हिंग्लिश से परहेज क्यों? युवा भारत भाषा में लचीलापन चाहता है

हिंग्लिश से परहेज क्यों? युवा भारत भाषा में लचीलापन चाहता है

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देश की ज़ुबान का मिज़ाज ही कुछ और है — यहाँ “Hello” के बाद “भइया, चाय लाना” बोलना बिल्कुल नॉर्मल है! फिर भी कुछ लोग भाषा को संस्कार और शुद्धता के पिंजरे में क़ैद करना चाहते हैं। अरे भई, जब दिल मिक्स है तो ज़ुबान प्योर कैसे रहे? हिंग्लिश कोई गड़बड़ नहीं, एक इवॉल्यूशन है — ऐसी वाइब जिसमें व्हाट्सऐप चैट, मीम और मोहब्बत सब एक ही लाइन में आ जाते हैं। मान लो, ये नए इंडिया की ज़ुबान है — जहाँ ग्रामर से ज़्यादा इमोशन मायने रखता है!

जब एक हिंदी प्रेमी का बेटा अपने दोस्त से कहता है - "पापा आज बहुत ही डिस्टर्ब हैं, कोई प्लीज उन्हें कूल करो" - तो यह सिर्फ़ हिंग्लिश का एक वाक्य नहीं, बल्कि एक पूरी पीढ़ी का भाषाई मैनीफेस्टो है। या फिर, "यार, आज का प्लान क्या है? लेट्स गो फॉर ए कॉफ़ी एंड चैट" जैसा आम बोलचाल, जहाँ हिंदी की आत्मा अंग्रेज़ी की स्पीड के साथ घुलमिल जाती है। इस मिश्रण में उर्दू के शब्दों का योगदान भी कम नहीं—जैसे "दिल में एक तूफ़ान उठ रहा है, ब्रो" जहां 'तूफ़ान' उर्दू की गहराई देता है, और 'ब्रो' हिंग्लिश की सहजता।

भारत में भाषा का सवाल अक्सर पहचान और अस्मिता से जुड़ जाता है। हिंदी को लेकर यह बहस लगातार होती रही है कि इसे शुद्ध रखा जाए या इसमें समय और समाज की ज़रूरत के हिसाब से बदलाव स्वीकार किए जाएं। मूल बात यह है कि आज के दौर में अगर हिंदी को वास्तव में लोकप्रिय, जीवंत और वैश्विक बनाना है तो उसे लचीला रुख अपनाना होगा। उदाहरण के लिए, एक ग्रामीण इलाके में कोई कहेगा, "भइया, आज खेत में बहुत मेहनत करी, थक गए," जबकि शहरी युवा बोलेगा, "ड्यूड, टुडे वर्कआउट सेशन था, टोटली एक्झॉस्टेड हूँ।"

हिंग्लिश को अपनाने से हिंदी आधुनिक और वैश्विक बनती है। डिजिटल युग में जब नए कॉन्सेप्ट्स और टेक्नोलॉजी टर्म्स रोज़ सामने आ रहे हैं, तब शुद्ध हिंदी हर शब्द का विकल्प नहीं दे सकती। यही कारण है कि हिंग्लिश कनेक्टिविटी और इनक्लूसिविटी का प्रतीक बन चुकी है। उर्दू मिश्रण के साथ, "इंटरनेट पे सबकुछ मिल जाता है, लेकिन इंसानियत नहीं, साहब।" यह सब मिलकर हिंदी को मजबूत बनाता है।

आखिर उर्दू, पंजाबी, पूर्वी या अंग्रेज़ी से परहेज क्यों? चिरकुट, हड़कंप जैसे प्रचलित शब्दों ने तो अपनी जगह बना ली, पर तमाम नए शब्द अर्थ की बाट जोह रहे हैं। हिंग्लिश के साथ पिंगलिश, विंग्लिश, टिमलिश और कई वेरिएंट्स चलन में हैं, जो एक जबरदस्त भाषाई लचीलेपन का संकेत हैं। उर्दू के मिश्रण से हिंदी और भी समृद्ध हुई है—जैसे "मेरा दिल है कि मानता नहीं, बट आय एम ट्राइंग टू कंट्रोल इट" जहां 'दिल' और 'मानता' उर्दू की भावुकता लाते हैं, और हिंग्लिश का टच इसे युवा बनाता है।

या फिर, "शहर की हवा में एक मज़ा है, ब्रदर, बट विलेज की शांति इज अमेजिंग।" ऐसे उदाहरण दिखाते हैं कि कैसे भाषा का यह संगम हमें वैश्विक बनाता है। आंचलिक बोलियाँ, जैसे भोजपुरी की "का हो, बाबू, सब ठीक बा?" या अवधी की "का करत हउ, भइया?" भी सुनने को मिल रहे हैं।

हिंग्लिश को कई लोग महज़ स्लैंग मानकर खारिज कर देते हैं, लेकिन असल में यह एक तरह की भाषायी लोकतंत्र की निशानी है। हिंग्लिश में हिंदी की आत्मा है और अंग्रेज़ी की आधुनिकता—यह संगम भाषा को और भी समृद्ध करता है। हिंदी हमेशा से एक मिश्रित भाषा रही है—संस्कृत की जड़ों के साथ इसमें फ़ारसी, अरबी और तुर्की के शब्द भी शामिल हुए।

उर्दू के साथ मिश्रण के और उदाहरण देखें— "मैं तुझसे मोहब्बत करता हूँ, बट यू डोंट अंडरस्टैंड" जहां 'मोहब्बत' उर्दू की रोमांटिक गहराई देता है, और हिंग्लिश इसे कंटेम्परेरी बनाता है। लेकिन इस समृद्धि के बीच, ग्रामीण क्षेत्रों में आंचलिक बोलियाँ जैसे राजस्थानी की "क्यूं रे, थारो मन क्यूं उदास है?" या हरियाणवी की "के हो रया सै, भाई?" भी सुनने में अच्छे लगते हैं।

आज के युवा की बोली देखें तो साफ है कि हिंग्लिश ही उनकी असली भाषा बन चुकी है। "यार, जस्ट चिल कर" जैसे वाक्य दोस्ती की गर्माहट और आधुनिक सहजता, दोनों का मेल हैं। फ़िल्मों और गानों ने इसे और लोकप्रिय बना दिया है। Zindagi Na Milegi Dobara का "चिल कर" हो या Jab We Met में गीता का डायलॉग "मैं अपनी फेवरेट हूँ"—ये सब इस बात का सबूत हैं कि हिंदी और अंग्रेज़ी का मेल हमारी सांस्कृतिक पहचान का हिस्सा बन चुका है। उर्दू मिश्रण के साथ, जैसे "तेरे बिना जीना मुश्किल है, बट आय विल ट्राय" जहां 'मुश्किल' उर्दू की तीव्रता जोड़ता है।

हिंग्लिश केवल मनोरंजन तक सीमित नहीं, बल्कि यह समकालीन भारत की सच्चाई को भी प्रतिबिंबित करती है। बोर्डरूम की मीटिंग से लेकर सोशल मीडिया मीम्स तक, हर जगह यही भाषा काम आ रही है। इससे न केवल पीढ़ियों के बीच संवाद आसान होता है बल्कि 22 आधिकारिक भाषाओं वाले देश में यह एक साझा ज़मीन भी तैयार करती है। हिंग्लिश न तो तमिल, न मराठी, न पंजाबी—बल्कि सबको जोड़ने वाला मंच है। उदाहरण के तौर पर, "लाइफ में स्ट्रगल है, लेकिन होप मत छोड़ो, जनाब" जहां 'जनाब' उर्दू की सज्जनता लाता है।

कुछ लोग तर्क देते हैं कि यह मिलावट भाषा की "पवित्रता" को नष्ट कर देगी। लेकिन असल में यह नाश नहीं, बल्कि विकास और विस्तार है। अंग्रेज़ी भाषा भी तो फ्रेंच और लैटिन से शब्द लेकर समृद्ध हुई और आज दुनिया की सबसे प्रभावी भाषा है। हिंग्लिश भी हिंदी को नया आयाम दे रही है—यह उसे न केवल भारत में लोकप्रिय बना रही है बल्कि डायस्पोरा के ज़रिए विदेशों में भी एक पहचान दे रही है। आखिरकार, भाषा का उद्देश्य जोड़ना है, न कि विभाजित करना। इस लचीलेपन से हिंदी न सिर्फ बचेगी, बल्कि फलेगी-फूलेगी।

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