नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: महाराज जी का विचार और हनुमान जी स्वयं धम्म से कूद कर छत को फाड़ते हुए नीचे आ गये
इलाहाबाद में राम बाग नामक स्थान में स्थापित एक काफी पुराना हुनमान विग्रह है जिसकी बहुत बड़ी मान्यता है । इन हनुमान जी का पुराना मंदिर दुमंजिले पर बना था । ऊपर चढ़ने को १७-१८ सीढ़ियाँ थीं। बड़े बूढ़ों, महिलाओं एवं बच्चों को ऊपर-नीचे चढ़ने-उतरने में काफी कष्ट होता था विशेषकर मंगलवार की भीड़ में, जिस हेतु ऊपर प्रांगण भी सीमित क्षेत्र का ही था । यही अनुभव श्री माँ को भी हुआ जब वे महाराज जी के साथ वहाँ दर्शनों को गई थीं ।
तब उन्होंने यह बात बाबा जी से भी कह दी (बड़े-बूढ़ों, महिलाओं, अपंगों तथा बच्चों के कष्ट के बारे में ।) महाप्रभु ने इसके निराकरण की मंशा बना ली । पुराना मंदिर जीर्ण-शीर्ण अवस्था को प्राप्त हो ही चला था । ट्रस्टियों ने इसके जीर्णोद्धार का निर्णय ले लिया था । महाराज जी चर्चलेन (इलाहाबाद) में दादा के घर पधारे थे ।
मंदिर में ऊपर चढ़कर महाराज जी कुछ देर हनुमान जी के सामने बैठे रहे।
मंदिर के दो ट्रस्टी, श्री आर० एन० मिश्रा तथा श्री भार्गव बाबा जी के दर्शनों को वहाँ आ गये । बातों बातों में (प्रभु-प्रेरित) मंदिर के जीर्णोद्धार का प्रसंग भी उठ गया महाराज जी ने बड़ी सरलता से (बिना अपनी राय पर जोर दिये) कहा, “जनता को ऊपर चढ़ने में तकलीफ होती है । हनुमान जी को नीचे (एक मंजिले पर) ले आओ ।”
परन्तु दोनों ट्रस्टी बाबा जी की बात पर सहमत न हुए और बोले, “बहुत पुराना मंदिर है, महाराज । इसका रूप बदलने में जनता को अच्छा न लगेगा, और दूसरे ट्रस्टी भी राजी न होंगे। अब तो जीर्णोद्धार का पूरा प्लान भी बन चुका है । आप भी एक बार आकर स्वयं देख लें ।” महाराज जी उस वक्त कुछ न बोले ।
सन्ध्या समय वे लोग गाड़ी लेकर आ भी गये। मिश्रा जी से पुरानी पहचान थी मेरी मोहल्ले तथा सत्संग के कारण सो मुझे भी गाड़ी में जगह मिल गई । मंदिर में ऊपर चढ़कर महाराज जी कुछ देर हनुमान जी के सामने बैठे रहे।
पता नहीं उस बीच महाराज जी ने हनुमान जी से क्या कहा कि जीर्णोद्धार कार्यों के मध्य ही एक रात हनुमान जी स्वयं धम्म से कूद कर छत को फाड़ते हुए १५-१६ फीट नीचे आ गये, मय सिंहासन के !! विग्रह में न कोई टूट, न फूट !! अन्ततोगत्वा जब मंदिर का पुननिर्माण हुआ तो हनुमान जी नीचे ही प्रस्थापित हो गये !! उनके सामने का दर्शन-प्रांगण क्षेत्र भी स्वतः बड़ा हो गया ।
श्री माँ की इच्छा एवं महाराज जी की मनसा कैसे पूरी न होती। (मुकुन्दा)