नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: महाराज अपने भक्तों का कष्ट देख ही नहीं पाते थे !
अपनी भ्रामक लीलाओं में बाबा जी महाराज, शरीर-धर्म के अनुकूल, यह भी व्यक्त करते रहते थे कि वे दिल के मरीज हैं, उन्हें डाइबिटीज (मधुमेह) है, उन्हें पेट (आमाशय जिगर आदि) का रोग हो गया है, वे वृद्ध हो चुके हैं आदि आदि। इसके लिए वे शोरगुल भी खूब मचाया करते थे तथा डाक्टर भी बुलाये जाते तरह तरह की जाँच भी होती रहती थी और इलाज-पानी भी चलता रहता ।
जो भी भक्तों से राय मिलती वही दवा भी खा लेते आयुर्वेदिक, अंग्रेजी, होमियोपैथिक दवायें साथ साथ चलती रहती थीं । अभी कुछ देर पूर्व अत्यन्त अस्वस्थ दिखाई देते पर शीघ्र ही दरबार में बैठे उन्हें देख कोई नहीं कह सकता था कि कुछ देर पूर्व वे अत्यन्त बीमार थे । जहाँ तक शरीर-धर्म हेतु ये लीलायें होतीं, वे भी अपनी जगह सही थीं पर सत्य कुछ और भी होता ।
अजर-अमर विभूति बाबा महाराज अपने भक्तों का कष्ट देख ही नहीं पाते थे और अक्सर उनके रोग-व्याधि अपनी शक्ति ही दूर करते रहते थे, और आवश्यकता पड़ने पर कभी कभी भक्तों के इन रोगों को अपने ऊपर लेकर क्षय कर डालते थे। उन्हें शीत और ग्रीष्म का प्रकोप कितना व्याप पाता था, इसका दृष्टान्त आगे दिया जा रहा है ('हम लँड से मर गये' वाले प्रकरण में ।) ज्ञात-अज्ञात न मालूम कितने दृष्टान्त होंगे जहाँ महाराज जी ने भक्त के कष्ट, रोगादि स्वयँ धारण कर उन्हें भस्म कर दिया ।
श्री केहर सिंह जी को जब लखनऊ में असाधारण रूप से डाइरिया ने ग्रस्त कर लिया, और जब वे इस कारण अत्यन्त कमजोर एवं दुखी हो गये कि अब बिस्तरे में ही मल-मूत्र त्यागना पड़ेगा, महाराज जी ने उनके रोग को वृन्दावन में स्वयं ग्रहण कर लिया ।
इधर केहर सिंह जी रात को ही आराम से सो गये रोगमुक्त होकर और उधर बाबा जी को ग्लूकोज भी चढ़ना प्रारम्भ हो गया शरीर तथा खून में जल के अनुपात - में कमी के कारण। इस बीच बिस्तरे में ही खराब हो चुकी धोती-चादरों की भी माताओं द्वारा धुलाई भी करनी पड़ गई। परन्तु बाहर आये भक्तों को इन सब लीलाओं की भनक तक न मिलने पाई ।
और सन्ध्या समय बाबा जी पुनः दरबार में उपस्थित हो गये, मानो कुछ हुआ ही न था । न चेहरे पर शिकन, न आवाज में कमजोरी और न रोज की लीलाओं में ही कुछ हेर-फेर (बदलाव) । कुछ ही घंटों में केहर सिंह जी का रोग बाबा जी ने अपने में लेकर भस्म कर दिया ।