नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ : जाओ, बिहारी जी के दर्शन कर आओ

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ : जाओ, बिहारी जी के दर्शन कर आओ

2 min read

ऐसा ही और भी वर्ष १९७१ - अप्रैल १७ तारीख को मैं प्रथम बार वृन्दावन आश्रम गया था । अलीगढ़ में सरकारी दौरे पर था तब मैं । बाबा जी के दर्शन वृन्दावन में प्रथम बार हो रहे थे मुझे । बहुत कुछ हुआ तब मेरे साथ बाबा जी की ओर से । परन्तु सबसे अधिक वात्सल्य-पूर्ण लीला यूँ हुई -

महाराज जी ने मुझे तथा मेरे साथ आये मातहतों से कहा कि, "जाओ, बिहारी जी के दर्शन कर आओ। वो यहाँ को देवता हैं।" हम चले गये । पर कुछ मार्ग में भटक जाने के कारण और कुछ प्रथम बार बिहारी जी के दर्शनों में आनन्द-वश बारह बजे की आरती तक रुक जाने के कारण भी हमें आश्रम लौटने में विलम्ब हो गया।

आश्रम के प्रांगण में पहुँचते ही पाया कि अपनी कुटी के आगे ग्रिलयुक्त बरामदे के भीतर रखे तखत-आसन पर महाराज जी हमारे इन्तजार में चादर ओढ़े बैठे हैं। बोले, “कहाँ रहे गये ? प्रसाद का टाइम हो गया कब का। प्रसाद पाने बैठो जल्दी ।” और भूदेव को आदेश हुआ कि पूरियाँ बनाओ । (तब ग्रिलदार बरामदे से लगे आगे के बरामदे में ही भट्ठी बनी हुई थी भण्डारे की ।) और जब तक हम सब गरमागरम पूरियाँ और सब्जी पाते रहे, सरकार बैठे ही रहें तखत पर सब कुछ देखते निरीक्षण-सा करते !! फिर बोले, “जाओ, अब आराम करो ।” और स्वयँ भी भीतर कुटी में चले गये ।

बाहर सुबह दस-साढ़े दस बजे से ही गरम हवायें चलने लगी थीं। तब भूदेव से पता चला कि साढ़े दस-ग्यारह बजे ही प्रसाद का टाइम हो जाता है। महराज जी प्रसाद पा चुके हैं, और उसके बाद सारे आश्रम वासी भी। ग्यारह बजे बाद महाराज जी का कूटी में बन्द हो आराम का समय हो जाता है (गरमी के कारण।)

फिर भी इस अकिंचन के लिये वे उस गरमी में बाहर बैठे रहे कि मुझे मेरे साथियों को ठीक प्रकार से गरम ताजा प्रसाद मिले जिसकी व्यवस्था वे स्वयं ही अन्त तक देखते रहे !! उनको मेरे कारण इतना कष्ट उठाना पड़ा जान मन में बहुत ग्लानि हो उठी।

यदि महाराज जी भूदेव को इस विषय में समुचित आदेश देकर कुटी में विश्राम पाने पहले ही चले जाते तो क्या हमें प्रसाद न मिलता ? परन्तु महाराज जी के अन्तर में भक्त-चरणाश्रितों के लिए जो मातृत्व-पूर्ण वात्सल्य भरा पड़ा था, उसने उन्हें उस गर्मी में भी बारह बजकर पैंतालीस मिनट तक बाहर ही बैठे रहने को विवश कर दिया था। और सम्भवतः इस कारण भी कि कहीं किसी प्रकार की कोई कमी हो जाने के कारण मुझे अपने साथियों के समक्ष लज्जित न होना पड़े। बाबा जी के ऐसे ही वात्सल्य को ही, जो पग पग पर मुझे मिलता रहा, मैं अपने अन्तर में समेटे हूँ।

Related Stories

No stories found.
logo
The News Agency
www.thenewsagency.in