नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: पानी को ही मनसा-सिद्ध बाबा जी महाराज ने घी बना दिया
और तभी पुनः भीषण रूप की वर्षा आरम्भ हो गई । सब काम पुनः ठप पड़ गया । तब बाबा की अपनी कुटी से निकले हो काली भूरी जल भरी घटाओं से भरे आकाश की ओर देखते हुए अपने एक भक्त से बोले, “पूरन, बड़ी उग्र है, बड़ी उग्र है।"
(सम्भवतः इशारा पास की श्मशान भूमि से लगे मंदिर की शीतला देवी की ओर था और ऊपर देखे देखे दोनों हाथों से अपने विशाल वक्ष से कम्बल हटा के कूच गर्जन के साथ बोले, पवन तनय बल पवन समाना ।
और देखते देखते तेज हवायें बादलों को उड़ा ले गई, वर्षा थम गई, आसमान साफ हो गया नीचे से कनस्तरों में पर्याप्त जल भी इकट्ठा कर लिया गया । तदुपरान्त भण्डारे हेतु प्रसाद बनना प्रारम्भ हो गया । यद्यपि प्रसाद प्रचुर मात्रा में बनता रहा दिन-रात परन्तु भण्डारी के दिन इतनी अधिक संख्या में स्त्री-पुरुष, बाल-वृद्ध, युवक-युवती प्रसाद पाने आये कि भण्डारे के दिन शाम तक भी प्रसाद का बनाते रहना आवश्यक हो गया ।
इस बीच घी चुकने लगा था । बाबा जी तक सूचना पहुँच । तब वे तनिक कृत्रिम क्रोध से कुछ तेज आवाज में बोले, "कैसे खल्म ही गया घी? जाओ, वहाँ देखो, पानी के कनस्तरों के बीच घी छुपा रखा है किसी ने ।” और जब खोज हुई तो वहाँ घी भी मिल गया ।। पानी को ही मनसा-सिद्ध बाबा जी महाराज ने घी बना दिया - अपनी शक्ति को जनसाधारण से गुप्त रखने हेतु घी छुपाने का दोषारोपण-नाटक कर !!
(अनन्त कथामृत के सम्पादित अंश)