ईश्वर की शरण में जाएँ ये ना सोचें उसने अपनाया या नहीं...

ईश्वर की शरण में जाएँ ये ना सोचें उसने अपनाया या नहीं...

"भजन", "ध्यान" भी ईश्वर करवा लेंगे,

इस बात में विचार करने की आवश्यकता है, इसे भी वे करवा लेते हैं,

पर प्रारम्भ में इसके असली "तत्व" को "साधक" नहीं समझता..

अत: भजन, ध्यान करना अपना "कर्तव्य" समझे..

अपने "दिल" को इतना साफ सुंदर बना लो कि,

जब भी भगवान को आराम करने की इच्छा हो,

तो वो आपके "दिल रुपी" मंदिर में आराम कर सके,

इसके लिए अपने दिल से व्यर्थ, "नकारात्मक" व बीती बातों को निकाल दें

आपके जीवन में केवल दो ही वास्तविक धन है..

"समय" और "सांसे"

और दोनों ही निश्चित और सीमित हैं..

समझदारी से खर्च करें..

बाकी सब "धूल" है या तो आपकी "भूल" है..

रास्ते कभी खत्म नही होते

बस उन्हें खोजने के लिए

कभी कभी "मेहनत" थोडी

ज्यादा करनी पडती है...

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