मेरे बाबा कहते हैं…अपनत्व का कोई रूप नहीं होता है

मेरे बाबा कहते हैं…अपनत्व का कोई रूप नहीं होता है

अपनत्व का कोई रूप नहीं होता है जब किसी की अनुभूति स्वयं से अधिक अच्छी लगने लगे , यही तो अपनत्व है। कोई पास रहकर भी पास नहीं होता है पर कोई बहुत दूर रहकर भी सबसे पास होता है, यही अपनत्व है । जो बिना किसी स्वार्थ से खुद से भी ज्यादा आपका ख्याल करता हो, यही तो अपनत्व है ।

जिसका चिंतन हमेशा आप करते रहते हों, या जिसके ख्याल में हमेशा खोए रहते हों, यही तो अपनत्व है । जिससे बात करने के लिए आप बेचैन रहते हों, यही तो अपनत्व है। जिससे मिलने, देखने, सुनने को आप बेताब रहते हों, यही तो अपनत्व है। यही अपनत्व अगर संसार से न होकर मालिक से हो जाए तो फिर कल्याण होने में जरा भी संसय नहीं है।

सदा ही जपते रहिए "ॐ साईं श्री साईं जय जय साईं ।। साईं सबका सदा ही कल्याण करें।।

— उमा शंकर गुरु जी /बाराबंकी

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