नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जब एक भक्त की पत्नी को मरने के पाँच घंटे के बाद जीवित कर दिया
श्री केहर सिंह जी की पत्नी को संग्रहणी हो गई और वे मरणान्तक रूप से अस्वस्थ हो चली थीं। पेट में कुछ भी न रह पाता था|। शरीर सिकुड़ कर केवल हड्डियों का ढाँचा रह गया । कोई भी इलाज कारगर साबित नहीं हो रहा था । केहर सिंह जी दुःखी हो उठे कि अब इन चार छोटे-छोटे बच्चों को कौन संभालेगा ?
तभी श्री आर० पी० वैश्य द्वारा (जो दौरे पर नैनीताल जा रहे थे) केहर सिंह जी ने अपनी पत्नी के स्वास्थ्य के बार में सूचना महाराज जी तक पहुँचा दी । केवल इतनी-सी पुकार थी इस गजेन्द्र की अपने भगवान के प्रति और बाबा ने भी तब केवल इतना भर ही कहा, इसमें कहने की क्या बात है ? केहर सिंह हमारा भक्त है ।"
और अन्ततोगत्वा उनकी पत्नी का शरीर शान्त हो गया जाना में उनके बारे में आगे कुछ सोचा जा रहा होगा तभी कैंची में बाबा जी महाराज श्रीमती कमला सोनी से सुबह दस बजे दो की केहर सिंह की बहू (पत्नी) मर गई है वह बहुत दुःखी है पर ऐसा नहीं होने देंगे । केहर सिंह हमारा भक्त है।"
और इधर लखनऊ में अपनी लीला पर पर्दा डालने के लिए पर जी ने सिंह साहब की लड़की, कुसुम को प्रेरित कर बायोकेमिक का एक मिश्रण रीमती सिंह के मुंह में डलवा दिया जो जड़वत मुँह के अन्दर न जा सका । परन्तु महाराज जी की लीला तो अपना काम कर रही हाई थी और ४०-४५ मिनट मृत रहने के बाद श्रीमती सिंह जी उठी। तथा उसके बाद साढ़े पाँच वर्ष और रही इस संसार में ।
उनका इलाज करने वाले डाक्टर को जब सिंह साहब ने धन्यवाद दिया तो उन्होंने कहा, "मिस्टर सिंह इसमें मेरा कोई हाथ नहीं था, यह तो केवल भगवद् कृपा से ही बच गई हैं ।" (बाबा जी की उनसे की गई उक्त वार्ता श्रीमती सोनी ने बह बाद ने लखनऊ आकर स्वयं केहर सिंह जी को सुनाई।)
इससे भी आश्चर्यपूर्ण घटना तब घटी जब उसी दिन साढ़े तीन बजे शाम केहर सिंह जी को श्री एस० के० चौधरी का गौतम पर्ज (लखनऊ) से फोन मिला कि बाबा जी मेरे घर पधारे हैं और आपको याद कर रहे हैं। केहर सिंह जी के वहाँ पहुँचने पर न तो बाबा जी ने उनके पत्नी के बारे में कुछ पूछा और न इन्होंने ही उस रोज सुबह हुई घटना का जिक्र किया । आधे घंटे के भीतर दो-दो रसगुल्ले एवं समोसा घर पाकर बाबा जी चले गये एक तरफ, और अब तू जा सुनकर सिंह साहेब भी घर आ गये ।
उस दिन लखनऊ में बाबा जी ने किसी अन्य भक्त को दर्शन नहीं वे तो सुबह से ही कैंची धाम में ही बराबर विराजमान रहे थे।
(अनंत कथामृत के सम्पादित अंश)