नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: ऐसा शरीर कि छोटी से छोटी जगह में भी समा जाते और कभी पूरा तखत भी छोटा पड़ जाता
बाबा जी महाराज के लीला चरित्र पर गम्भीरता से मनन करने पर पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है कि शरीर की आकृति अथवा उसके भार (वजन) में आधिक्य अथवा न्यूनता या उनकी शारीरिक शक्ति में कोई निश्चितता का प्रश्न ही नहीं उठ सकता था । मसक समान रूप भी हो जाता था, विशाल भी हो जाता इतना कि ऊँचे चौड़े दरवाजे से भी न निकल सकें ।
केवल एक हाथ का भार ही असह्य हो जाता । छोटी से छोटी जगह में भी समा जाते और पूरी साइज का तखत भी छोटा पड़ जाता । शरीर कभी अत्यन्त दुबला-पतला हो जाता, कभी अत्यन्त लम्बा और क्षीण तो कभी इतना स्थूल कि पेट और टांगों के बीच का हिस्सा (कटि प्रदेश) ही लोप हो जाता । हाथ-पाँव कोई भी आकार ले बैठते तथा कहीं से भी मुड जाते ।
शरीर की हड्डियाँ हाड़-माँस की थीं या रबर-इलास्टिक की, जानना मुश्किल था और इन कारणों से महाराज जी के फोटो चित्र सदा एक दूसरे से भिन्न होते थे - आकार में ही नहीं, वरन शरीर के विभिन्न अंगों की आकृति अथवा उनकी लम्बाई-चौड़ाई में भी, मुख मुद्रा में भी । यही शरीर बच्चे के शरीर की भाँति अत्यन्त कोमल भी हो जाता और शिला-बज की भाँति कठोर भी 'बज देह दानव दलन ।'
उनके शरीर का वजन भी कुछ भी हो सकता था रुई अथवा फोम के बण्डल के समान हल्का-फुल्का भी और असहनीय रूप से भारी भी। शक्ति के नाम पर एक ओर जहाँ चढ़ने-चलने-फिरने के लिये भी सहारा अथवा सवारी भी ले लेते थे, वहीं दूसरी ओर शरीर से स्थूल-भारी व्यक्ति को गेंद की तरह उछाल कर दूर फेंक देते थे और सहारा देने वाले व्यक्ति को भी खड्ड में गिरने से बचाने को केवल अपनी दो उंगलियों से उठाकर पुनः सड़क-पगडंडी पर रख देते !!
पर इन सबके लिए किसी शारीरिक योग अथवा क्रिया का कोई स्थान न था - - सब कुछ सहज-सुलभ था योगेश्वर के लिए उनकी अलौकिक दैवी शक्ति का प्रताप मात्र । इन सब तथ्यों के ऊपर प्रकाश डालते दृष्टांत कुछ पूर्व में दिये जा चुके हैं, यत्र तत्र भी दिये गये हैं पर यहाँ कुछ और भी ।