लखनऊ सैन्य साहित्य सम्मेलन: लेखकों ने कहा 1962 का भारत-चीन युद्ध भारतीय सैनिक नहीं हारे, सरकार हार गई थी!

लखनऊ सैन्य साहित्य सम्मेलन: लेखकों ने कहा 1962 का भारत-चीन युद्ध भारतीय सैनिक नहीं हारे, सरकार हार गई थी!

"विषम परिस्थितियों में भी भारतीय सैनिकों की, निस्वार्थ भावना से प्रेरित देश प्रेम अनुकरणीय, के संबंध में लखनऊ सैन्य साहित्य सम्मेलन के छठे सत्र में "1962 के युद्ध की कुछ अनसुनी और अनकही बातें" पर चर्चा के दौरान, सत्य घटनाओं पर आधारित, "बोमडिला" उपन्यास के लेखक प्रोफेसर अविनाश बीनीवाल ने उपरोक्त बातें कहीं । "बोमडिला" उपन्यास, देश में संस्कृत समेत' सात भाषाओं में अनुवादित हो चुका है ।

इस उपन्यास का लेखन 1962 के युद्ध क्षेत्र में बसे आम जनों की बेबाक राय और कथानक पर आधारित है ।यहां इस तथ्य को दुहराना आवश्यक है कि 10 अक्टूबर 1962 के ही दिन, नाम- का-चू घाटी में भारत और चीनी सेनाओं के बीच बड़ी झड़प हुई थी, जिसके बाद, 20 अक्टूबर 1962 को, चीनी सेनाओं ने नेफा और लद्दाख के क्षेत्रों में सुनियोजित ढंग से भारत पर आक्रमण कर दिया था।

पुणे स्थित प्रोफेसर बेनीवाल ने कुछ अनसुने तथ्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शत्रु देश ने किस प्रकार भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों में गुप्त- चरों का जाल फैला रखा था जो कि चिंता का विषय होना चाहिए था, परंतु असफल तंत्र में संभवतः यह भी अनदेखा रह गया ।प्रोफेसर बेनीवाल ने विदेशी सैनिकों से अपने साक्षात्कार और अनुभवों का जिक्र करते हुए कहा कि अन्य देशों की अपेक्षा, भारतीय सैनिकों का देश के प्रति सेवा -भाव, निस्वार्थ है और इसलिए अनुकरणीय भी है ।

परिचर्चा में भाग लेते हुए एक अन्य लेखिका, प्रयागराज विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर नीलम शरण गौड़ ने अपनी पुस्तक "62 की बातें" के कुछ मुख्य अंशों का उद्धरण करते हुए युद्ध काल के सामाजिक परिवेश का ताना-बाना बुना था । युद्ध के दौरान भारतीय सेना के पास संसाधनों की कमी का एहसास, भारतीय जनमानस को इतना झिझोड़ गया था कि बच्चों ने गुल्लक बनाकर आस-पड़ोस से चंदा एकत्र करने का प्रयास कर अपनी राष्ट्रीय चेतना की पुष्टि की ।

इसी प्रकार महिलाओं ने अपने आभूषण और छोटी-छोटी बचत से जमा पूंजी, सरकार द्वारा स्थापित, "इंडिया डिफेंस फंड" में दान कर दिया था। यद्यपि कालांतर में इस फंड के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध नहीं है परंतु अनुमानतः, जनभागीदारी से लगभग ₹80 करोड़ एकत्र हुए थे। यह खेद का विषय है कि इस फंड का कुछ अंश लापता बताया जाता है ।

प्रोफेसर नीलम शरण ने अपने लेखन के माध्यम से सुदूर उत्तर -पूर्व में लड़े गए भारत चीन युद्ध का, समाज पर पड़ने वाले प्रभाव का, सशक्त चित्रण किया है। कार्यक्रम का संचालन, मेजर जनरल हेमंत कुमार सिंह ने किया। लखनऊ सैन्य साहित्य का आयोजन आभासी माध्यम से किया जा रहा है और इसका समापन, आगामी नवंबर माह के अंतिम सप्ताह में होगा।

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