नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जब महाराज जी के तख़्त के नीचे से निकलीं गरमा गरम जलेबियाँ

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जब महाराज जी के तख़्त के नीचे से निकलीं गरमा गरम जलेबियाँ

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इलाहाबाद में एक शाम (जैसा बाद में ज्ञात हुआ) बाबा जी ने गिरीश जी से कहा कि, “कल चित्रकूट यात्रा के लिये बहुत सुबह लल्लू दादा और उनके साथ के लोग यहाँ (दादा के घर) आयेंगे। तुम उनके नाश्ते के लिये रात को ही जलेबी लाकर रख लेना ।” गिरीश जी के अनुसार वे कुछ तो सेवा में ही रह गये, और फिर काफी रात हो जाने के कारण तथा दुकानों के बन्द हो जाने के कारण भी वे रात को ही जलेबियों का प्रबन्ध न कर सके सोचा, सुबह तड़के ही ले आऊँगा । (समुचित द्रव्य भी तो शायद न था उनके पास इस हेतु ।)

परन्तु मुँह अंधेरे ही हम दादा के घर पहुँच गये । बाबा जी ने गिरीश जी को बुलाकर पूछा, “जलेबी लाये ?” गिरीश जी ने वस्तुस्थिति समझानी चाही पर बीच ही में बाबा जी बुरी तरह बिगड़ गये उन पर । हम तब यह खेल समझ नहीं पा रहे थे कि क्या माजरा है । तभी बाबा जी ने अपने तख्त के नीचे इशारा कर उनसे कहा, "वहाँ देखो ।”

और वहाँ से निकली ताजी गरम जलेबियाँ !! ढेर मात्रा में !! हमने छक कर पाईं और चित्रकूट को चल दिये । मार्ग में ही गिरीश जी से बाबा जी के उन पर बिगड़ने का रहस्य जान पाया मैं । परन्तु उतने तड़के, विकट ठंड के मौसम में (जब कि दुकानें खुली भी न होंगी) उतनी ढेर ताजी-गरम जलेबियाँ बाबा जी के तखत के नीचे आईं कहाँ से ? गिरीश जी के साथ जो कुछ हुआ वह तो नाटक-मात्र था भला हमें सुबह सुबह रात की ठंडी-बासी जलेबियाँ क्योंकर खिलाते अन्नपूर्णा भण्डार के मालिक ?

(देवकामता दीक्षित)

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