नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: हत्यारे से सब क़बूलवाया...मैं सबकी एक एक सांस गिनता हूँ!
इलाहाबाद में महाराज जी के पास दो व्यक्ति आये जिनमें एक मे वकीली काला कोट पहिन रखा था, दूसरे ने सादे कपड़े । बाबा जी ने उन्हें अपने सामने पाकर काला कोट पहिने व्यक्ति से कहा, "तू तो वकील नहीं है ।" उसने हामी भर दी और फिर दूसरे से कहा, "वकील तो तू है। क्यों आये हो ?" तब वकील बोला, "बाबा, इसको कत्ल के केस में फँसा दिया गया है और पुलिस इसका पीछा कर रही है ।"
इस पर बाबा जी ने काले कोट वाले से पूछा, "क्या तूने कत्ल नहीं किया ?” उसने सूक्ष्म-सा उत्तर दिया, "नहीं बाबा ।” महाराज जी ने अबकी जरा तेज आवाज में पूछा, “क्या तेरा हाथ नहीं था कत्ल में ?" उसने सिर हिला कर हामी भर दी । बाबा जी आर्त हो बोले, "वह व्यक्ति तो बहुत सीधा था । क्यों मरवाया उसे तूने ?" "बाबा, वह मेरी राह का रोड़ा बन गया था ।"
परन्तु कानून के शिकंजे से मुक्ति ? बाबा जी ने वकील से पूछा, किसकी अदालत में है मुकद्दमा ?" एक मुसलमान जज का नाम जानने पर बोले, “जाओ, सब ठीक हो जायेगा । दोनों प्रणाम कर चले गये । (अलौकिक यथार्थ से अनूदित)
(शरणांगत को कैसे तज सकते थे बाबा जी ? परन्तु यहाँ इस लीला में एक तो बाबा जी ने उनके छद्मवेश का पर्दा सबके सामने फाश कर दिया, फिर उस व्यक्ति द्वारा किये गये अपराध को उसी के मुँह से स्वीकार करवा लिया सबके सामने उसे उसका अपराध-बोध करवाते, जिसके कारण वह ग्लानि से अत्यंत लज्जित हो गया, और अन्त में, सब उपस्थित जनता को भी स्पष्ट रूप से बता दिया मैं सब कुछ जानता हूँ, जान लेता हूँ, मुझसे कुछ नहीं छिपा है, और न कोई कुछ छिपा सकता है । कहते भी रहते थे, मैं सबकी एक एक सांस गिनता हूँ!