क्या आप जानते हैं महाभारत के बाद कैसे हुई थी धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती की मृत्यु?

क्या आप जानते हैं महाभारत के बाद कैसे हुई थी धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती की मृत्यु?

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महाभारत के युद्ध के बाद जब पांडवों की जीत हुई, तो क्रोध में गांधारी में जहां श्रीकृष्ण को वंश नाश का श्राप दे दिया था, वहीं पुत्रों के मौत के दुःख में डूबे धृतराष्ट्र ने भीम को मारने का प्रयास किया था। भीम ने जिस तरह से दुर्योधन के रक्त से द्रौपदी के बाल धुलवाकर अपना वचन पूरा किया था, उसके बाद धृतराष्ट्र भीम से बहुत ही क्षुब्ध थे। युद्ध के बाद युधिष्ठिर को हस्तिनापुर का राजपाट मिला और उन्होंने कई वर्षों तक हस्तिनापुर पर राज भी किया। लेकिन कहते हैं कि भीम भी धृतराष्ट्र से बहुत अधिक प्रसन्न नहीं रहते थे और उन्हें ताना मारा करते थे। हालांकि, पांडवों की माता कुंती धृतराष्ट्र और गांधारी का पूरा ध्यान रखती थीं।

एक दिन भीम के तानों से दुखी होकर धृतराष्ट्र और गांधारी ने वन में जाकर तप करने का निश्चय किया। ये सोचकर वे दोनों महल छोड़कर वन में चले गए। संजय ने भी उनके साथ चलने का निर्णय लिया। वहाँ वे जाकर तपस्या करने लगे और तपस्वियों के जैसा जीवन व्यतीत करने लगे। जब तीनों के वन में गए काफी समय हो गया और एक दिन देवर्षि नारद युधिष्ठिर के पास पहुंचे, तो युधिष्ठिर ने उनसे धृतराष्ट्र, गांधारी और अपनी माता कुंती के बारे में पूछा। युधिष्ठिर जानते थे कि नारद मुनि को तीनों लोकों की खबर रहती है। उन्हें उन सबकी भी खबर जरूर होगी।

तब युधिष्ठिर को नारद मुनि ने बताया कि जब धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती हरिद्वार के पास वन में रहकर तपस्या कर रहे थे लेकिन एक दिन वन में भयंकर आग लग गई। दुर्बलता की वजह से धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती भाग नहीं सके। तब उन्होंने उसी आग में प्राण त्यागने का विचार किया और वहीं एकाग्रचित्त होकर बैठ गए। इस तरह धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती की मृत्यु हो गई। वहीं संजय आग के समय वन को छोड़कर हिमालय की ओर प्रस्थान कर जाते हैं। वहां उन्होंने एक सन्यासी की तरह अपना जीवन व्यतीत किया।

नारद मुनि से धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती की मृत्यु की बात सुनकर पांडव दुखी हो गए। तब देवर्षि नारद ने सभी को सांत्वना दी। इसके बाद युधिष्ठिर ने विधिपूर्वक सभी का श्राद्ध कर्म किया। ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देकर उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की। कुछ साल बाद पांडव अपने कार्यों को पूरा करके स्वर्ग चले गए और भगवान कृष्ण अपने बैकुंठ धाम को चले गए। तभी से कलियुग का आरंभ होता है।

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