नीब करोली महाराज की अनंत कथाएँ : शंकर भगवान के दर्शन
एक बार महाराज मुझसे (देवकामता दीक्षित) बोले चलो बनारस चले । तुम्हे भगवान शंकर के दर्शन करायेगे । पर बाबा मन्दिर न जाकर सीधे ग्यानव्यापी पहुँच गये । वहाँ विचित्र वेशभूषा में साधू जैसा एक आदमी मिला जिसे नीब करोली महाराज बड़ी अंतरंगता से मिले । महाराजी ने मुझसे कहा "इसे चार आने दे दे ।" मैंने उसे चार आने दे दिये ।
तभी महाराज जी बोले ," सन्त के प्रति बुरे भाव नहीं रखने चाहिये ।" फिर हम सीधे कानपुर आ गये । मैं मन ही मन सोचता रहा कि बाबा ने कहा था कि "शंकर भगवान के दर्शन करायेगे , मगर कराये नहीं ।
बहुत बाद में एक महाशय महाराज जी के दर्शनों को आये । बाबा द्वारा पूछे जाने पर उन्होंने कहा," विश्वनाथ मन्दिर से अधिक महता ग्यानव्यापी की है । जहाँ शंकर भगवान अनेक वेशों में अनेक रूपों में घूमते रहते है - कोई जान नहीं सकता । अत: वहाँ बैठे हर भिखारी , जोगी , साधू को दान अवश्य देना चाहिये । पता नहीं भोले नाथ किस वेश में मिल जाये ।
तभी महाराज ने मेरी तरफ़ इस तरह देखा जैसे कह रहे हो ," अब समझे हम क्यूँ ले गये थे तुम्हें ग्यानव्यापी ? और क्यूँ चार आने दिलवाये उस साधू को वहाँ ।" अब मैं समझा बाबा की लीला कि बाबा ने अपने वतन पूरे किये उस साधू के रूप में मूँछें शंकर भगवान के दर्शन करा के । मैंने न सही शंकर भगवान ने तो मुझे देख लिया ।
जय गुरूदेव
अन्नत कथामृत
--पूजा वोहरा/नयी दिल्ली