नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ:  महाराज जी के दरबार में हास-परिहास, सीख उक्त दृष्टान्तों की भरमार

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: महाराज जी के दरबार में हास-परिहास, सीख उक्त दृष्टान्तों की भरमार

महाराज जी के इर्द-गिर्द भक्त समुदाय एवं दर्शनार्थियों का समूह कभी बड़ा तो कभी छोटा एकत्रित होता रहता था। न तो बाबा जी अपने भक्तों के बिना अधिक देर तक रह पाते, और न भक्तों को ही बाबा जी महाराज का सान्निध्य पाये बिना चैन मिल पाता। समूह के बीच में बैठे या फिर कभी कुछ उच्चासन ग्रहण किये बाबा जी पर ही सभी का ध्यान केन्द्रित रहता । इस शोभा को हमने दरबार की संज्ञा दे डाली थी, जिसमें बाबा जी सबकी सुनते भी रहते, और (अधिकतर) अपनी ही कहते रहते कभी विनोद-युक्त उक्तियों के रूप में तो कभी आज्ञा-डाँट-फटकार के रूप में, और कभी सीख युक्त दृष्टान्तों के रूप में ।

अक्सर दरबार विनोद-प्रिय बाबा जी की उक्तियाँ सुनकर अथवा हास-परिहास युक्त लीलाओं के कारण हँसी के ठहाकों से गूँजता रहता । साथ में कल्याणमयी लीलायें भी चलती रहती थीं बाबा जी की। ऐसी ही लीलाओं के माध्यम से तथा अपने अलौकिक व्यक्तित्व के प्रभाव में डुबोकर अनेक प्रकार की विषमताओं, समस्याओं तथा आपदाओं से त्रस्त उपस्थित जनता को इन सबसे दूर ले जाकर महाराज जी उनके मन में उन क्षणों में नैसर्गिक आनन्द की अनुभूति कराते हुए एक नवजीवन, एक नवीन स्फूर्ति प्रदान करते रहते। सब कुछ भूलकर सभी बाबा जी की इन लीलाओं में डूबे आनन्द लेते रहते थे ।

दरबार में, अन्यथा भी, चर्चा का विषय कुछ भी हो सकता था - राजनैतिक, सामाजिक, आर्थिक समस्यायें, अफसरशाही या धर्माधिकारियों अथवा धर्मावलम्बियों में उपजी विकृतियाँ आदि आदि । मुख्य उद्देश्य इन चर्चाओं के मध्य भी सूक्त-रूप में अथवा दृष्टान्त-रूप में सीख देना ही होता ।

और एक ही तमाशा देखने को मिलता था हर दरबार में सबके मध्य अपना अलौकिक व्यक्तित्व लिये केवल एक ही पुरुष दृष्टिगोचर होता धोती पहिने, कम्बल (या चादर) में लिपटे बाबा जी महाराज ! और दरबार में उपस्थित सभी अन्य केवल याचक, या फिर भक्ति-भाव, दास-भाव में ओत-प्रोत परिकर अथवा राधा भाव में बड़े प्रणव के पुजारी।

इन दरबारों में बाबा जी की अलौकिकता पूर्ण एक विशिष्टता यह भी देखने को मिलती थी कि उतनी भीड़ के मध्य भी यदि बाबा जी किसी से, केवल उसके लिये ही कुछ कहते होते. निर्देश रूप में अथवा निजी गुप्त समस्या के निराकरण हेतु, आदि तो उनकी वह बात केवल वही व्यक्ति सुन पाता. सभी अन्य केवल मुँह ताक़ते रह जाते !!

ऐसे बहुत से दरबार देखे दादा के घर, अपने घर, अन्य भक्तों के घर, सड़कों के किनारे खुले मैदान में वृन्दावन आश्रम में, कैंचीधाम में, आदि आदि । दरबारे आम भी देखा, दरबारे खास भी । उपस्थित भक्तों-दर्शनार्थियों में सभी श्रेणी के व्यक्ति होते थे उप-राष्ट्रपति, भावी राष्ट्रपति, गवर्नर, (केन्द्रीय अथवा राज्य के) मंत्रीगण, प्रान्तों के मुख्यमंत्री, कमिश्नर, कलेक्टर, पुलिस एवं जंगलात के चीफ राष्ट्रपति, (आई० जी० डी० आई० जी०) तथा उनके मातहत अफसरान, विभिन्न विभागों के डाइरेक्टर व उनके मातहत, मिलिटरी के बड़े बड़े ओहदेदार लखपती-करोड़पति, उद्योगपति, विदेशी आदि आदि, और साथ में होती दीन-हीन आतुर, कर्म और प्रारब्ध से अभिशप्त एवं पीड़ित जनता, सामान्य स्तर के पुरुष एवं माइयाँ और हर अवस्था की युवा, अधेड, वृद्धा, यदा-कदा बड़े बड़े सिद्ध महात्मा, जोगी, साधू, ब्रह्मचारी, योगी, तपसी, ज्ञानी, प्रबुद्ध, शिक्षाविद, साहित्यिक विभूतियाँ, कवि आदि भी इन दरबारों में बाबा जी के दर्शन हेतु आ पहुँचते । परन्तु विशिष्टता यह थी कि हर स्तर के, हर श्रेणी के दर्शनार्थी को यथायोग्य आदर, सम्मान एवं व्यवहार मिलता था बाबा जी से 'जथा जोग मिले सबहिं कृपाला ।'

केवल सरकार का मुखारबिंद, उनकी मुद्रायें निर्निमेष दृष्टि से निहारते रहने अथवा उनकी अनहद वाणी सुनने के सिवा अन्य कोई हरकत करने की शक्ति भी तो न होती किसी में बिना सरकार की - इच्छा के !! नाम से नहीं, काम से नहीं, चाम से नहीं केवल अपने भगवद-स्वरूप की अलौकिकता, अपने अवतार की पूर्णता लिये महादानी, गरीबनेवाज, शाहंशाहों के शाहंशाह ('जाहि न चाहिय कबहुँ कछु' वाले पूर्ण रूपेण निःस्पृह-निरपेक्ष) बाबा जी महाराज के समक्ष सभी तो दीन-हीन થે - मात्र याचक |

जैसा कि पूर्व में निवेदन किया जा चुका है ऐसे आम दरबारों में हास-परिहास, गंभीर विवेचन आदि के मध्य महाराज जी की संकट मोचन लीलाएँ भी स्वतः चलती रहती थीं जिनके लिए ही, वस्तुतः, ये दरबार हुआ करते थे। इन्हीं के मध्य दुख-सुख भी सुने जाते थे, उनका निराकरण भी होता रहता, सीखें भी दें दी जाती स्पष्ट रूप या तो में दृष्टान्तों के माध्यम से । और यदि याचक को बाबा जी महाराज से अपनी समस्या, व्यथा, अपनी अपनी आर्त पुकार एकांत में ही सुनानी होती तो उसके मन की जानकर) उसे अलग कमरे में या एकांत में भी बुला लिया जाता। सर्वज्ञ, सर्वसमर्थ, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापी बाबा जी द्वारा जनता एवं भक्तों की सांसारिक एवं अन्य दुःख-सुख की बातें सुनते भान होता था.

'वेद वचन मुनि मन अगम, ते प्रभु करुना ऐन । वचन किरातन्ह के सुनत, जिमि पितु बालक बैन ।।'

वैसे तो बाबा जी महाराज जी के सम्मुख पहुँच जाने पर ही सारे दुःख, सारी समस्यायें-शंकायें, समस्त विपदायें स्वतः ही तिरोहित हो जाती थीं बाकी केवल लीला मात्र होती । बिना कोई निवेदन पाये भी बाबा जी महाराज याचक के मन की जान उसकी विपदाओं को दूर कर देते थे। ऐसा होता था उनका दरबार, उनके अलौकिक दर्शन का प्रभाव | (उनके प्रत्यक्ष दर्शन की यही अलौकिक प्राप्ति अब उनकी मूर्तियों, उनकी फोटो छबियों द्वारा तथा उनके आश्रमों के प्रसाद से प्राप्त हो जाती है ।)

दिन भर विभिन्न प्रकार के व्यक्तियों के सत-असत भावों की टक्कर सहन करने के उपरान्त स्वयँ को और सेवक भक्तों को भी विश्राम की भी आवश्यकता हो जाती थी, और तब लगता था दरबारे खास केवल अन्तरंगों के साथ घुल-मिल कर बैठकर, जहाँ तरह-तरह के हास-परिहास के साथ बाबा जी अपने इन अन्तरंग सेवक-भक्तों को भी विश्राम प्रदान कर उनका भी श्रम हर लेते थे। ऐसे दरबारों में केवल भाव की सहजता ही अपनी मुख्य भूमिका अदा करती थी, और बाबा जी महाराज एवं •परिकरों के मध्य संकोच नाम की कोई वस्तु शेष नहीं रह जाती थी यहाँ स्वयं ही सखी अथवा सखा भाव के प्रतीक बन जाते थे, और महाराज अपने परिकरों, सेवक-भक्तों को भी इसी भाव में डुबोकर उन्हें महारास की-सी अनुभूति करा पूर्ण रूपेण तृप्त करते रहते थे।

-- मुकुन्दा

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