बिहार के बाहुबली शहाबुद्दीन की विरासत शहाब के हाथ, तेजस्वी के साथ हाथ बढ़ाएंगे या ओवैसी से नाता जोड़ेंगे?

बिहार के बाहुबली शहाबुद्दीन की विरासत शहाब के हाथ, तेजस्वी के साथ हाथ बढ़ाएंगे या ओवैसी से नाता जोड़ेंगे?

पटना। बिहार की राजनीति में नब्बे के दशक में लालू राज की शुरुआत होती है। इसे समाजिक न्याय के प्रतिक के रूप में तो किसी की नजर में जंगलराज के रूप में देखा गया। इसी दौर में अपराध से राजनीति का रास्ता तय किया मोहम्मद शहाबुद्दीन ने। अपने राजनीतिक दुश्मनों की खिलाफ जंग में किसी हद तक जाने को तैयार रहने वाले शहाबुद्दीन ने कभी हार मानना नहीं सिखा। लेकिन कोरोना जैसी महामारी के आगे हार गए। उनके मौत के बाद चालीसा का रस्म बीतते ही उनके इकलौते पुत्र ओसामा शहाब के प्रति लगातार संवेदना जताने व राजनीति का कदम साथ में बढ़ाने का भरोसा जताने गैर भाजपा दलों के नेता हर दिन आ रहे हैं। ऐसे में बिहार की राजनीति में अल्पसंख्यक वोट बैंक का प्रमुख चेहरा रहे शहाबुद्दीन परिवार के लालू तेजस्वी से नाराजगी की लगाई जा रही अटकलों के बीच उनका अगला कदम क्या होगा ? वे तेजस्वी के साथ हाथ बढ़ाएंगे या ओवैसी से नाता जोड़ेंगे।

बिहार में मोहम्मद शहाबुद्दीन एक ऐसा नाम है जिसे शायद ही कोई न जानता हो। प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद की धरती 90 के दशक में शहाबुद्दीन के कारनामों के चलते जाना जाने लगी। सीवान जिले के प्रतापपुर गांव के शहाबुद्दीन ने महाविद्यालय से ही राजनीति में प्रवेश कर लिया। कॉलेज के दिनों से ही दबंगई के चर्चे आम थे। महज 21 साल की उम्र में शहाबुद्दीन के खिलाफ सीवान के एक थाने में पहला मामला दर्ज हुआ था। देखते ही देखते शहाबुद्दीन सीवान के मोस्ट वांटेड क्रिमिनल बन गए। शहाबुद्दीन पर उम्र से भी ज्यादा 56 मुकदमे दर्ज हुए। इनमें से 6 में सजा हो गई। भाकपा माले के कार्यकर्ता छोटेलाल गुप्ता के अपहरण व हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा मौत के अंतिम समय तक भुगतते रहे।

रिकॉर्ड के मुताबिक उन पर पहली प्राथमिकी 1986 में सीवान जिले के हुसैनगंज थाने में दर्ज हुई थी। उसके बाद तो उनकी छवि ऐसी बनी कि लोग सरेराह उनका नाम लेना भी मुनासिब नहीं समझते थे। चुनाव लड़ने के दौरान सीवान शहर में शहाबुद्दीन की पार्टी को छोड़कर दूसरे किसी प्रत्याशी का झंडा लगाने की हिम्मत किसी को नहीं होती थी। शहाबुद्दीन पर हत्या, अपहरण और हत्या रंगदारी के दर्जनों मुकदमें जुड़ते गये। यह सीवान की सीट से चार बार संसद सदस्य एवं दो बार विधायक चुने गए। 2004 में जेल से चुनाव लड़े और जीते।

सीवान जिले के जिरादेई विधानसभा से वह पहली बार जनता दल के टिकट पर विधानसभा पहुंचे। तब वह सबसे कम उम्र के जनप्रतिनिधि थे। दोबारा उसी सीट से 1995 में चुनाव में जीत दर्ज की। 1996 में वह पहली बार सीवान से लोकसभा के लिए चुने गए। एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व वाली सरकार में उन्हें गृह राज्य मंत्री बनाए जाने की बात चर्चा में ही आई थी कि मीडिया में शहाबुद्दीन के आपराधिक रिकॉर्ड की खबरें छपीं। इस प्रकार उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल करने का मामला पीछे रह गया।

शहाबुद्दीन की जिंदगी का जेल में ही हो गया अंत

राजनीति के क्षेत्र में बढ़ते सफर के बीच अपराध के तमाम मामलों में ट्रायल के दौरान आखिरकार शहाबुद्दीन को 2005 में दिल्ली में गिरफ्तार कर लिया गया। 2009 में इन्हें चुनाव लड़ने से वंचित कर दिया गया। 11 सितंबर 2016 को जमानत पर बाहर निकले। 30 सितम्बर 2016 को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत रद्द कर दी। इसके बाद से तिहाड़ जेल में अंतिम समय तक बंद रहे।इस दौरान कोरोना का संक्रमण होने पर दिल्ली स्थित दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल में भर्ती कराया गया। जहां 1 मई को अंतिम सांस ली।

शहाबुद्दीन जब अपने पूरे शबाब पर थे तब सिवान में उनकी अलग समानंतर सरकार चलती थी। आलम यह था कि कोई झगड़ा या जमीन बंटवारा के मामले में बिहार पुलिस और प्रशासन अलग कार्रवाई करती थी, वहीं शहाबुद्दीन की अलग न्याय प्रक्रिया चलती थी।

जनाजे में शामिल होने लालू प्रसाद यादव के परिवार का नहीं आया कोई सदस्य

तीन दशक तक बिहार की राजनीति में एक ऐसा नाम लोगों के जुबान पर रही।जिसे चाहने वाले से लेकर नफरत करने वालों की बड़ी तादाद रही है। उनके अपने शहाबुद्दीन साहब कहते थे वही नफरत करने वालों के नजर में बाहुबली मोहम्मद शहाबुद्दीन। जब तक सक्रिय राजनीति में रहे तब तक लालू यादव के सबसे बड़े दुलारे रहे। कोरोना से मौत हो जाने पर जनाजे में शामिल होने लालू प्रसाद यादव के परिवार का कोई सदस्य तक नहीं आया । जिसको लेकर शहाबुद्दीन समर्थकों में नाराजगी अभी भी बरकरार है। शहाबुद्दीन का शव सिवान लाने में असफल रहने का गंभीर आरोप लगाकर पार्टी के प्रदेश उपाध्‍यक्ष और बिहार विधान परिषद के सभापति रह चुके सलीम परवजे और पार्टी के तकनीकी प्रकोष्ठ के प्रदेश सचिव मो. शोहराब कुरैशी ने इस्तीफा दे दिया।

सत्ता व विपक्ष के हमेशा निगाह पर रहे शहाबुद्दीन

पूर्व सांसद डॉक्टर मोहम्मद शहाबुद्दीन ने मुजफ्फरपुर के बीआर अम्बेडकर विश्वविद्यालय से पोलिटिकल साइंस में पीएचडी की डिग्री हासिल की थी। वे किसी के नज़र में बाहुबली तो किसी के नज़र में एक विकास पुरुष के रूप में रहे। बिहार के आधा दर्जन जिलों की राजनीति तय करने में शहाबुद्दीन की बड़ी भूमिका मानी जाती थी।

राबड़ी देवी की सरकार बनाने में शहाबुद्दीन के मदद की चर्चा हमेशा होती रही है। उधर विपक्ष के लिए भी शहाबुद्दीन ही मुद्दा रहे। प्रधान मंत्री और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के राजनितिक सभाओ तक मे भी शहाबुद्दीन का ही नाम चलता रहा।

ओसामा शहाब का साहेब बनना आसान नहीं

सिवान के लोग बताते हैं कि मौजूदा दौर में दूसरा मोहम्मद शहाबुद्दीन बनना नामुमकिन लगता है। वे कहते हैं कि शहाबुद्दीन जब अपने पूरे शबाब पर थे तब सिवान में उनकी अलग समानंतर सरकार चलती थी। आलम यह था कि कोई झगड़ा या जमीन बंटवारा के मामले में बिहार पुलिस और प्रशासन अलग कार्रवाई करती थी, वहीं शहाबुद्दीन की अलग न्याय प्रक्रिया चलती थी।

बातचीत के दौरान पता चलता है कि जिले के गांवों में सैकड़ों ऐसे मामले हैं जिसमें दो भाइयों का विवाद होने पर उन्होंने पुलिस प्रशासन का फैसला नहीं स्वीकार किया, लेकिन शहाबुद्दीन की हवेली से सुनाए गए फैसले पर दोनों पक्ष बिना किसी झिझक के राजी हो जाते। ऐसी ही तमाम घटनाओं को देखते हुए इलाके के लोग मोहम्मद शहाबुद्दीन को साहेब कहकर संबोधित करते। अब उनकी मौत के बाद लोग कहते हैं कि सिवान में दूसरा साहेब बनना आसान नहीं है।

ओवैसी की पार्टी के सभी विधायकों ने ओसामा से की मुलाकात

ओवैसी की पार्टी एआइएमआइएम के सभी पांच विधायकों ने 3 दिन पूर्व दिवंगत पूर्व सांसद शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब से मुलाकात की। ये बैठक एक बंद कमरे में करीब एक घंटे तक हुई। इस दौरान क्या बात हुई ये अभी पूरी तरह से साफ नहीं हुआ, लेकिन चर्चाओं का दौर जरूर शुरू हो गया। प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल इमाम ने कहा कि दिवंगत सांसद मो. शहाबुद्दीन से एआइएमआइएम प्रमुख औवेसी से काफी अच्छे संबंध रहे हैं। शहाबुद्दीन का असमय निधन से आरजेडी को ही नहीं, बल्कि दलितों, मजलूमों को काफी नुकसान हुआ है।

एआइएमआइएम के प्रदेश अध्यक्ष और अमौर विधायक अख्तरुल इमाम के नेतृत्व में पार्टी विधायकों ने शहर के नया किला स्थित शाहबुद्दीन के आवास पर ओसामा से मुलाकात की। इसमें प्रदेश अध्यक्ष के साथ जोकीहाट विधायक शाहनवाज आलम, बायसी विधायक जनाब सैयद रुकनुद्दीन अहमद, कोचाधामन विधायक इजहार असरफ, बहादुरगंज विधायक अंजार नईमी और युवा प्रदेश अध्यक्ष आदिल हसन मौजूद थे।

जन अधिकार पार्टी के प्रमुख पप्पू यादव ने भी ओसामा से घर जाकर मुलाकात की थी उस दौरान उन्होंने कहा था कि तेजस्वी जब लालू यादव की गोद में खेल रहे थे और लालू परेशानियों में खड़े थे। उस वक्त शहाबुद्दीन साए की तरह उनके साथ थे। लेकिन उस परिवार से जितना सम्मान शहाबुद्दीन साहब को मिलना चाहिए, उतना सम्मान नहीं मिल पाया। शहाबुद्दीन समर्थकों का लालू यादव के परिवार से नाराजगी के वक्त में पप्पू यादव का यह बयान काफी चर्चा में रहा। उधर ओसामा ने महाराजगंज के पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह से मशरक स्थित आवास पर मुलाकात की। दोनों की मुलाकात करीब 1 घंटे तक चली। इस मुलाकात में कई मुद्दों पर चर्चा हुई। हालांकि, इस पर किसी ने भी कोई बयान नहीं दिया।

राजनीतिक कदम किस ओर बढ़ाएंगे ओसामा

जिस तरह से लगातार बैठकों के दौर के बीच ओसामा उत्तर बिहार के लगातार दौरे पर हैं। मुलाकात व बैठकों के बीच यह कयास लगाया जा रहा है कि वे अपनी राजनीति भी जल्द ही तय करेंगे। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि शहाबुद्दीन की तमाम व्यक्तिगत पहल के साथ ही यह सच है कि लालू प्रसाद यादव के शह ने उन्हें राजनीति की बुलंदियों तक पहुंचाया। अब बदले दौर में लालू राज का अंत हो चुका है। हिंदुत्व की बात करने वाली राजनीतिक ताकत के साथ मिलकर अल्पसंख्यक हितों की तरफदारी करने वाले नीतीश कुमार सरकार में है।

ऐसे वक्त में राजनीतिक समझ रखने वाले लोगों का कहना है कि ओसामा के पास तीन रास्ते हैं। मुस्लिम वोट बैंक के रूप में शहाबुद्दीन के परिवार की पहचान को कायम रखने के लिए वे सभी शिकवे भुला कर युवा चेहरा तेजस्वी यादव के साथ ही कदम बढ़ाएं। दूसरा शहाबुद्दीन की तरह सत्ता के सह में अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने के लिए नीतीश कुमार का दामन थाम ले। तीसरा प्रमुख विकल्प ओवैसी की पार्टी का हिस्सा बन जाए व सीमांचल में बड़ी राजनीतिक ताकत के बाद उत्तर बिहार के जिलों में पांव जमाने में उनकी मदद पहुंचाएं। जिसका नतीजा होगा कि राजनीति की छोटी ताकत के साथ अपना बड़ा चेहरा बनाने में उन्हें कामयाबी मिल सकती है।

(लेखक उत्तर प्रदेश के पत्रकार हैं, विचार उनके निजी हैं)

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