रशासन द्वारा जांच समितियां बना दी जाती हैं। समितियां की रिपोर्ट के बारे में किसी को कुछ नहीं मालूम होता है। अगर त्रासदी बड़ी हो जाए तो, मामले को संभालने के लिए, पुलिस और आबकारी विभाग के एक-दो अधिकारियों को निलंबित या तबादला कर दिया जाता है। जिनमें से ज़्यादातर बाद में बहाल हो जाते हैं। अवैध शराब का कारोबार वैसे ही चलता रहता है, उसमें कमी आती नहीं दिखती।

(लेखक देवरिया स्थित पत्रकार हैं, विचार उनके निजी हैं)

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