योगी के प्रशासनिक दबंगई से नहीं लड़ पा रहे है तो मोदी के एजेंसियों से कैसे लड़ेंगे अखिलेश?

योगी के प्रशासनिक दबंगई से नहीं लड़ पा रहे है तो मोदी के एजेंसियों से कैसे लड़ेंगे अखिलेश?

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सत्ता की हनक और दबंगई का एहसास जिला पंचायत अध्यक्ष और प्रमुख के चुनाव में विपक्ष को करा दिया। योगी के प्रशासनिक दबंगई के आगे सत्ता का ख्याब देख रहे प्रबल दावेदार अखिलेश यादव लोकतान्त्रिक तरीके से समथकों को साथ लेकर विरोध करने में असफल रहे। अखिलेश को विपक्ष की भूमिका अपने पिता मुलायम सिंह यादव से सीखनी चाहिए। मुलायम सिंह ने सत्ता पक्ष चाहे जितना शक्तिशाली रहा हो कभी भी हार नहीं मानी और बयानों से ही नहीं सड़कों पर उतर कर जम कर विरोध किया।

समर्थकों के लिहाज से अखिलेश यादव बहुत ज्यादा कमजोर नहीं है। यह सही है 2017 में उन्हें मात्र 47 सीटें मिली लेकिन 18923669 मत मिले थे जो 2012 की तुलना में मात्र 32 लाख कम है। 2012 में अखिलेश यादव को 22100741 मत मिले थे और 224 सीटें पाकर बहुमत की सरकार बनायी थी।

2012 में 401 सीटों पर अकेले सपा लड़ी थी जबकि 2017 में कांग्रेस से समझौते के बाद मात्र 311 सीटों पर चुनाव लड़ी। कांग्रेस के समझौते वाली 125 सीटों पर भी सपा के लाखों समर्थक हैं। अगर हम 403 सीटों पर सपा समर्थकों की संख्या का आंकलन करे तो सवा दो करोड़ से अधिक ही होगा।

अभी तक का इतिहास रहा है कि जो पंचायत चुनाव जीता है वह विधानसभा चुनाव नहीं जीता
उदाहरण 1995 में मुलायम ने कब्ज़ा किया 1996 में विधानसभा चुनाव हार गए 2000 में भाजपा ने पंचायतों पर कब्ज़ा किया 2002 में चुनाव हार गए। 2007 में बसपा ने पंचायतों पर दबंगई से कब्ज़ा किया 2012 चुनाव हार गयी और 2015 में अखिलेश यादव ने जिला पंचायत अध्यक्ष और प्रमुख पदों पर कब्ज़ा किया और 2017 में चुनाव हार गए लेकिन यह इतिहास 2022 में दोहराएगा इसको लेकर तरह तरह के सवाल भी उठ रहे हैं। क्योकि पिछले चुनाव में केंद्र में जो भी सरकार रही हो राज्यों में चुनाव ज़ीतने के केंद्रीय जांच एजेंसियों का उपयोग नहीं किया।

सवा दो करोड़ के भारी समर्थकों के नेतृत्त्व करने वाले अखिलेश यादव, योगी आदित्यनाथ के प्रशासनिक दबंगई का जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख चुनाव में लोकतान्त्रिक तरीके से लड़ाई नहीं लड़ पा रहे हैं। सवाल यही उठ रहा है कि जब सवा दो करोड़ समर्थक हैं तो योगी के प्रशासनिक गुंडई का विरोध क्यों नहीं कर पा रहे हैं। क्या डर रहे हैं या फिर यह मानकर बैठ गए है कि योगी के प्रशासनिक तांडव का जवाब 2022 विधानसभा चुनाव में जनता देगी और सपा की बहुमत सरकार बन जाएगी।

लेकिन राजनीतिक में ऐसा नहीं होता। जनभावनाएं भी उसी नेता के साथ जुड़ती हैं जो संघर्ष की क्षमता रखता है। अखिलेश को किसान संगठनों के शांति पूर्वक आंदोलन से भी सबक लेना चाहिए कि पिछले 8 महीनों से मोदी सरकार के किसान विरोधी नीतियों के कारण शांतिपूर्वक धरना दे कर विरोध कर रहे हैं।

जिला पंचायत और ब्लॉक प्रमुख चुनाव में सीटों पर कब्ज़ा करके योगी आदित्यनाथ ने यह साबित कर दिया है कि सत्ता की ताकत के आगे अगर विपक्ष में मुलायम, ममता व तेजस्वी यादव जैसा चुनौती देने वाला नेता नहीं है तो पंचायत की तर्ज पर कोई भी चुनाव प्रशासनिक दबंगई के नेतृत्व में जीता जा सकता है। हालांकि विधानसभा चुनाव में और पंचायत चुनाव से कोई मतलब नहीं है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गत 7 वर्षों के कार्यकाल में यह देखा जा रहा है कि राज्यों का चुनाव जितने के लिए मोदी और अमित शाह की जोड़ी केंद्र सरकार की सीबीआई, ED, इनकम टैक्स सहित उन समस्त एजेंसियों का जमकर उपयोग करती है यह किसी से छुपा नहीं है। अब यहाँ सबसे बड़ा सवाल यही है कि अखिलेश यादव सवा दो करोड़ समर्थकों के साथ जब योगी के प्रशासनिक दबंगई से नहीं लड़ पा रहे है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की सीबीआई, ED, इनकम टैक्स जैसे तमाम ताकतवर जांच एजेंसियों से कैसे लड़ेंगे?

यह सत्य है और चुनाव के पहले केंद्रीय जांच एजेंसियों की सक्रियता उत्तर प्रदेश में दिखाई भी देने लगी है। साढ़े चार वर्षों से सो रही सीबीआई रिवर फ्रंट घोटाले की जांच में अचानक सक्रिय हो गयी है। अखिलेश सरकार के लोक सेवा आयोग सहित 1 दर्जन से अधिक मामलों में केंद्रीय जांच एजेंसियां सक्रिता से जांच करके शांत होकर बैठी है और यह माना जा रहा है कि उनकी सक्रियता अचानक विधानसभा चुनाव के दौरान बढ़ जाएगी।

आय से अधिक संपति का मामला बहुत दिनों से उच्चतम कोर्ट में पेंडिंग है। जीतने के लिए किसी भी हथकंडे को मोदी शाह की जोड़ी अपना सकती है। सवाल यही उठ रहा है कि योगी सरकार के प्रशासनिक दबंगई का जन भावनाओं के अनुरूप लोकतान्त्रिक तरीके से सड़कों पर विरोध करने में असफल अखिलेश यादव पर जब केंद्रीय जांच एजेंसियां जांच का हमला करेंगी तो उसका जवाब कैसे देंगे ?

(लेखक उत्तर प्रदेश के नामचीन राजनैतिक विश्लेषक हैं और पूर्व में सहारा समय उत्तर प्रदेश के स्टेट हेड रहे हैं, विचार उनके निजी हैं)

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