नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: भक्त के स्मरण करते ही कान में दवा का नाम फुसफुसाया और पति की प्राण रक्षा करी!
श्यामा के पति श्री दिवाकर पंत जी मरणांतक स्थिति में पहुँच चुके थे अपनी लम्बी बीमारी झेलते हुए । जीवन की आशा छोड़ चुके थे डाक्टर भी और घर वाले भी । वैसे भी अल्मोड़ा में ऐसी बीमारी के विशेषज्ञ थे ही नहीं । जवान श्यामा के जीवन की सबसे कठिन घडी थी यह ।
ऐसे में वह केवल महाराज जी का स्मरण कर सकती थी और उसने वही किया कातर-आर्त होकर । तभी उसके कान में महाराज जी की वाणी सुनाई दी, "इसे कोरोमिन पिला दे ।" श्यामा ने आव देखा न ताव. कोरोमिन की शीशी ढूँढ (मात्रा आदि के बिना ज्ञान के ही) उसे पूरी उडेल दी दिवाकर जी के मुँह में !!
कोरोमिन का मुँह में जाना था कि थोड़ी ही देर में मृत-प्राय पंत जी बिस्तरे में बहुत बैचेन हो उठे लगा उनकी हालत और भी खराब हो गई है और अब तो मृत्यु निश्चित है । अपनी करनी देख श्यामा तो वैसे ही अधमरी हो चुकी थी, उस पर घर वालों ने उसे बुरा-भला कह कर और भी त्रस्त कर दिया ।
परन्तु कुछ देर बाद ही दिवाकर जी के ठंडे पड़ गये शरीर में ताप आने लगा, हृदय की गति ठीक हो गई और नब्ज सुचारु रूप से चलने लगी । उन्हें अब बेहोशी की नहीं, शान्ति-प्रद नींद आ गई । सुबह डाक्टर आया तो उसने पूरे हाल जान कर यही कहा, "दवा बिल्कुल ठीक थी, उसी की आवश्यकता भी थी और उसी ने इनकी प्राण रक्षा कर दी !!” श्यामा के सुहाग की रक्षा ही नहीं कर दी बाबा जी ने, उसके ऊपर आता कलंक भी धो दिया !!