नीब करोली बाबा का जीवन में अचानक आना, सुखद अहसास, अप्रतिम अनुभव
पिछले साल अप्रैल तक में बाबाजी महाराज के बारे में कुछ भी नहीं जानता था। शायद कहीं कभी देखा होगा चित्र पर कुछ याद नहीं। हमारे घर में बाबा (शिर्डी साई बाबा) स्वयं विराजमान हैं इस वजह से कई बार लोगों द्वारा और कई सिद्ध गुरुओं के बारे में बताने पर भी कभी इच्छा नहीं हुई उनके बारे में कुछ और जानकारी हासिल करने की।
एक दिन, हर रोज़ की तरह मैं घर में बाबा की आरती कर ध्यान मगन था की अचानक एक मोटे से संत स्वरूप अर्ध लेटी अवस्था में आए और बोले, "चल मोए अपने घर ले आ"! मैं कुछ सकपका सा गया की वो कौन हैं, मेरा उनसे कोई परिचय नहीं है ना ही उन्हें कभी देखा है, एक लेटे हुए संत???? बात आयी गयी हो गयी पर फिर दूसरे दिन और तीसरे दिन ये फिर हुआ। वो आए और बोले "चल मोए अपने घर ले आ"!
सच कहूँ तो थोड़ा सा अटपटा लगा, ध्यान में ही साई बाबा से पूछा की ये कौन महाशय हैं जो रोज़ आ जाते हैं और ऐसा कहते हैं। बाबा से मार्ग दर्शन की गुहार लगायी। दो-तीन दिन के बाद साई बाबा ने कहा : मैं तेरा principal हूँ और ये तेरा class teacher, जैसा कहा गया वैसा करो!!! और फिर बाबा ने मौन साध लिया।
मेरा एक पुराना दोस्त जो की साई बाबा को मानता था और जिससे हमारी फ़ोन पर (वो मोरादाबाद में रहता है) आध्यात्मिक चर्चाएँ होती रहती थी। मैं उसको फ़ोन लगा इस सारे स्वप्न की चर्चा की और कहा की शायद वो ऐसे किसी संत को जनता हो। उसने बताया कि वो नैनीताल के कैंची धाम जाता है और शायद जिस संत की मैं बात कर रहा हूँ वो नीब करोली बाबा हैं। उसने मुझसे लखनऊ में ही हनुमान सेतु जाने को कहा। अगले दिन गया और वहाँ बाबाजी महाराज की एक वैसी ही अर्ध लेटे हुई चित्र पर नज़र गयी।
बस फिर क्या था बाबा की प्रतिमा का कार्यक्रम शुरू हुआ। कुछ दिन उपरांत महाराज जी फिर आए और सात लोगों के नाम लिखाए, और कहा जा इनसे आर्थिक मदद माँग, काम हो जाएगा। मैंने मना कर दिया की मैं ऐसा नहीं करूँगा और जब सामर्थ्य होगा तो स्वयं करूँगा। वो मुस्कुराए और बोले माँगने से अहम टूटता है सो माँग, मदद मिलेगी अवश्य। इन सात लोगों में कोई भी बाबा का भक्त नहीं था और नहीं धर्म करम में उनकी कोई रुचि थी।
पर जैसे बाबा ने कहा था उन्होंने मदद की और बाबा जी महाराज का आदेश पूरा हुआ और उनके इस स्वरूप का आगमन घर में September 11, 2019 को सुंदरकांड के साथ हुआ। बाद में किसी ने बताया की उसी दिन १९७३ में बाबा ने शरीर छोड़ समाधि ली थी। संयोगवश ये वो साल था जब मेरा जन्म हुआ था।
बस यही है छोटी सी कहानी महाराज की कृपा की। बाबा का सूक्ष्म रूप जो हमारे घर में विराजमान है उसको बनाने वाले ने साँचा तदोपरांत तोड़ दिया। उसने इसे अपनी आत्मीय इच्छा बताया और कहा ऐसी कृति महाराज जी की कृपा से ही बन पायी और अब दोबारा उसके जीवनकाल में ऐसा हो पाना असम्भव है।
सभी भक्तों पर महाराज जी व उनके गुरुओं की कृपा सदैव बरसती रहे ऐसी मेरी कामना है!