नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: रघुनाथ मंदिर से लौटते पर भोग का कटोरदान का वजन चन्द रोटियों और सब्जी से हो जाता भारी

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: रघुनाथ मंदिर से लौटते पर भोग का कटोरदान का वजन चन्द रोटियों और सब्जी से हो जाता भारी

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उक्त आशीर्वाद की सार्थकता के लिये महाराज जी ने मेरे लिये व्यवस्था कर दी कि “जब हम नहीं रहें यहाँ तो रघुनाथ जी को (गढ़ में स्थापित रघुनाथ मंदिर में) नित्य भोग लगाना रोटी-सब्जी का ।” एक माह तक यह कार्यक्रम चला जिसके मध्य महाराज जी की लीला ने एक विचित्र मोड़ ले लिया पर इसकी जो अनुभूति मुझे और मेरी बहन भारती को होती रही, उसे हम अन्तिम दिन ही पूरी तरह ग्रहण कर पाये ।

होता यह था कि जब हम कटोरदान में रोटी सब्जी दिन के बारह बजे के भोग के पूर्व रघुनाथ मंदिर को ले जाती थीं तो कटोरदान का वजन उन चन्द रोटियों और सब्जी के वजन के अनुसार हल्का ही रहता । परन्तु लौटती बेर कटोरदान अप्रत्याशित रूप से भारी हो उठता । हम बहनों को तो उसे बारी बारी से ढोना पड़ता था। हम यही समझते रहे कि पहिले सिपाहीधारा (हमारे घर) से सड़क तक की खड़ी चढ़ाई और फिर एक मील बाद गढ की चढ़ाई एवं लौटने की थकान तथा भूख के कारण कटोरदान भारी लगता है ।

(और तब इस कटोरदान की रोटी-सब्जी भी तो पूरे परिवार के लिये यथेष्ट हो जाती थी !!) परन्तु बाबा जी महाराज की इस लीला के अन्तिम चरण ने हमारी आँखें खोल दीं । तीसवें दिन जाते जाते हमें देर हो चुकी थी पर मार्ग में ही कटोरदान अन्य दिनों की अपेक्षा और भी अधिक भारी हो गया !! और जब हम पहुँचे तो भोग-आरती के बाद रघुनाथ मंदिर बन्द हो चुका था । हमें बहुत दुःख हो गया ।

तब मौनी हरदा बाबा ने स्लेट में लिखकर बताया कि, “भोग लग चुका है। अब पूर्ण हो गया है। कल से मत लाना ।” पहले तो हमारे दिमाग में केवल यही आया कि भोग लग चुका है, हमें ही देर हो गई । पर अपनी लीला महाप्रभु अनबूझे कैसे छोड़ सकते थे ? तभी हमारे मस्तिष्क में 'कटोरदान का लौटती बार नित्य भारी हो जाना और आज आते वक्त ही आधे मार्ग से ही उसका और भी वजनी हो जाने का रहस्य कौंध गया !!

आज तो रघुनाथ जी ने (अर्थात महाराज जी ने, क्योंकि हम तो भाव में महाराज जी के लिये ही भोग ले जाते थे) मार्ग ही में भोग स्वीकार कर लिया था !! (तभी तो कटोरदान पूर्व में ही भारी हो गया था !!) लीला का सार मन में समाते ही हमारे आँसू फूट पड़े दयानिधान की इस कृपा पर ।

कहना आवश्यक नहीं कि तभी से हमारे घर से सब प्रकार का अभाव दूर होता चला गया |

--शान्ता पाण्डे

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