साधना को साधन दिए...एक साईं भक्त के जीवन की सच्ची कहानियाँ
कहते हैं कि बाबा अपने प्रिय भक्तों को सात समंदर पार से चिड़ियों के पैर में बंधे धागे जैसे खींच लाते हैं । श्री साई सच्चरित्र के एक अध्याय में वर्णन मिलता है, उस घटना का जो बाबा अपने अनुयायियों को सुनाया करते थे कि किस तरह उन्होंने सात समंदर पार से अपने श्रद्धालुओं को पक्षी की मानिंद बुला लिया था।
कानपुर पहुंचने के कुछ दिनों बाद मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही घटा। पहले के अध्यायों में बता ही चुका हूं कि मेरी दीक्षा बिठूर में आरंभ हो चुकी थी। बस, एक दिक्कत थी। हां, उस समय यह मुझे एक बड़ी दिक्कत ही लगी थी। यह कि संकल्प तो कर लिया पर बड़े सवेरे की पूजा और काकड़ आरती के लिए मंदिर कैसे पहुंचे थे।
दिन में तो मेरा कोई कनिष्ठ, ज्यादातर प्रमोद अवस्थी (अब दिवंगत) मुझे गाड़ी से पहुंचा देगा लेकिन सुबह पांच-साढ़े पांच बजे तो बहुत मुश्किल हो जाएगी। मौसम की मार अलग - कभी गर्मी, तो कभी ठंड, या फिर बारिश काफी समय तो मुझे यह सोच सोच कर ही छटपटाहट होती रही।
लेकिन तभी एक रोज साई की कृपा हुई । कानपुर के तत्कालीन डीआईजी गुरुबचन लाल मित्र बन चुके थे और हर बृहस्पतिवार की सुबह पांच बजे उनकी जिप्सी आती और मुझे मंदिर ले जाती। कभी-कभी वे स्वयं जाते। गाड़ी ढरें पर आ गई थी कि अचानक उनका तबादला लखनऊ हो गया।
जब उनका तबादला हो गया तो बाकी के तीन महीनों में कानपुर के एसएसपी रामेंद्र विक्रम सिंह, राकेश सिंह ने यह जिम्मा संभाल लिया। उनसे भी इसी तरह सहयोग मिलता रहा। क्यों? मैं नहीं जानता ! जानता हूँ तो बस इतना कि इन मित्रों के चलते मैं अपने पूरे कानपुर प्रवास में बाबा का दर्शन लाभ कर सका ।
(मोहित दुबे की पुस्तक साईं से साभार)