नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: श्री सिद्धि माँ की माता जी का कैन्सर एक रोटी, सब्ज़ी के भोग से किया छू-मंतर!
श्री सिद्धी माँ की माता जी (जिन्हें पर्वतीय भाषा में हम सभी इजा कहकर सम्बोधित करते थे) एक बार असाध्य रूप से बीमार पड़ गई। डाक्टरों को कैन्सर की आशंका हो चली थी । अनेक प्रकार के इलाज करने पर भी उनका स्वास्थ्य बिगड़ता चला गया। भूख-प्यास शेष हो चली थी, शरीर सूख गया था, शक्ति-हीनता चरम पर थी।
श्री माँ को उनके बारे में सभी सूचनाएँ मिलती रहती थी पर तब वे वृंदावन में महाराज जी की सेवा में थीं और इजा के पास नहीं गयीं। तब महाराज जी ने इजा को वृंदावन बुलवा भेजा जबकि वहाँ ऐसी कठिन बीमारियों के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी।
उनकी हालात इस कदर गिर चुकी थी कि उन्हें उठने बैठने, चलने के लिए सहारे की आवश्यकता पड़ती थी ।
परन्तु महाराज जी मी पूर्णरूपेण समर्पित इजा ने वृंदावन जाना स्वीकार कर लिया और इस स्थित में भी दो व्यक्तियों का सहारा लेकर आ गयीं श्री चरणों के आश्रय में। और फिर जैसे ही आश्रम पहुंची तो बाबा जी ने इजा की अपनी कुटी में बुला लिया और उसी समय आई हुई अपनी भोग की थाली से अपने ही हाथ से एक रोटी के ऊपर कुछ दाल-सब्जी रख कर उन्हें देते हुए कहा "अभी खा ले"।
बड़े ही संकोच के साथ इजा तब महाराज जी समक्ष वो रोटी खा पायी। बस क्या था- धन्वन्तरि की उस भोग प्रसाद रूपी महा औषधि पाकर उन्हें दिनों दिन स्वास्थ्य लाभ होता चला गया, जिन्हें कैन्सर कहा जा रहा था, वो कहाँ चला गया, पता ना चला!
और जिस इजा को अरसे से सहारा देकर उठाना-बैठना पड़ता था, वही इजा कुछ ही दिनों बाद नंद गाँव, बरसाना, गोकुल, गोवर्धन, आदि सब तीर्थों की यात्रा खुद अकेले ही कर आयीं। नब्बे से ऊपर की आयु पाकर ही उनका शरीर शांत हुआ वर्ष १९६२ में!