मिशन 2022 : सोशल इंजीनियरिंग के सहारे पूर्वांचल की 170 सीटों को साधने में जुटी भाजपा

मिशन 2022 : सोशल इंजीनियरिंग के सहारे पूर्वांचल की 170 सीटों को साधने में जुटी भाजपा

लखनऊ, जून २५ (TNA) उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव आठ माह बाद होने हैं। इसको लेकर भाजपा संगठन पूरी तरह चुनावी मोड में आ चुका है। मिशन 2022 को लेकर पार्टी के तरफ से चल रहे मंथन के तहत प्रथम चरण में छोटे दलों पर इसकी निगाहें टिकी है। इन दलों के साथ पूर्व में बढी कडवाहट को कम कर पार्टी सोशल इंजीनियरिंग को अपने पक्ष में करने में जुटी है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि पिछले विधान सभा चुनाव में पूर्वांचल की सीटों पर मिली ऐतिहासिक जीत को एक बार फिर दोहराने के लिए पार्टी कोई कसर छोड़ना नहीं चाहती है।

चुनावी रणनीतिकारों का मानना है कि यूपी विधान सभा चुनाव का परिणाम आगामी लोकसभा चुनाव के भविष्य को तय करेंगे।ऐसे में भाजपा नेतृत्व विधान सभा चुनाव को अपना सेमी फाइनल मान कर चल रहा है।पिछले चुनाव में विधान सभा की कुल 403 सीटों में से भाजपा ने 325 सीट हासिल कर सपा बसपा के उम्मीदों पर पानी फेर दी थी।इसमें सपा को 47 व बसपा को सिर्फ 19 सीटों पर संतोष करना पड़ा था।

एक बार फिर जब विधान सभा चुनाव का बिगुल बजना है, ऐसे वक्त पर भाजपा आत्ममंथन में जुटी है। इसमें शीर्ष नेतृत्व को मिले फीड बैक के मुताबिक उत्साहजनक संदेश नहीं है। इसके बाद से भाजपा के साथ ही अब आरएसएस भी "बीती ताहि बिसार दे आगे की सुधि लेई" दर्शन की ओर बढ़ना चाह रही है।ऐसे में किसान आंदोलन के चलते उत्पन्न हुए हालात में राज्य की पश्चिम की सीटों को लेकर बढ़ी चिंता के बीच पूर्वांचल के गढ़ को बरकरार रखना चाहती है।

समाजवादी पार्टी को इस इलाके में पिछली बार केवल 20 सीटें ही मिल पाई थी।हालांकि 170 सीटों पर समाजवादी पार्टी को या तो जीत मिली अन्यथा व दूसरे-तीसरे नंबर की पार्टी रही है। इसके बावजूद जब 2019 में लोकसभा चुनाव हुए तो समाजवादी पार्टी को एक बार फिर पूर्वी उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने खासा समर्थन दिया।

पूर्वांचल की जीत ही तय करता रहा है सत्ता का स्वरूप

प्रदेश की चुनावी राजनीति में पूर्वी उत्तर प्रदेश की 170 विधानसभा सीटों की खासी अहमियत है। यही वजह है कि भाजपा के साथ ही सपा भी यहां नजर गड़ाए हुए है। सैफई से मध्य यूपी की राजनीति पर पकड़ बनाए रखने के साथ ही सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आजमगढ़ में अपना ठिकाना बनाया हैं।

यहां अपना आशियाना बनाकर पूर्वी उत्तर प्रदेश के साथ भावनात्मक एवं राजनीतिक जुड़ाव का संदेश देने की कोशिश रही है। पिछली तीन सरकारों के दौरान इस इलाके में जिस दल को ज्यादा समर्थन मिला, उसी की सरकार यूपी में बन सकी है।

2012 के विधानसभा चुनाव में इस इलाके में सपा-बसपा के बीच सीधी टक्कर रही लेकिन बाजी सपा के हाथ में लगी। 2017 के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी का इस इलाके में लगभग सफाया हो गया और पूर्वी उत्तर प्रदेश की 170 में से भाजपा ने 130 सीटें हथिया लीं।

समाजवादी पार्टी को इस इलाके में पिछली बार केवल 20 सीटें ही मिल पाई थी।हालांकि 170 सीटों पर समाजवादी पार्टी को या तो जीत मिली अन्यथा व दूसरे-तीसरे नंबर की पार्टी रही है। इसके बावजूद जब 2019 में लोकसभा चुनाव हुए तो समाजवादी पार्टी को एक बार फिर पूर्वी उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने खासा समर्थन दिया।

आजमगढ़ सीट से लगातार दूसरी बार सपा को जीत दिलाई। विधानसभा उपचुनाव में भी समाजवादी पार्टी ने पूर्वी उत्तर प्रदेश की सीटों पर भाजपा को कड़ी टक्कर दी और जौनपुर में अपनी एक सीट वापस हासिल कर ली। उधर भाजपा की बात करें तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य इसी हिस्से से आते हैं। नए विधान परिषद सदस्य अरविंद शर्मा भी इसी इलाके से है।

जिनके सहारे भाजपा पूर्वांचल में अपना गढ़ बरकरार रखने की पूरी कोशिश में लगी है।

अपने सहयोगी दलों को मनाने की भाजपा की फिर कोशिश

पिछले विधानसभा चुनाव की कमान संभालने वाले गृहमंत्री अमित शाह इस बार भी मिशन यूपी के लिए सक्रिय हो गए हैं। भाजपा की नजर अपने पूर्व और नाराज सहयोगी दलों को फिर से वापस लाने की ओर है। लिहाजा पार्टी अपना दल, सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, निषाद पार्टी को साधने में जुट गई है।ये सभी दल पूर्वांचल के राजनीतिक समीकरण बनाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इसी क्रम में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल से हाल में ही दिल्ली में मुलाकात की थी।

कहा जाता है कि मुलाकात के दौरान अनुप्रिया पटेल ने प्रदेश की कैबिनेट में दो मंत्री पद की मांग की है। इससे पहले पार्टी ने अनदेखा किये जाने का आरोप लगाया था। बता दें कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में अनुप्रिया पटेल को केंद्रीय कैबिनेट में जगह नहीं मिली। जबकि पहले कार्यकाल में वह केंद्रीय स्वास्थ्य राज्यमंत्री थीं। वहीं अनुप्रिया पटेल के पति आशीष पटेल जो अपना दल (एस) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पार्टी के एमएलसी भी हैं, उन्हें उत्तर प्रदेश सरकार में जगह नहीं मिली।

आशीष पटेल ने कहा था कि प्रदेश भाजपा नेतृत्व हमे सम्मान नहीं दे रहा है जिसके हम हकदार हैं। उन्होंने केंद्रीय नेतृत्व के हस्तक्षेप की मांग की थी। हालांकि अब बीजेपी फिर से इस दल को मनाने में जुट गई है। गलियारों में चर्चा है कि अपना दल (एस) की अध्यक्ष अनुप्रिया पटेल को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया जा सकता है। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद उन्हें केंद्र में राज्यमंत्री बनाया गया था, लेकिन 2019 में उन्हें कोई पद नहीं दिया गया, जिससे वह नाराज चल रही थीं। हालांकि वह कभी भी भाजपा के खिलाफ हमलावर नहीं दिखी, लेकिन अब 2022 चुनाव नजदीक हैं और भाजपा नहीं चाहती को सहयोगी दलों में कोई मनमुटाव रहे।

सूत्रों की मानें, तो अनुप्रिया, हरसिमरत कौर बादल की जगह केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो सकती हैं। यहीं नहीं कहा जा रहा है कि गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात में उन्होंने यूपी कैबिनेट में भी अपने पति आशीष पटेल, तो जिला पंचायत अध्यक्ष, प्रदेश के निगमों व आयोग में पार्टी नेताओं को शामिल करने की मांग की है।जिसके तहत पार्टी ने अपना दल को जिला पंचायत अध्यक्ष की सीट दी भी है।

दूसरी तरफ अमित शाह और हाल ही में भाजपा में शामिल हुए पूर्व आईएएस अधिकारी एके शर्मा ने निषाद समाज के नेता डॉक्टर संजय कुमार निषाद और संत कबीर नगर के सांसद प्रवीण निषाद से भी मुलाकात की। खबरों के अनुसार संजय ने कहा कि पार्टी ने निषादों समेत 14 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का वादा किया था लेकिन कुछ नहीं हुआ। उन्होंने निषादों को तालाबों-पोखरों में पट्टे में 10 लाख रुपये फीस लिए जाने के मुद्दे को उठाया और उन्हें निषाद समाज की समस्याओं की जानकारी दी।

अमित शाह ने उन्हें आश्वासन दिया है कि वह अफसरों के साथ बैठकर इस पर मंथन करेंगे और जल्द ही कोई निर्णय लिया जाएगा। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी मुलाकात का वक्त मांगा है। इन मुलाकातों के बीच पूर्व आईएएस अधिकारी और एमएलसी एके शर्मा ने भी निषाद पार्टी के प्रमुख नेताओं से मुलाकात की। इसके बाद उन्होंने ट्वीट कर बताया, ‘‘निषाद समाज के प्रिय नेता, पार्टी सुप्रीमो एवं मछुआरा समाज के राजनीतिक ‘गाडफादर’ संजय कुमार निषाद एवं संत कबीर नगर से लोकप्रिय सांसद प्रवीण निषाद जी से शुभेच्छा मुलाक़ात हुई। इन समाज के लोगों के विकास हेतु साथ में कार्य करेंगे।’’

उधर भाजपा के एक बड़े नेता ने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रमुख ओमप्रकाश राजभर को मनाने की कवायद शुरू की है। 2019 के लोकसभा चुनाव के मतदान खत्म होने के अगले ही दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ओमप्रकाश राजभर को कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। जिसके बाद पंचायत चुनाव में उन्होंने ओवैसी के साथ मिलकर एक मोर्चा भी बनाया।

हालांकि ओम प्रकाश राजभर ने ट्वीट करके कहा, ’भाजपा डूबती हुई नैया है, जिसको इनके रथ पर सवार होना है, हो जाये, पर हम सवार नहीं होंगे, जब चुनाव नजदीक आता है तब इनको पिछड़ों की याद आती है जब मुख्यमंत्री बनाना होता है तो बाहर से लाकर बना देते है, हम जिन मुद्दों को लेकर समझौता किये थे साठे चार साल बीत गया एक भी काम पूरा नहीं हुआ।’

राजभर समाज का पूर्वांचल में निर्णायक मत

पूर्वांचल के कई जिलों में राजभर जाति का वोट राजनीति समीकरण बनाने और बिगाड़ने की हैसियत रखता है। प्रदेश में राजभर समुदाय की जनसंख्या लगभग 3 फीसदी है लेकिन पूर्वांचल के जिलों में राजभर मतदाताओं की संख्या 12 से 22 प्रतिशत है। ओमप्रकाश राजभर को साथ लाने की बड़ी वजह पूर्वांचल में राजभर मतदाताओं को सहेजने की है। पूर्वांचल के चंदौली, गाजीपुर, बलिया, मऊ, आजमगढ़, देवरिया, अंबेडकरनगर, लालगंज, जौनपुर, मछलीशहर, मिर्जापुर, वाराणसी व भदोही में राजभर समाज की बड़ी आबादी है, जो प्रदेश की करीब चार दर्जन विधानसभा सीटों पर असर डाल सकती है। हाल के पंचायत चुनाव में पूर्वांचल में सुभासपा का प्रदर्शन भी अच्छा रहा है। पीएम मोदी की संसदीय क्षेत्र वाराणसी में सुभासपा को जीत भी मिली। ऐसे में भाजपा का शीर्ष नेतृत्व ओपी राजभर को गठबंधन में वापस चाहता है।

उधर समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव व पूर्व सांसद रामाशंकर राजभर कहते हैं कि बदली राजनीतिक परिस्थितियों में राजभर समाज अपने को ठगा हुआ महसूस कर रहा है। ओमप्रकाश राजभर ने पिछले विधान सभा चुनाव में भाजपा से गठबंधन में चार सीटें ली थी। जिसमें से एक सीट अपने दल के बाहर के व्यक्ति को दे दी तो तीन सीटों पर अपने स्वयं, बेटा व समधि को चुनाव लडवाया। हालांकि चारों सीटों में से सिर्फ ओमप्रकाश राजभर को गाजीपुर जिले के जहुराबाद से विजय मिली।

उन्होंने पार्टी के अन्य नेताओं को तरजीह नहीं दी।जिसका नतीजा है कि राजभर समाज को सरकार व सुभासपा से निराशा हाथ लगी।राजभर समाज ने बनारस की शिवपुर से भाजपा के अनिल राजभर,अंबेडकर नगर के अकबरपुर सीट से बसपा के रामअचल राजभर,आजमगढ के लालगंज सीट से बसपा के सुखदेव राजभर,घोषी से भाजपा के विजय राजभर को जीत दिलाई।पिछले विधान सभा चुनाव में सपा ने राजभर समाज को एक भी टिकट न देने की गलती की।इस बार राजभर समाज सपा से उम्मीद लगाया है।

राजभर समेत अन्य छोटी छोटी जातियों के साथ सपा इस बार एका स्थापित कर राजनीतिक समीकरण अपने पक्ष में साधने की कोशिश करेगी व इसमें सपफलता भी मिलेगी।ऐसे में यह तय है कि भाजपा सपा समेत सभी दल सोशल इंजीनियरिंग को अपने पक्ष में करने के लिए कोई भी कोशिश गंवाना नहीं चाहेगी।

(लेखक पत्रकार हैं, विचार उनके निजी हैं)

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