बिस्मिल्लाह खान से जुड़ी याद और उनका गोरखपुर में हुआ एक कार्यक्रम...
आज से तकरीबन 40-45 साल पहले एक प्रशासनिक अधिकारी वाराणसी में पोस्ट हुए। कुछ दिनों के बाद उनका मन उस्ताद बिस्मिल्लाह खां साहब से मिलने को हुआ। वे बिस्मिल्ला खां साहब का पता जानना चाहते थे। बात निचले स्तर पर थाने पर पहुंची तो लगा कि साहब को बिस्मिल्लाह चाहिए। एक सिपाही बिस्मिल्लाह खां साहब के घर गया और अपने साथ थाने ले आया और ऊपर खबर भेजी की बिस्मिल्लाह मिल गया।
जब साहब को खबर मिली तो घबरा कर थाने पहुंचे और माफी मांगी और बिस्मिल्लाह खां साहब को अपनी गाड़ी में घर छोड़ने गए। इसके ठीक विपरीत महेंद्र लालका जी गोरखपुर के एसएसपी हुए 1982 में जमी पर सितारे नाम के प्रोग्राम के लिए बिस्मिल्लाह खां साहब को मुख्य अतिथि बनाया।
रेलवे स्टेशन पर बिस्मिल्लाह खान साहब का एसएसपी महोदय ने जोश खरोश के साथ स्वागत किया और फिर एक जुलूस के साथ पुलिस लाइन में लाए और खुली जीप में चक्कर लगाया जहां उपस्थित लोगों ने खड़े होकर सम्मान दिया। लालका जी ने उस्ताद बिस्मिल्लाह खां से पुलिस और समाज के लोगों द्वारा अच्छा कार्य करने के लिए पुरस्कार दिलाए।। इसके बाद उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ने पुलिस के जवानों के साथ बड़े खाना मैं हिस्सा लिया।
बिस्मिल्लाह खान इस बात से खुश थे लालका जी उनके व्यक्तिव का सम्मान किया और यह पहली बार था कि उस्ताद बिस्मिल्लाह को शहनाई बजाने को नही कहा गया। लालका जी आजकल विदेश में वहां से जानकारी दी कि इस प्रोग्राम में मालिनी अवस्थी और उनकी बहन ने एक सुंदर गीत सुनाया जो बिस्मिल्लाह खां साहब को बहुत पसंद आया था।
1982 में मैंने उस्ताद बिस्मिल्लाह खां के गोरखपुर सम्मान की समारोह पूरी रिपोर्ट ब्लिट्ज में छापी थी। एक बार बिस्मिल्लाह खां साहब जब लखनऊ आए तो प्रधामंत्री नेहरू के कहने पर 15 अगस्त 1947 को लाल किले पर शहनाई बजाने के अलावा इन दोनों घटनाओं का जिक्र शहर की जानीमानी हस्ती उच्च न्यायालय के सीनियर एडवोकेट और हमारे मित्र आईबी सिंह जी से किया।