झांसा तो नहीं दे रही भाजपाइयों की झांसी की रानी !

झांसा तो नहीं दे रही भाजपाइयों की झांसी की रानी !

क्या भाजपा को झांसा देकर कांग्रेस का काम कर रही है झांसी की रानी 'कंगना' !

शीशे का घर टूटना और बिछड़े हुए भाईयों का मिलना तय था। लेकिन अब शीशे का घर फौलाद हो गया और बिछड़े हुए भाईयों के मिलने के रास्ते बंद हो गये। भाजपा-शिवसेना में जबरदस्त टकराव करवाने वाली कंगना रनौत की इस एंट्री से कांगेस के हाथों में खुशियों के कंगन खनकने लगे। हिंदुत्व की विचारधारा की दो धारायें दुबारा मिलने की उम्मीद टूट गई।

अयोध्या में बाबरी मस्जिद तोड़ कर जिस शिवसेना ने भाजपा का मुस्तकबिल तय किया था उसी भाजपा के लोग शिवसेना को बाबर सेना कह कर उसके अस्तित्व को चुनौती दे रहे हैं। अभिनेता सुशांत मौत प्रकरण में बयानबाजी करते हुए कंगना ने शिवसेना सरकार वाले महाराष्ट्र को जब पाक अधिकृत कहकर गुस्सा दिलाया तो गुस्से में आकर शिवसेना सरकार ने कंगना के अंगना का अवैध छज्जा गिरवा दिया। बाबरी गिराने वाली हिन्दू सम्राट शिव सैनिकों को कोई बाबर सेना कह रहा है तो कोई शव सेना।

भाजपा विरोधी ताकतों के ऐसे डर अब दूर हो गये हैं। और ये सब हुआ है आज की झांसी की रानी कहे जाने वाली कंगना की एंट्री के बाद। करीब आकर धोखा देने की कहानियों वाली फिल्म नगरी में जो दिखता है वो होता नहीं और जो होता है वो दिखता नहीं।

ये सब तब शुरू हुआ जब शंका जताई जा रही थी कि शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी का बेमेल गठबंधन कभी भी टूट सकता है। शीशे के इस घर का कोई भी मुस्तकबिल नहीं। अपने, अपने ही होते हैं और ग़ैर पराये ही होते हैं। दोस्त के बीच चाहे कितने मतभेद हों परअंदर से वो दोस्त ही रहेगा। दुश्मन स्वार्थ वश जितना भी करीबी हो जाये पर मौका पाते हैं नुकसान पंहुचा सकता है।

समय पत्तों को भले ही कुछ दिनों के लिए जड़ों से दूर कर दे पर एक दिन वक्त ही पत्तों को जड़ों के करीब ले आता है। शिवसेना हिन्दूवादी विचारधारा से दूर नहीं रह सकती। माना जाता रहा है कि भाजपा और शिवसेना का झगड़ा घरेलू था.. अस्थायी था। दोनों भाइयों के बीच विवाद और दूरियां खत्म हो जायेंगी और दोनों मिलकर महाराष्ट्र सरकार चलायेंगे। लेकिन ऐसा नहीं हो सका। भाजपा और शिवसेना के मिलन की उम्मीद के बीच कंगना रनौत दीवार बन कर खड़ी हो गयीं।

लाखों करोड़ की फिल्म इंडस्ट्री, आईपीएल और नशे का कारोबार। आर्थिक राजधानी मुंबई की तमाम दौलत देश की जीडीपी के समानांतर है। मोदी सरकार के ख़ास और देश के टॉप टेन मुंबई वासी पूंजीपतियों की भी दिली ख्वाहिश रही है कि शिवसेना-भाजपा का मिलन हो और एक विचारधारा वालों की महाराष्ट्र में सरकार हो। साकार होने की अच्छी-खासी उम्मीद वाला ये सपना टूट गया।

कोई ताजुब नहीं कि मुंबई के मौजूदा ड्रामें के पीछे कोई बड़ी साजिश हो !

यहां दाऊद के कलंक की परछाईयां हैं। ड्रग्स, कोकीन, अफीम, गांजा-चरस का धुआं है। फिल्मी कहानियों और अभिनय की अय्यारी में कुछ भी संभव है। कुछ लोगों का मुंबईया तजुर्बा कह रहा है कि किसी के निर्देशन में कंगना भाजपा के खिलाफ काम तो नहीं कर रही हैं !

शिवसेना और भाजपा के बीच तलवारें खिची रहें। कांग्रेस-एनसीपी के साथ शिवसेना का शीशे के घर जैसा गठबंधन ना टूटे। भाजपा अपनी हमख्याल शिवसेना से कड़वाहट दूर ना कर ले।

भाजपा विरोधी ताकतों के ऐसे डर अब दूर हो गये हैं। और ये सब हुआ है आज की झांसी की रानी कहे जाने वाली कंगना की एंट्री के बाद। करीब आकर धोखा देने की कहानियों वाली फिल्म नगरी में जो दिखता है वो होता नहीं और जो होता है वो दिखता नहीं।

ये मुंबई है, यहां आंखों का काजल भी चुरा लिया जाता है। राह में चलता आदमी बेच दिया जाता। बड़ी अजीब है इस शहर की फितरत। यहां हर क़दम पर धोखे ही धोखे है। जो कलाकार नहीं हैं वो भी बड़े-बड़े कलाकार हैं। अभिनय और हक़ीकत में आप फर्क ढूंढ ही नहीं पायेंगे।

पत्थरों का शहर, दौलत की नगरी और बालीवुड.. मुंबई इन नामों से भी जाना जाता है। यहां जज्बातों को आसानी से ठगा जाता है। सच को झूठ और झूठ को सच की अय्यारी भावनाओं को ठग लेती हैं।

स्वर्गीय बाला साहब ठाकरे के बाद यहां की सियासत में भी फिल्मी नाटकीयता के मुखौटे धोखेबाजी करने लगे। महाराष्ट्र के पिछले विधानसभा चुनाव के बाद सबसे बड़ा दल साबित होने के बाद भी भाजपा अपने सहयोगी दल के साथ सरकार नहीं बना सकी। जज्बाती शिवसेना की हठ और भाजपा के घमंड के बीच तीसरे ने भांजी मार दी। एनसीपी प्रमुख और भारतीय राजनीति के अत्यंत वरिष्ठतम नेता शरद पवार के भतीजे अजित पवार का ड्रामा सबने देखा था। भाजपा-शिवसेना के बीच दूरियां बढ़ने के बाद कांग्रेस और एनसीपी शिवसेना के साथ आ गये और तीनों ने मिल कर महाराष्ट्र की सरकार बना ली थी।

और अब ये गठबंधन ना टूटे इसके लिए भाजपा और शिवसेना में तल्खियां बढ़ना जरूरी थीं। ठंडी पड़ रही तल्खियों की भट्टी में आग लगाने के लिए एक ऐसी अभिनेत्री ने जी जान लगा दी जिन्हें अच्छे निर्देशकों और लाजवाब स्क्रिप्ट पर बेहतरीन अभिनय करने का जबरदस्त तजुर्बा है।

- नवेद शिकोह

(The writer is a senior UP based journalist. Views expressed are personal)

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