नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जा, तेरी परिक्रमा पूरी हो जायेगी !

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जा, तेरी परिक्रमा पूरी हो जायेगी !

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वृन्दावन आश्रम में महाराज जी (वर्ष १९७३ - मार्च में) भक्तों घिरे अपने बरामदे वाले तखत पर बैठे हुए थे । इतने में आश्रम के प्रवेश द्वार से एक अधेड़ावस्था की स्थूलकाय महिला सीताराम-राधेश्याम कहती बड़ी कठिनाई से चलती महाराज जी के पास पहुँची। लगता था अपने स्वयँ के भार के कारण महिला बहुत ही थक चुकी थी। दम भी फूल रहा था उसका।

उसके प्रवेश द्वार से तखत तक पहुँचने की अवधि में महाराज जी उसे एकटक निहारते रहे, और जब उसने बमुश्किल झुककर महाराज जी को प्रणाम किया (तब भी सीताराम-राधेश्याम कहते), तो महाराज जी ने आशीर्वाद की मुद्रा में अपना हाथ उठाते उससे कहा, “जा, तेरी परिक्रमा पूरी हो जायेगी।" तब हमें मालूम हुआ कि महिला सप्तकोशी परिक्रमा कर रही है।

इतना सुनते ही जब महिला उठी तो बड़ी सरलता से और अब स्थिर कदमों से चलती सीताराम-राधेश्याम कहती जाने लगी। तभी (अभी तक सुस्थिर, स्वस्थ और चपल) महाराज जी भी तखत से (कुछ श्रम के साथ) उठ गये और स्वयँ सीताराम-राधेश्याम कहते अत्यन्त ही मँथर गति से, मानो बहुत ही थक गये हों, प्रांगण पार कर अपनी कुटी की तरफ चल दिये।

पर कुछ दूर पूर्व ही रुक गये और आगे पड़े एक खाली ड्रम में, उसे हाथों से पकड़े, झुककर सीताराम-राधेश्याम कहने लगे, और पुनः धीमी गति से कुटी में प्रवेश कर वहाँ अपने तखत में लेट गये थकान मिटाने की मुद्रा में क्या बाबा जी ने उक्त महिला की सारी थकान अपने में समेट ली थी ?

(मुकुन्दा)

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