बहुत याद आते हैं देव साहेब: अपने अभिनय, व्यक्तित्व और अदाओं से मोह लेने वाला सदाबहार सितारा!

बहुत याद आते हैं देव साहेब: अपने अभिनय, व्यक्तित्व और अदाओं से मोह लेने वाला सदाबहार सितारा!

धरमदेव पिशोरीमल आनंद, जिन्हें दुनिया देव आनन्द के नाम से जानती है, आज पूरे 100 साल के हो गये होते यदि वह हमारे बीच होते। फिल्म जगत एवं उनके करोडों चाहने वाले उनकी जन्म शताब्दी मना रहे हैं। उनके फिल्मी सफर और योगदान के बारे में पहले ही बहुत कुछ लिखा, पढ़ा व सुना जा चुका है और लिखा जाता रहेगा। फिर भी अपने विचार एवं भावनायें व्यक्त करने तथा आज की पीढ़ी के सामने उनकी कहानी संक्षेप में दोहराने को जी चाहता है।

वे एक फिल्मी हीरो ही नहीं थे, बल्कि अपने आप में एक संस्था थे और युवा पीढ़ी के प्रेरणास्रोत थे। वह बहुआयामी प्रतिभा के धनी, आधुनिक एवं उन्नतिशील व्यक्ति थे। 6 दशक तक उन्होंने अपने शानदार व्यक्तित्व, अभिनय फिल्म निर्माण तथा फिल्म जगत को अपने योगदान से प्रभावित किया। यह बहुत ख़ुशी की बात है कि उनके जन्म शताब्दी के अवसर पर देश के विभिन्न सिनेमाघरों एवं टीवी चैनलों पर उनकी चुनिन्दा फिल्में दिखाई जा रही हैं तथा विभिन्न पत्र पत्रिकाओं द्वारा उन्हं याद किया जा रहा है।

देव साहब ने नायकत्व को फिल्मी पर्दे पर अपने ढंग से परिभाषित किया। अपने परिश्रम, योग्यता एवं सम्मोहन के बल पर उन्होंने फिल्म उद्योग में बहुत ऊंचा मुकाम हासिल किया। युवाओं में उनके प्रति दीवानगी अतुलनीय थी। चार पीढ़ियों के वह सदाबहार हीरो रहे। उनके बाद आज तक केवल राजेश खन्ना को उस स्तर तक युवाओं का प्यार मिला था। मगर देव आनन्द को उनके फिल्मी जीवन और बाद में भी जो सम्मान राष्ट्रीय व अन्तराष्ट्रीय स्तर पर प्राप्त हुआ, वह बहुत ही कम कलाकारों को मिल पाया। फिल्म उद्योग के लिये वह एक व्यक्ति व कलाकार के रुप में प्रेरणास्रोत हैं।

जीवन के अनेक उतार चढ़ावों, सफलता, असफलता एवं अन्य पहलुओं पर उन्होंने अपने विचार एवं अनुभव बड़ी बेबाकी से अपनी जीवनी ’रोमेन्सिग विद लाइफ’ में कलमबद्ध किये हैं। यहंI मेरी व्यक्तिगत राय में उनके फिल्मी कैरियर के सफर को ब्लैक एण्ड व्हाइट और रंगीन सिनेमा के दो भागों में परिभाषित किया जा सकता है। इसमें ब्लैक एण्ड व्हाइट युग में उनका अभिनय बहुत ही स्वाभाविक एवं सिद्धहस्त था और वह सफलता की उच्चतम सीमा पर पहुंचे दिखाई पड़ते हैं। रंगीन सिनेमा के भाग में अपने फैन्स की दीवानगी को देखकर वह अपने को टाइप-कास्ट कर लेते हैं।

यद्यपि इस रंगीन दौर के आरम्भ में उनकी सफलतम फिल्में जैसे, गाइड, ज्वैल थीफ, जानी मेरा नाम और अन्य फिल्में भी सफल हुईं थीं। इसके अलावा इसी दौर में उन्होंने कुछ सफल फिल्मों का निर्माण एवं निर्देशन भी किया जैसे- हरे राम हरे कृष्ण, तेरे मेरे सपने, देस परदेस आदि। इसके अलावा भी उनकी 70 एवं 80 के दशक में कई फिल्में सफल रहीं। 1990 के बाद उनकी फिल्मों को उतनी सफलता नहीं मिली। फिर भी वह अपनी फिल्म निर्माण की दीवानगी के चलते सफलता असफलता की परवाह किये बिना नये नये विषयों पर फिल्में बनाते रहे।

इस अवसर पर उनके सम्मोहन को बार बार देखने के लिये मैं उनकी फिल्मों के अनके गीतों में से कुछ के बोल यहंI लिखना चाहूंगा जैसे - है अपना दिल तो आवारा, न जाने किसपे आयेगा; तू कहां ये बता, माने न मेरा दिल दिवाना; ऐसे तो न देखो कि हमको नषा हो जाये; ये दिल न होता बेचारा, कदम न होते आवारा; पल भर के लिये कोई हमें प्यार कर ले। इन जैसे अनेक गीतों में अपनी विषिष्ट अदाओं से देव साहब ने फिल्म प्रेमियों को दीवाना बना दिया था और इन गीतों को सिनेमा के पर्दे पर देखकर ऐसा लगता है कि उनसे बेहतर अदायगी कोई और कर ही नहीं सकता।

बाकी देव आनन्द के जीवन, घटनाओं, सम्बन्धियों, साथी कलाकारों, फिल्मों आदि के विषय में पहले ही काफी लिखा जा चुका है और इस अवसर पर भी लोग उनके और उनकी फिल्मों के बारे में लिख रहे हैं। मैं उनके जीवन दर्शन को उन्हीं की फिल्मों के कुछ गीतों के माध्यम से यहंI लिखकर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूं –

- हम हैं राही प्यार के हमसे कुछ न बोलिये, जो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए

- मैं जिन्दगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया

- कोई सोने के दिलवाला, कोई चांदी के दिलवाला, शीशे का है मतवाले तेरा दिल

- गाता रहे मेरा दिल, तू ही मेरी मंजिल I

सलाम देव साहब!

— किशोर कुमार, नयी दिल्ली

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