बाबा कहते हैं…

बाबा कहते हैं…

जब किसी चीज की चाह ही ना रहे, सिर्फ मालिक की सेवा और उनकी इबादत में ही मन लगा रहे तथा सिर्फ उनकी ही चाहत शेष रह जाए, यही तो भक्ति कहलाती है । ये तभी संभव है जब हमें उनकी निकटता प्राप्त हो जाए। निकटता भी तभी संभव है जब हमारा उनसे संबंध हो जाए। संबंध भी ऐसा वैसा नहीं, अटूट संबंध।

जब ये विश्वास दृढ़ हो जाए कि "वो हमारे थे, वो हमारे हैं और हमारे ही रहेंगे तथा हम उनके ही थे, उनके ही हैं और उनके ही रहेंगे" तो समझ लेना कि हमारा उद्धार अब सुनिश्चित ही है । इसी भाव में हमेशा मगन रहो, मस्त रहो, व्यस्त रहो। मालिक हमेशा साथ ही रहेगा।

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