जाने कहां गए वो लोग…आर सी श्रीवास्तव यानी हम सबके चंदर भाई !
कुछ साल पहले टाइम्स ऑफ इंडिया के विशेष संवाददाता से रिटायर हुए आर सी श्रीवास्तव यांकी हम सबके चंदर भाई का फोन आया की हम घर आ रहे हैं। और थोड़ी देर में चंदर भाई घर आ पहुंचे। चंदर भाई की हमारे परिवार से मोहब्बत का सबूत है उनका अपनी स्कूटर पर घर आना जब उनको चलने में दिक्कत और स्कूटर भी चलाना बहुत परेशानी का सबब।
बेहराल वे हमारे घर जब पहुंचे तो बहुत खुस थे क्योंकि जब उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया ज्वाइन किया होगा लगभग 50 साल पहले तब दफतर हमारे घर से दस कदम दूर सी मल बिल्डिंग में था और उनके सीनियर देश।के जाने माने पत्रकार एससी काला जी थे जिनकी हनक देश प्रदेश के सत्ता के गलियारों में बहुत थी। सभी राजनेता उनकी लेखनी से घबराते थे।
तो चंदर भाई का हमारे घर आना जाना उस दौर से था। तम हम छात्र थे लेकिन चंदर भाई बहुत स्नेह देते थे। चंदर भाई के लगभग सभी पत्रकारों से दोस्ताना संबंध थे। चंदर भाई जब हमारे घर आए तो हम दोनो ने पुरानी पीढ़ी के पत्रकारों नेशनल हेराल्ड के संपादक एम चेलापति राव , पायनियर के संपादक एससी घोष, सीएन चित्तरंजन को याद किया। चंदर भाई ने यूपी प्रेस क्लब और वरिष्ठ पत्रकार बीएन उनियाल और अपने सीनियर एससी काला जी से जुड़े किस्से सुनाए।
चंदर भाई ने बताया कि वे एक दौर में किस तरह सीबी गुप्ता, चौधरी चरण सिंह और पंडित कमलापति के घर खबर लेने उनके घर के चक्कर लगाते थे। चंदर भाई ने बताया कि पहले वे पान दरीबा मैं सीबी गुप्ता जी के घर जाते थे अपनी साइकिल पर, उसके बाद मॉल एवेन्यू चौधरी चरण सिंह की कोठी और सबसे बाद में हजरतगंज मैं पंडित कमलापति त्रिपाठी के दरबार में पहुंचते थे। चंदर भाई का कहना था कि चाय नाश्ता का बढ़िया इंतजाम पंडित जी के घर पर ही होता था।
चंदर भाई का मानना था कि उस जमाने में पत्रकारों की संख्या भी बहुत कम थी और आपसी भाई चारा और बड़ों का सम्मान भी था। बड़े परकारों की हनक और धमक की आज कल्पना भी नहीं हो सकतीं।
चंदर भाई लखनऊ से मेरठ चले गए थे। उस ज़माने में भी जब लखनऊ आते तो हमारी मुलाकात होती थे। कुछ साल मेरठ में रह कर चंदर भाई लखनऊ वापस आ गए और टाइम्स ऑफ इंडिया में विशेष संवाददाता बने। चंदर भाई बहुत उसूली पत्रकार थे और खुल कर लिखते थे। उनकी पत्रकारिता में ईमानदारी दिखाई देती थी। हमने चंदर भाई को प्रेस कांफ्रेंस में बड़े बड़े राजनेताओं को कहते सुना की वे किसी से डरते नहीं और उनकी लॉयल्टी अपने प्रोफेशन और अखबार के लिए हैं।
चंदर भाई का सिगरेट पीने का अंदाज और बातें कहने में किस्सागोई का तरीका और विधान सभा में पत्रकार दीर्घा में बैठ कर बहुत शोर होने पर उनका खुर्राते लेना सभी को याद है। जब वे खुर्र्राटे लेते तब भी कान खुले रखते थे। एक दिन चंदर भाई ने कहा कि वे बहुत अमीर हो गए हैं।तो हम कुछ समझे नहीं फिर हस का बोले की उन्होंने सिगरेट छोड़ दी है। तो पैसे बचे वे बहुत हैं।
हमने चंदर भाई को कुछ साल पहले खो दिया लेकिन उनके जो वक्त गुजारा और कॉफी हाउस, सचिवालय प्रेस रूम , यूपी प्रेस क्लब और अनेक प्रेस कांफ्रेंस में जो उनका सानिध्य मिला वो हमेशा याद रहेगा।