नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जब भक्त के घर नए गद्दे देख बच्चे की तरह प्रफुल्लित हो गए महाराज जी

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जब भक्त के घर नए गद्दे देख बच्चे की तरह प्रफुल्लित हो गए महाराज जी

महाराज जी का हमारे प्रति असीम वात्सल्य-युक्त प्रेम था । वे हमारे घर पूर्व में हर वर्ष ३-४ बार कृतार्थ करने पहुँच जाते थे परन्तु अन्तिम २-३ वर्षों में केवल एक-दो बार ही आये । माली हालत हमारी बहुत साधारण स्तर की थी । पूर्व में तो हम उन्हें केवल नंगी मूँज की खाट पर बिठा देते थे। बाद में पूजाघर में एक गद्दा या लिहाफ जमीन में ही बिछाकर उस पर एक चादर डाल देते, और प्रभू भी सीढ़ी चढ़कर आँगन पारकर सीधे वहाँ पहुँच आसन जमा लेते।

(ऐसे विराजे रहने की अवधि कुछ भी हो सकती थी। - एक घंटा भी, डेढ़ घंटे भी और ढाई-तीन घंटे भी।) बाद बाद में उनके लिए खाट पर गद्दे आदि बिछाकर उस पर चादर डाल देते थे। अभावग्रस्त गृहस्थी के गद्दे कुछ अधफटे, कुछ अधमैले उन्हीं पर कोई धुली चादर (और कभी कभी तो अपनी प्रयोग की हुई भी) डाल दी जाती थी । ऐसे ही एक बार जब वे आये तो हमने उन पुराने गद्दों के ऊपर एक रेशमी फूलदार चादर डाल दी थी ।

महाराज जी उस पर कुछ देर तो शांत बैठे रहे। फिर कौतुकी बाबा जी ने एक कोने से चादर उठाई, पुराने गद्दे को देखा, और उसके नीचे वह भी जो और भी बदतर हालत में था। देखकर पुनः चादर का कोना यथास्थान डालकर अपने हाथ से उसकी सलवटें मलकर ठीक कर दीं । अपनी यह पोल खुलते देखकर मन में ग्लानि हो उठी मेरे । बाबा जी भी शायद मेरे मनोभावों को पढ़कर कुछ चोट-सी खा गये ।

कुछ देर बाद मैं भी पहुँच गया वहीं । तब श्री सिद्धी माँ ने मुझे बुलाकर कहा- मुकुन्दा, जब महाराज जी तेरे घर से आये तो सीधे हमारे (श्री माँ और जीवन्ती माँ के) कमरे में जोर से दरवाजा खोल घुसते ही बच्चों की तरह प्रफुल्लता से बोले- “तुझे नहीं मालूम ? मुकुन्दा नई नई रजाइयाँ-नये नये गद्दे नई नई रजाइयाँ-नये नये गद्दे !!" (और भी क्या क्या कहा मेरे बचपने को देख, नहीं मालूम ।) के घर।

अगले वर्ष मुझे प्रमोशन का कुछ एरियर मिला । मैंने तीन नये गद्दे और तीन रज़ाइयाँ बना डालीं । उस वर्ष जब बाबा जी आये तो मैंने अपने बचपने में चारपाई पर दो नये गद्दे बिछा उनके ऊपर पुन: (बिना) चादर के) एक रजाई और बिछा दी । फिर एक रजाई गोल लपेट गाव तकिया-सा बना दिया और एक रजाई ओढ़ने को भी रख दी ! (अब हँसी) आती है अपनी इस करतूत पर 1) बाबा जी ने बातें करते करते इन सभी का भी निरीक्षण कर डाला । परन्तु उस दिन अधिक न ठहरे - न मालूम क्या बेचैनी व्याप गई उनके मन में कि पूजा-अर्चना-आरती प्रसाद के बाद तुरन्त भाग लिये दादा के घर को ।

कुछ देर बाद मैं भी पहुँच गया वहीं । तब श्री सिद्धी माँ ने मुझे बुलाकर कहा- मुकुन्दा, जब महाराज जी तेरे घर से आये तो सीधे हमारे (श्री माँ और जीवन्ती माँ के) कमरे में जोर से दरवाजा खोल घुसते ही बच्चों की तरह प्रफुल्लता से बोले- “तुझे नहीं मालूम ? मुकुन्दा नई नई रजाइयाँ-नये नये गद्दे नई नई रजाइयाँ-नये नये गद्दे !!" (और भी क्या क्या कहा मेरे बचपने को देख, नहीं मालूम ।) के घर।

सुनकर मेरी आँखे भर आई । जिस विभूति को जब-तब राजसी रहनी प्राप्त होती रहती थी, वह आज अपने एक दीन-हीन चरणाश्रित के घर केवल मामूली स्तर की नई रजाइयाँ-गद्दे देखकर ही बच्चों की तरह प्रफुल्लित-आल्हादित हो श्री माँ को यह सब बताने दौड़ पड़ा !! (श्री माँ के अलावा महाराज जी के इस वात्सल्य-भाव को दूसरा समझ भी कौन सकता था ?)

मुझे विगत वर्ष की लीला याद हो आई। तब जो चोट लगी थी मेरे अन्तर में, और मेरे भगवान को भी, उस पर आज मलहम लग गया। कोई चमत्कार नहीं, और कोई बड़ी देन भी नहीं यह महाप्रभु की – परन्तु उनके इसी प्रेम, इसी वात्सल्य ने ही हमें जीत लिया था जन्म जन्मान्तर के लिये ।

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