नीब करोली बाबा की अनंत कथाएँ : भक्त के घर विशाल बंदर के रूप में जाना और खाना चखना
मैं उन सौभाग्य शाली महिलाओं में से एक हूं जिन्हें बाबा महाराज का आशीर्वाद बाल्यावस्था में ही पर्याप्त हो गया था मेरे पापा (श्री एस बी माथुर डैमपीयर निवासी) एक दिन वृन्दावन आश्रम गए | वृन्दावन आश्रम में बाबा महाराज आए हुए थे जब बाबा वृन्दावन में रहते थे तब पापा भी वृन्दावन में ही रहते थे |
एक बार बाबा ने पापा को बोला माथुर कल तेरे घर चलेंगे पापा बहुत खुश हुए । पापा ने कहा ठीक है चलिए। पापा दूसरे दिन बाबा को लेने वृन्दावन आश्रम गए पर बाबा नहीं मिले। पापा ने कहा ठीक है कल आता हूँ। पापा मेरी मां को बोल कर गए आज तो बाबा को लेकर ही आऊंगा तुम बाबा के पसन्द का भोजन बनाना - चने की रोटी, लौकी डाल कर चने की दाल, खीर ।
पापा वृन्दावन आश्रम चले गए सुबह जल्दी गए जिससे कि बाबा मिल जाए पापा वृन्दावन आश्रम पहुंचे तो देखा बाबा महाराज फिर नहीं मिले पापा बहुत उदास हो कर बैठ गए मन में सोच रहे थे कि सुबह सुबह ठंड में आया हूँ चाय भी पीकर नहीं आया तो देखा सामने से कुल्हड़ में चाय लेकर त्रिलोकी (बाबा का निजी सेवक) आ रहा था, बोला बाबूजी गरम गरम चाय पी लो।
जैसे बाबा महाराज ने ही बोला हो पापा ने चाय पी फिर देखते हैं सामने से बाबा आ रहे हैं पापा ने कहा बाबा महाराज चलिए मैं आपको लेने आया हूँ। बाबा हंस कर बोले तुमने आने में बहुत देर कर दी मैं तो तेरे घर से ही आ रहा हूँ, पापा एक दम चौंक गए पापा बोले अच्छा बाबा बोले माथुर देख माई ने ये ये बनाया था सब खाना बता दिया बोले माई ने खीर बहुत बढ़िया बनाई थी।
पापा घर वापस आए तो मेरी मां बोली बाबा नहीं आए पापा मां की शक्ल देखने लगे मां बोली आज तो छत पर से एक बहुत मोटा बंदर कुदा और रसोई में जाकर सारे बर्तन खोल कर सब थोड़ा थोड़ा खाना खा लिया और भाग गया पापा हंस कर मां से बोले वो ही तो मेरे बाबा थे और भावुक हो कर पापा के आंखों में आसूं आ गए हमारे बाबा की लीला अपरम्पार है।
-- आभा माथुर कुलश्रेष्ठ,
सिकंदरा, आगरा