नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: बालक पुनः तुम्हारी गोद में खेलेगा!
वर्ष १९६८ जनवरी माह दादा के घर लाइब्रेरी का कमरा । महाराज जी मेज के पीछे कुर्सी पर बैठे थे और मैं कुर्सी के पीछे खड़ी थी। तभी मेरे एक पड़ोसी शर्मा जी और उनकी पत्नी, जिनका एक बहुत ही प्यारा बेटा हाल ही में काल-कवलित हो गया था, वहाँ आ गये और महाराज जी के समक्ष विफर कर रो उठे। मैं पूर्व में ही उस बच्चे की मृत्यु पर रो चुकी थी बहुत, और इस वक्त उसकी स्मृति में पुनः रो पड़ी । महाराज जी उन्हें समझाते रहे और उन्हें आश्वस्त कर दिया कि “वह बालक पुनः तुम्हारी गोद में खेलेगा ।”
उनके जाने के बाद मैं महाराज जी से बोली, “महाराज ! भगवान ऐसा कष्ट क्यों देता है ? इससे अच्छा तो यही है कि ऐसी संतान मिले ही नहीं।” तब बाबा जी बोले, “तू समझती नहीं। यह मृत्युलोक है । यहाँ जो आता है वह जाता भी है कोई जल्दी कोई पीछे । सब अपना-अपना कर्म-भोग लेकर आते हैं और अपने समय से चले जाते हैं? - आदि आदि और ऐसा कहते कहते मेरे दोनों हाथ पीछे से माला की तरह अपने सीने में रख लिये ।
पहले तो उनके बच्चों की तरह मुलायम, कोमल, माँसल सीने की गुदगुदी महसूस करती रही मैं । पर शीघ्र ही वही कोमलता कठोर होने लगी और कठोर होते होते बज्र-समान हो चली और साथ में ऊँची भी । मुझे लगा कि मेरी दोनों हथेलियाँ एक कठोर शिला के ऊपर जमी हैं। हनुमान जी की बज्र समान देह का स्मरण हो आया मुझे । एक चमत्कार और कि इस अनुभूति के मध्य न तो मुझे आश्चर्य हुआ और न भय केवल आनन्दानुभूति हुई, जो महाराज जी की ही अपनी देन थी। तदुपरान्त शीघ्र ही महाराज जी की देह यथावत हो गई। (रमा जोशी)