एक पत्रकार की मुफलिसी में मौत…

एक पत्रकार की मुफलिसी में मौत…

सियह-बख़्ती में कब कोई किसी का साथ देता है कि तारीकी में साया भी जुदा रहता है इंसाँ से

आज मज़दूर दिवस पर हमारे दोस्त, निहायत मेहनती, ईमानदार और बेबाक सहाफी फैज़ान मुसन्ना इस दुनिया ए फानी से रुखसत हो गए। अभी कुछ दिनों पहले हुसैन अफसर साहब, सीनियर सहाफी की अपील पढ़ कर हम सबने मिल कर उनके लिवर ट्रांसप्लांट के लिए लगभग 4.50 लाख रुपए उनके खाते में जमा कराए थे लेकिन ज़रूरत 15 लाख की थी जिसके लिए मुख्यमंत्री कोष में अप्लाई करना था जो आचार संहिता के कारण इलेक्शन के बाद ही संभव था ।

फैज़ान भाई ने बड़ी लड़ाई की लेकिन अंततः वो हार गए । उनकी फेसबुक वाल उनकी निराश और हताशा बयान करती है । ये वक़्त इस बात को सोचने का है कि समाज का।चौथा स्तंभ कहे जाने वाले पत्रकारिता के कुलीन व्यवसाय में ऐसे ईमानदार पत्रकारों के लिए कोई सामाजिक सुरक्षा के प्रबंध क्यों नहीं है ? उनके मुफ्त इलाज की सुविधाएं क्यों नहीं हैं ? क्यों उनको अप्रशिक्षित मज़दूरों से भी कम वेतन मिलता है ?

क्यों समाज उनके।साथ नहीं आता । फैज़ान मुसन्ना की मौत एक प्रहार है उन सभी के मुंह पर , जो पत्रकार होने का दम्भ भरते हैं और अपने साथी को मरने देते हैं । ये मौत ने केवल एक ईमानदार पत्रकार की धनाभाव और मुफलिसी के कारण हुई मौत है ,बल्कि दोस्ती, ब्यवहारिकता, सामाजिक मूल्यों, रिश्तों की मौत है । अश्रुपूर्ण श्रद्धांजलि फैज़ान भाई, हम अपने सभी संभव प्रयासों के बाद भी आपको बचा न सके ।

मोहम्मद हैदर,

एडवोकेट

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