इतिहास के बिसरे नायकों का आख्यान है 'ख़ानज़ादा'

इतिहास के बिसरे नायकों का आख्यान है 'ख़ानज़ादा'

भगवानदास मोरवाल ने अपने इस उपन्यास के जरिये भारतीय इतिहास के अल्पज्ञात पक्ष पर रोशनी डाली है

नई दिल्ली || इतिहास में कुछ नायकों का नाम जगमगाता रहता है. जबकि उसके बहुत सारे निर्माताओं का नाम वक्त की धुंध में ओझल हो जाता है. एक सजग रचनाकार अपनी कलम से ऐसे ओझल नायकों को इतिहास के धुंधलके से निकाल कर लोगों के सामने लाता है. वरिष्ठ उपन्यासकार भगवानदास मोरवाल ने अपने सद्य प्रकाशित उपन्यास 'ख़ानज़ादा' के जरिये यही किया है. उन्होंने इस उपन्यास में मेवात के इतिहास और हसन खां मेवाती जैसे ऐतिहासिक किरदारों को दर्ज कर भारतीय इतिहास के अल्पज्ञात पक्ष पर रोशनी डाली है.

ये बातें सामने आईं सेंटर फॉर रिसर्च इन आर्ट ऑफ़ फिल्म एंड टेलीविज़न(क्राफ्ट फिल्म स्कूल) में आयोजित कार्यक्रम में, जिसमें भगवानदास मोरवाल ने राजकमल प्रकाशन से छपे अपने नए उपन्यास 'ख़ानज़ादा’ के बारे में प्रसिद्ध टीवी होस्ट सुहैब इलियासी से बातचीत की.

मौके पर लेखक भगवानदास मोरवाल ने कहा, मैं 'ख़ानज़ादा' को उन अलक्षित और बेनाम नायकों का आख्यान मानता हूँ जिनका इतिहास में उल्लेख तो है लेकिन उनकी कभी चर्चा नहीं होती. लगभग चार सौ साल के देशकाल को समेटे यह उपन्यास हसन खां मेवाती या कहिए राजपूत मुसलमानों जिनके पूर्वजों को अमीर तैमूर ने जिस ख़ानज़ादा के लक़ब से नवाज़ा था, के साथ-साथ उस दौर के राजनैतिक और सत्ता संघर्षों से भी रूबरू कराता है । इतिहास के नाम पर प्रचलित उन नेरेटिव्स या कहिए धारणाओं से भी गर्द हटाता है जिसकी आड़ में रह-रह कर भारतीयता की असली बुनावट को चोट पहुँचाने का प्रयास किया जाता है.

उन्होंने कहा, यह न केवल इतिहास की ओझल वास्तविकताओं को जानने की कोशिश है बल्कि उन सूत्रों की तलाश का प्रयास भी है जो हमारे समाज को दृढ़ता प्रदान करते हैं.

बातचीत के दौरान इलियासी ने कहा, ख़ानजादा एक शाहकार है जिसमें इतिहास और कल्पना का जबरदस्त संगम है. मोरवाल का यह उपन्यास इस बात का नमूना है कि इतिहास से क्या सीखा जा सकता है. उन्होंने कहा, मेरे विचार से मोरवाल जी ने इतिहास को अपनी लेखनी से एक नया आयाम दिया है जो गौरतलब है.

सेंटर फॉर रिसर्च इन आर्ट ऑफ़ फिल्म एंड टेलीविज़न डायरेक्टर ,नरेश शर्मा ने कहा, मोरवाल ने हमेशा अपने उपन्यासों में अलग अलग और विचरातेजक विषयों पर लिखा है। उनकी नवीनतम कृति खानजादा भी ऐसी ही है जो हमें इतिहास के एक ओझल पक्ष से रूबरू कराती है.

गौरतलब है कि भगवानदास मोरवाल का उपन्यास ख़ानज़ादा उन मेवातियों की गाथा बयान करता है जिन्होंने तुगलक, सादात, लोदी और मुगल जैसे भारतीय इतिहास के मशहूर राजवंशों से लोहा लिया था. इसमें उस तहज़ीब की जड़ें देखी जा सकती हैं जिन्हे आगे गंगा जमुनी कहा गया और जो भारतीय समाज और संस्कृति की बुनियादी विशेषता है.

मोरवाल समकालीन साहित्य जगत के सुपरिचित हस्ताक्षर हैं. उन्होंने काला पहाड़, रेत, नरक मसीहा जैसे चर्चित उपन्यास लिखे हैं.

Related Stories

No stories found.
logo
The News Agency
www.thenewsagency.in