नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: आटे में वृद्धि कर भक्त की लाज बचायी

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: आटे में वृद्धि कर भक्त की लाज बचायी

बाबा जी महाराज एलेनगंज (इलाहाबाद में) मेरे घर अपने १३-१४ परिकरों के साथ पधारे एक दिन । आते ही बोले, “सबको प्रसाद खिलाओ।” पूजाघर में ही महाराज जी बैठते थे और दरवाजे से लगा (बाहर आँगन की तरफ) रसोईधर था । उनका यह आगमन पूर्व नियोजित न था ।

पत्नी रसोई में प्रसाद बनाने में व्यस्त हो गईं और मैं बाबा जी की सेवा में उनके पास बैठ गया । मैं निश्चिन्त था कि सब काम हो ही रहा है। इस बीच ३-४ बार पत्नी ने मुझे (कुमाउँनी भाषा में) 'कुछ सुनने' को बुलाया, परन्तु जितनी बार उठ कर उनके पास जाने की मैंने चेष्टा की, बाबा जी “तुम कहाँ जा रहे हो, बैठो” कहकर मेरा हाथ पकड़कर बैठा लेते और कुछ वार्ता छेड़ देते । साथ में बाबा जी वहीं से कहते रहे पत्नी से, ‘जल्दी करो ।

'तभी एक बार दादा, जो वहीं पत्नी के पास खड़े थे (कि प्रसाद तैयार हो जाये तो महाराज जी के पास ले जायें) जोर से बोले, “ये क्या कर रहे हैं बाबा ? अभी रमा ने हाथ जला लिया था अपना ।” तब बाबा जी हँस कर बोले, “अच्छा, अच्छा, बनाने दो ।”

(बाद में पता चला कि बाबा जी की 'जल्दी, जल्दी' में रमा तवे में रोटी पड़ी समझ कर उसे उलटने के लिये खाली गरम तवे में ही हाथ डालने जा रही थीं कि दादा ने “ये क्या कर रही हो” कहकर उनका हाथ पकड़ बाबा जी से उक्त बात कही थी । साथ में रमा मस्तिष्क में घुमड़ती किसी और बात से भी, जिसका रहस्य बाद में खुला, बुरी तरह घबरा चुकी थी।)

प्रसाद बनता रहा और सबको बँटता रहा। बाबा जी अपनी थाली से भी खाते खाते दूसरों को भी रोटियाँ देते जा रहे थे, खासकर कन्हैया लाल जी (अब दिवंगत) को । प्रसाद पूरा हुआ । बाबा जी उठकर चले तो अन्य सब भी साथ चले ।

तभी मैं भी रसोईघर में पहुँचा कि प्रसाद पाकर बाबा जी के साथ चलूँ । पत्नी ने रोष से कहा, "कितना बुलाया तुम्हें कि नीचे चक्की से आटा ले आओगे पर तुमने मेरी सुनी ही नहीं । कुल आधा सेर आटा होगा मेरे पास और इतने लोग थे खाने वाले । घबराहट में गरम खाली तवे में ही हाथ देने जा रही थी मैं कि दादा ने हाथ पकड़ लिया ।

अन्ना-पन्नू (मेरे लड़के) भी स्कूल चले गये थे, नहीं तो उन्हीं से मंगा लेती।” उस वक्त तो कुछ समझ में नहीं आया । बाबा जी की थाली में से बची एक रोटी में से आधी स्वयँ पाकर और आधी पत्नी के लिये (प्रसाद रूप) छोड़ मैं भाग लिया । परन्तु रात को पूरी लीला के विवेचन के बाद यही समझ पाये हम कि बाबा जी ही हमारी लाज बचाने को अपना खेल कर गये हमारे अनजाने ही आटे में वृद्धि कर !!

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