नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: हरिद्वार में हर की पौड़ी में बहती भक्तिनों को एक कम्बल ओढ़े व्यक्ति (बाबा) ने बचाया

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: हरिद्वार में हर की पौड़ी में बहती भक्तिनों को एक कम्बल ओढ़े व्यक्ति (बाबा) ने बचाया

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हम कई महिलाएँ उत्तराखण्ड के तीर्थों की यात्रा हेतु हरिद्वार पहुँच गई थीं और जैसा हम करती आ रही थीं- कैंची धाम मे, वृंदावन में तथा अन्य धामों में - हम मुँह अंधेरे ही स्नान को निकल पड़ी थीं। उस दिन समय का भी कुछ अनुमान नहीं रहा । हर की पौड़ी पहुँचने पर देखा कि एकदम वीरान है ।

बिजली की रोशनी जहाँ तक पहुँच रही थी वहाँ तक तो उजाला था- बाकी चारों ओर घुप अंधेरा । नहाते नहाते अंधेरे में मैं कुछ आगे बढ़ गई तो अपना संतुलन खो बैठी और जल के वेग से मेरे पाँव उठ गये मैं प्रवाह के साथ बह चली । जब मैं अपने को रोक पाने में असमर्थ हो गई तो चिल्लाई, "अरे ! मैं बह गई ।" यह सुनकर साथ में आई अध्यापिका मुझे बचाने गंगा जी में कूद गई |

पर एक तो जल-प्रवाह का वेग और ऊपर से मेरे भारी-भरकम शरीर का वजन- कहाँ झेल पाती वह दुबली-पतली महिला । उधर बदहवासी में मैंने उसे जकड़ लिया तो वह भी मेरे साथ बह चली । कुछ देर बाद में इतना पानी पी चुकी थी कि अचेत हो गई। चेतना लौटने पर पाया कि में पौड़ी से दूर पहले पुल के प्लेटफ़ार्म पर पड़ी हूँ । धीरे-धीरे मैं कुछ अधिक चैतन्य और स्वस्थ हुई ।

पास तब साथ की महिलाओं ने बताया कि हमको डूबते देख लीला भाई (अब स्वर्गीय) रोते हुए प्लेटफार्म पर बहाव की तरफ दौड़ती हुई चिल्लाती रहीं महाराज ! हरिप्रिया डूब रही है, बचाओ । तभी सहसा कम्बल ओढ़े एक आदमी वहाँ प्रगट हो गया और उसने अपना कम्बल फेंक पानी में छलांग लगा दी तथा थोड़ी देर में हम दोनों को किनारे खींच लाया ।

उसी ने मेरे पेट से बहुत सारा पानी निकाल दिया । परन्तु तब हम में से किसी को भी यह ध्यान न रहा कि वह व्यक्ति कौन था । अपना काम कर वह बिना कुछ बोले चला भी गया । इस लीला का स्पष्टीकरण महाराज जी ने स्वयं किया, हमारे कैंची लौटकर उन्हें प्रणाम करते ही - नाराज़गी की मुद्रा में केवल इतना भर कह कर - "चली जाती हैं आधी रात को ही स्नान करने । फिर हमें बचाना पड़ता है !!” (हरिप्रिया, नैनीताल)

(अनंत कथामृत के सम्पादित अंश)

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