नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: कैंची धाम के एक जर्जर भवन की रक्षा महाराज जी करते रहे
श्री धाम कैंची के आश्रम क्षेत्र में गोविन्द कुटी नाम का दुमंजिला भवन वर्ष १९६३-६४ में ही बन चुका था । मात्र चूने की चिनाई से बने इस भवन में ऊपर के हॉलनुमा कमरे में कैंची में कार्यरत सेवादार रहते थे तथा नीचे के दो तीन खण्डों में जमादार, चौकीदार, (और बाद में एक अनाथ हरिजन महिला-पनुली) एवं जानवर रहते थे ।
ऊपर टीन के चादरों की छत थी तथा ऊपरी मंजिल में प्रवेश हेतु पहाड़ से लगा लकड़ी का एक मोटा-चौड़ा तख्ता बिछा था प्रवेश द्वार तक पुल की भाँति । सेवादार रात को (और दोपहर में भी विश्राम के समय) खूब धमाचौकड़ी मचाते थे हॉल के भीतर ।
वर्ष १९८६ में इस पुरानी जीर्ण-शीर्ण हो चुकी गोविन्द कुटी के स्थान पर एक पक्के ६ कमरों वाली इमारत गोविन्द कुटी ही के नाम से निर्मित कराने की योजना बनी जिस हेतु माँ-महाराज के प्रति समर्पित कुछ भक्तों ने भरपूर योगदान दिया।
परन्तु जब पुरानी कुटी को हटाने के लिये सम्बल-फावड़ा आदि लेकर कार्य प्रारम्भ हुआ तो कुछ ही प्रयास के बाद पूरी की पूरी इमारत हरहरा कर बैठ गई !! जीर्ण हो चुकी धन्नियाँ बल्लियाँ-छत-दीवारें स्वतः बिखर गईं !!
(सोचा तो यही गया था कि १०-१५ दिन तो लग ही जायेंगे इस कुटी को गिराने में ।) भवन के इस तरह सहसा बैठ जाने पर भी किसी को भी चोट न आने दी बाबा जी ने। इतने वर्षों से जीर्ण-शीर्ण हो चुकी उन बल्लियों-धन्नियों-दीवारों को बाबा जी ने अपने स्टाफ के आवास की अवधि में रोके रखा उनकी रक्षा करते !!