बसपा की सधी चालों से कई सीटों पर इंडिया और एनडीए गठबंधन का बिगड़ सकता है समीकरण

बसपा की सधी चालों से कई सीटों पर इंडिया और एनडीए गठबंधन का बिगड़ सकता है समीकरण

लखनऊ, अप्रैल 6 (TNA) भाजपा की बी-टीम होने के आरोपों का सामना कर रही बसपा, विपक्षी गठबंधन अथवा भाजपा के साथ जाने जैसे सारे कयासों को खारिज करते हुए लोकसभा 2024 के चुनाव में एकला चलों की राह पर निकल पड़ी है। भाजपा को इससे होने वाले त्रिकोणीय मुकाबले में भले ही अपना लाभ दिख रहा हो, लेकिन जिस सधी चाल से मायावती अपने प्रत्याशियों के पत्ते खोल रही है, उससे इंडिया गठबंधन को तो कम नुकसान, उत्तर प्रदेश में भाजपा के मिशन-80 की राह में रोड़े खडे होने के रूप में ज्यादा देखा जा रहा है।

राजनीतिक समझ रखने वालों का मानना है कि दरअसल, मायावती इस बार ऐसी सियासी बिसात बिछाने में जुटी है, जिसके उनकी पार्टी पर लग रहे आरोप न केवल धुल जाए, बल्कि लोकसभा में कम से कम पिछली बार जैसा प्रतिनिधित्व हासिल हो सके। सपा-रालोद के साथ गठबंधन में 2019 के चुनावी समर में उतरी बसपा को दस सीटे मिली थी। यह दीगर बात है कि इस बार उनमें से सिर्फ नगीना से सांसद गिरीश चंद्र जाटव ही चुनावी मैदान में हैं, वह भी बुलंदशहर से चुनाव लड़ रहे हैं।

बुधवार को मायावती ने पार्टी प्रत्याशियों की तीसरी सूची जारी की। 12 उम्मीदवारों की इस सूची में दो मुस्लिम, तीन ब्राह्मण, तीन अनुसूचित जाति, दो ओबीसी, एक ठाकुर और एक खत्री को जगह मिली है। इस तरह बसपा ने यूपी में अभी तक 37 सीटों पर उम्मीदवारों का एलान कर चुकी है।

वैसे तो पार्टी का वोट प्रतिशत लगातार गिर रहा है, और प्रमुख विपक्षी दलों समेत आम लोगों के बहस-मुबाहिसों में भी इस पार्टी से अब कोई चमत्कार की उम्मीद नहीं की जा रही है, लेकिन जिस तरह अभी तक जातीय समीकरणों को ध्यान में रखकर प्रत्याशी उतारे गए हैं, उससे कुछ सीटों पर सपा-कांग्रेस गठबंधन तो ज्यादा सीटों पर भाजपा गठबंधन का समीकरण गड़बड़ा सकता है। उसमें सोशल इंजीनियरिंग के फॉर्मूले साथ-साथ दलितों-मुसलमानों गठजोड़ और पिछड़ों को भी साधने की कोशिश दिखती है।

पहली सूची में 16 और दूसरी में 9 प्रत्याशी घोषित किए गए। उन 25 सीटों और उतारे गए उम्मीदवारों पर नजर डालें तो मुस्लिम बहुल सात सीटों पर मुरादाबाद, अमरोहा, सहारनपुर , संभल, रामपुर, आंवला और पीलीभीत तथा तीसरी सूची में दो-कन्नौज और लखनऊ में मुस्लिम चेहरों पर दांव लगाकर सपा-कांग्रेस गठबंधन का खेल बिगाड़ने की कोशिश की गई है।

हालांकि राजनीतिक जानकार मानते है कि सपा-कांग्रेस के साथ आने से मुस्लिम मतों में बिखराव की संभावना कम है। वहीं दूसरी ओर मेरठ, कैराना, बिजनौर, मुजफ्फनगर और बागपत जैसी मुस्लिम बहुल सीटें, जहां 34 से 40 फीसदी तक मुस्लिम वोटर है, वहां हिन्दू प्रत्याशी उताकर भाजपा की राह मुश्किल बनाने की कोशिश की गई है। कैराना में एक तिहाई मुस्लिम वोटर है, वहीं सवर्ण, ओबीसी और दलितों की मिली-जुली आबादी है।

ऐसे में ठाकुर प्रत्याशी श्रीपाल राणा को उतारकर मुस्लिम, ठाकुर और दलित समीकरण को साधा गया है। इसी तरह मेरठ में 37 फासदी मुस्लिम वोटर बताए जाते हैं, लेकिन यहां देवब्रत त्यागी को उतारकर भाजपा के त्यागी मतों में सेंधमारी करने की रणनीति बनाई गई है। इसी तरह अकबरपुर सीट पर ब्राह्मण प्रत्याशी देकर, भाजपा के ब्राह्मण वोटबैंक में बंटवारा कर सपा-कांग्रेस गठबंधन की राह आसान की है। नोयडा, मथुरा, फिरोजाबाद और अयोध्या जैसी सीटों पर भी बसपा ने भाजपा की सियासी गणित उलझा दिया है।

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