नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: किसी को भी माध्यम बना असम्भव को भी संभव करवा देते थे महाराज जी

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: किसी को भी माध्यम बना असम्भव को भी संभव करवा देते थे महाराज जी

वर्ष १९७३ में मुझे फरवरी से साढ़े तीन माह के लिये आगरा में सरकारी कार्य हेतु भेज दिया गया था। शनिवार की शाम श्री चरणों में वृन्दावन पहुंच जाता और सोम की सुबह वापिस आ जाता । पुनः हर अवकाश की अवधि भी वहीं बीतती ।

तब वही लीला, जो इलाहाबाद में देखता था, वृन्दावन में भी देखी। प्रभु जिसको चाहें, अपनी लीला हेतु जमूरा बना लें। किसी को केवल सिर में थपकी देकर या अपने दिव्य चक्षुओं के माध्यम से ही समाधि लगवा दे तो किसी की जेब में रुपये भर दें प्रसाद वितरण हेतु अथवा किसी जरूरतमन्द को दान देने हेतु या फिर किसी अन्य कार्य हेतु।

और किसी को माध्यम बना असम्भव को भी संभव करवा दें, अथवा उससे महा-ज्ञान भरी बात कहलवा दे या अनहद वाणी सुनवा दें अथवा किसी के घर अन्न भण्डार पूरा करवा दें भक्तों को प्रसाद पवाने हेतु । आदि आदि। जनसाधारण को यही लगता कि समाधि में जाने वाला भगत बड़ा योगी है, खर्च करने अथवा भण्डारा करने वाला बढ़ा दानी है और असंभव को संभव कर किसी का भला करने वाला बड़ा सामर्थ्यवान है।

तथा ज्ञान भरी बातों वाला अथवा अनहद वाणी बोलने वाला व्यक्ति परम ज्ञानी है, जबकि यह सब कुछ महाराज जी की अपनी शक्ति से ही संभव होता अपने को छिपा अपने भक्तो-आश्रितों को विभिन्न लीला-क्रीड़ाओं के माध्यम से श्रेय-ख्याति दिलवाते रहते इसी प्रकार यही लीला इलाहाबाद एवं केनंचीधाम में भी दिखती रहती थी ।

'प्रभु तरुतर कपि डारपर, ते किये आपु समान |

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