नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जब महाराज जी ने पुकारा राधा, राधा...
बजरंगगढ़ में एक दिन पास के रूसी गाँव से एक (हरिजन) कुमारी गिलास में दूध भरकर महाराज जी के लिए ले आई । वह घर से चली ही होगी कि इधर महाराज जी ने राधा राधा पुकारना प्रारम्भ कर दिया । महाराज जी की इस अप्रत्याशित भाव-भंगिमा को कोई नहीं समझ पाया, परन्तु न मालूम उस कुमारी कन्या के अन्तर में महाराज जी के प्रति कैसा उत्कृष्ट भाव था कि उसके आते ही महाराज जी उठ खड़े हुए और विभोर अवस्था में बोल उठे, “अरी राधा, तू यहाँ क्यों आई ? मैं तो वहीं आ रहा था तेरे पास । चल, चल, मैं वहीं आता हूँ ।” और दूध पीकर बाबा जी डाँडी मंगवाकर (रूसी को) डाँडी में बैठकर चल दिये । कुछ अन्तरंग भक्त भी साथ हो लिये ।
गाँव जाने को केवल पगडंडी का मार्ग था टेढ़ा-मेढ़ा । किसी तरह डाँडी वाले तंग पगडंडी पर कुछ दूर चले पर एक मोड़ ऐसा आ गया कि पहाड़ की तरफ तो एक बड़ा मोटे तने वाला पेड़ खड़ा था और दूसरी तरफ खड्ड। डाँडी लेकर उसमें घूम पाना असंभव ही था, वह भी महाराज जी को उसमें बिठाये बिठाये अतएव डाँडी वालों ने डाँडी जमीन में रख दी कि ऐसे पार नहीं जा सकते कम से कम महाराज जी को उतरना ही पड़ेगा ।
“अरी राधा, तू यहाँ क्यों आई ? मैं तो वहीं आ रहा था तेरे पास । चल, चल, मैं वहीं आता हूँ ।”
परन्तु महाराज जी बालहठ में आ गये कि 'हम तो डाँडी में ही जायेंगे !!' और फिर कुछ भक्तों से कहा, “तुम उठाओ डाँडी।” अर्धचेतना में बावले भक्तों ने बिना कुछ सोच-समझे उठा ली डाँडी और देखते, देखते महाराज जी के उसमें बैठे बैठे ही डाँडी ने पेड़ की तीन चौथाई परिक्रमा कर दी !! किसी को आभास तक न हो पाया कि यह सब कैसे हो गया !! काफिला आगे को अग्रसर हो गया ।
गाँव पहुँचकर बाबा जी पहिले उस बाला के घर गये। वहाँ भोग प्रसाद पाया। पूरी हरिजन बस्ती बाबा जी को घेर कर बैठ गई आनन्द से। अनपढ़, सरल हृदय, निष्कपट, छल-छिद्र से विहीन इन समाज से उपेक्षित लोगों ने महाराज जी में अपने भगवान के दर्शन बिना किसी योग-साधना के ही पा लिये !!
-- पूरनदा