लखनऊ, जुलाई 31 (TNA) प्रेमचंद को हिंदी और उर्दू के महान लेखकों में शुमार किया जाता है। उनकी रचनाओं को देखकर बंगाल के विख्यात उपन्यासकार शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने उन्हें 'उपन्यास सम्राट' की उपाधि दी थी। प्रेमचंद की रचनाएं हिंदी साहित्य की धरोहर हैं।
मुंशी प्रेमचंद जी का जन्म 31 जुलाई 1880 को काशी (अब वाराणसी) से थोड़ी दूर स्थित लमही नामक गांव के एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम अजायब राय था। वह एक पोस्टमैन थे । पिता अजायब राय ने अपने बेटे का नाम धनपत राय रखा, लेकिन बाद में वह पहले नवाब राय और फिर मुंशी प्रेमचंद के नाम से जाने गए। कहा जाता है कि कि उनके पिता डाकघर में बतौर मुंशी कार्यरत थे। इसी कारण प्रेमचंद के नाम में मुंशी शब्द जुड़ गया।
काफी छोटी उम्र में ही उनकी माता का देहांत हो गया था। चौदह साल की उम्र में उन्होंने अपने पिता को भी खो दिया। परिवार में पहले से चल रही आर्थिक तंगी, पिता की मौत के बाद और बढ़ गयी। इसके चलते बचपन में ही उन्हें घर की और रोटी कमाने की जिम्मेदारी उठानी पड़ी। उन्होंने ट्यूशन करके की मैट्रिक परीक्षा पास की। उन्होंने स्कूल शिक्षक की नौकरी के दौरान ही स्नातक तक की परीक्षाएं उत्तीर्ण की। अपनी मेहनत और लगन से वह 1921 में गोरखपुर में स्कूल के डिप्टी इंस्पेक्टर बन गए।
बताते हैं कि महात्मा गांधी के सरकारी नौकरी से इस्तीफा देने के आह्वान पर उन्होंने भी अपनी नौकरी छोड़ दी। उसके बाद कुछ समय के लिए उन्होंने कानपुर के मारवाड़ी स्कूल में अध्यापन किया और फिर काशी विद्यापीठ में प्रधान अध्यापक के पद पर कार्य किया। उसके बाद उन्होंने विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया और काशी में एक प्रेस की स्थापना की। प्रेमचंद की पहली शादी कम उम्र में हुई थी, जो सफल नहीं रही। बाद में उन्होंने शिवरानी देवी से दूसरा विवाह किया।
प्रेमचन्द ने 13 साल की उम्र में से ही लिखना शुरू कर दिया था। शुरुआत में कुछ नाटक लिखे और बाद में उर्दू में उपन्यास लिखा। इस तरह उनका साहित्यिक सफर शुरु हुआ, जो अंतिम समय तक हमसफर बना रहा। उन्होंने कुल १५ उपन्यास, ३०० से अधिक कहानियाँ आदि लिखीं। प्रेमचंद की सर्वश्रेष्ठ कहानियों में दो बैलों की कथा, पंच परमेश्वर, ईदगाह, ठाकुर का कुआं, पूस की रात, बड़े घर की बेटी, नमक का दरोगा और कफ़न आदि शुमार है।
उनके उपन्यासों में 'गोदान' सबसे अधिक मशहूर हुआ। विश्व साहित्य में भी उसका बहुत महत्वपूर्ण स्थान है। बताते हैं कि प्रेमचंद ने शुरुआती सभी उपन्यास उर्दू में लिखे, जिनका बाद में हिंदी में अनुवाद हुआ। 1918 में 'सेवासदन' उनका हिंदी में लिखा पहला उपन्यास था। इस उपन्यास को उन्होंने पहले 'बाज़ारे हुस्न' नाम से उर्दू में लिखा, लेकिन हिंदी में इसका अनुवाद 'सेवासदन' के रूप में प्रकाशित हुआ।