जनमोर्चा अखबार का पर्याय शीतला सिंह का जाना

जनमोर्चा अखबार का पर्याय शीतला सिंह का जाना

उन दिनों देश की मीडिया अवध की पत्रकारिता का सहारा लेती थी। अयोध्या/फैजाबाद की ग्राउंड रिपोर्टिंग से ही कोई धमाकेदार खबर हासिल होती थी। अवध के केंद्र और राम की नगरी अयोध्या के मिजाज़ के करंट तेवर की पड़ताल करने के लिए देश के कोने-कोने से आए बड़े से बड़े पत्रकार सबसे पहले जनमोर्चा पढ़ते थे।

राम आंदोलन के समय अयोध्या बाहरी मीडिया का केंद्र था और जनमोर्चा यहां का मेज़बान बनके देशभर के पत्रकारों का मददगार और मार्गदर्शक बनता था।

जनमोर्चा की विश्वसनीयता को ताकत देने वाले इस अखबार के संपादक शीतला सिंह थे। शीतला सिंह का मतलब जनमोर्चा था और जनमोर्चा का अर्थ शीतला सिंह था। देश के मशहूर वयोवृद्ध पत्रकार, प्रेस कौंसिल के पूर्व सदस्य और जनमोर्चा के संपादक शीतला सिंह का फैजाबाद के एक अस्पताल में निधन हो गया।

अपनी पत्रकारिता को जनमोर्चा अखबार में समर्पित करने वाले शीतला सिंह ने बतौर संपादक अपने अखबार को अवध की पत्रकारिता की ऐसी भीनी-भीनी खुशबू बना दिया था जिसकी ख़बरों की सुगंध पूरे देश की मीडिया में महकने लगी थी। ख़ासकर नब्बे के शुरुआती दशक में उनके इस स्थानीय अखबार से लोग अयोध्या के नए मिजाज़ की पड़ताल करते थे।

अवध से लेकर पूरब में भी जनमोर्चा की पहचान थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की एक तस्वीर अक्सर खूब वायरल होती है, वो जब गोरखपुर के सांसद थे तब की इस तस्वीर में योगी पठन-पाठन कर रहे हैं और उनकी गोद में एक वानर बैठा है। और सामने जनमोर्चा रखा है।

धारदार पत्रकारिता से एक स्थानीय अखबार को बड़ी पहचान दिलाने का दौर अब खत्म हो गया। कॉरपोरेट जगत ने अपनी दौलत के बूते अखबारों और पूरे मीडिया जगत मे पत्रकारिता को जैसे खरीद लिया हो। पत्रकारिता का संतुलन, निष्पक्षता मर्म, सिद्धांत और मूल्यों की मौत के साथ शीतला सिंह जैसे पत्रकारों की मौत और भी रुलाती है।

- नवेद शिकोह

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