नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: महाराज जी ने जहाँ भी अपने को प्रतिष्ठित करवाया, वहीं उनका मूल स्वरूप भी विद्यमान रहा
मद्रास ऐसी जगह में बाबा जी महाराज का मंदिर बनना एक कल्पनातीत सत्य है । परन्तु बाबा जी महाराज की मनसा-शक्ति का कोई विश्लेषण नहीं हो सकता और न उनके श्रीमुख से निकली वाणी का ही । बाबा जी ने तो २० जून १९७३ को ही श्री हुकुमचन्द जी के उनसे मद्रास चलने के आग्रह के उत्तर में कह दिया था, 'हाँ, हाँ, मैं मद्रास आऊँगा और वहीं रहूँगा ।' और अपने वचनों की सार्थकता स्वरूप महाराज जी आज वीरापुरम धाम में केवल १८ इंच ऊँची काले पत्थर की अपनी मूर्ति में पूर्णतः विशेष सजीव मुद्रा में साकार रूप मुखमण्डल एवं शारीरिक विन्यास लिये विराजमान हो गये हैं !!
उत्तर भारत की इस विभूति के मंदिर एवं मूर्ति का दक्षिण भारत में प्रतिष्ठापन भी अपने में एक विशिष्ट लीला है बाबा जी की । क्षेत्र के एक जाने माने नागा योगी, आलामादी के सन्त ने न केवल स्वयं अपने कर कमलों से मंदिर के गोपुरम में कलश स्थापन एवं ध्वजारोहण किया वरन महाराज जी की मूर्ति का मद्रास के जाने माने विद्वान वेदपाठियों एवं कर्मकाण्डियों के द्वारा वेद-पाठ के मध्य स्वयँ अभिषेक भी किया, अलंकरण भी किया एवं पूजा-अर्चना-आरती कर प्रतिष्ठित भी किया !! क्षेत्र के हजारों तमिल भक्तों ने अत्यन्त श्रद्धा-भक्ति से समारोह में सम्मिलित होकर बाबा जी का भण्डारा प्रसाद पाया ।
महाराज जी ने जहाँ भी अपने को प्रतिष्ठित करवाया, वहीं उनका मूल स्वरूप भी विद्यमान रहा हनुमत विग्रह के रूप में । अस्तु, वीरापुरम में भी महाराज जी ने श्री अर्जुनदास जी को प्रेरित कर एक भव्य हनुमान मंदिर का भी प्रतिष्ठापन करवा दिया गणेश जी के नये-बड़े मन्दिर के साथ साथ !!