नीब करोली बाबा की अनंत कथाएँ: भक्त से हनुमान जी के लिए सवा मन लड्डू बनवाए और प्रसाद स्वरूप भक्त को दी खुद की अपनी दुकान
बाबा जी कब, किस पर कैसी दया कर दे, कुछ कहा नही जा सकता ! दया पात्र लाला रामकिशन (हल्द्वानी) बताते है : मेरी माली हालत बहुत खराब थी ! काम धन्धा कुछ नही था ! बडे भाई की दुकान पर मैं उनके कर्मचारी की हैसियत से काम करता था ! बडे भाई के के साथ ही एक बार मैं कैंची धाम गया ! बाबा ने मुझसे कहा , "मैं तुझसे जो माँगूँगा, लायेगा ?" मैंने कहा "अगर हिम्मत हुई तो ज़रूर लाऊँगा !"
तब बाबा ने कहा "देख सवा मन देसी घी के लड्डू अपने हाथ से बनाकर लाना हनुमान जी के लिये ! बोल लायेगा ?" मैं मन ही मन बोल उठा "अरे ये क्या कह दिया आपने, मेरे पास तो सवा किलो आटा भी अपना नही !". फिर भी मेरे मुख से निकल गया, "अच्छा महाराजजी !" और वापस हल्द्वानी आ गये !
कराया तो सब कुछ बाबा ने ही, दो तीन हफ़्तों में मैंने सवा मन लड्डू अपने बाथ से तैयार कर लिये ! उन्हें लेकर बाबा जी के पास हाजिर हुआ !बाबा ने लड्डुओं का भोग लगवाकर मेरे हाथ से ही सबको प्रसाद बँटवाया !
इसके बाद मैं एक बार फिर कैंची गया ! वहाँ भण्डारा चल रहा था ! मैंने भी सेवा की इच्छा की तो बाबा जी बोले , "यहाँ नही तू अपनी दुकान खोल !" मैंने कहा,"बाबा मैं तो पागल हूँ ! दुकान कैसे करूँगा ! तब बाबा बोले, "देख, एक तू पागल और एक मैं पागल हूँ ! जा अपना काम शुरू कर !" और मुझे गीता की एक पुस्तक देते हुए कहा, "अपनी घरवाली को दे देना ! कहना, पढ़ा करे !" न मालूम क्या अर्थ था इसका !
बाबा जी ही जाने कि कैसे कैसे, क्या क्या, कहाँ कहाँ से हो गया, पर उनके चमत्कार स्वरूप से ही आज मेरे पास एक बडी दुकान ( स्टैण्डर्ड स्वीट हाउस ) है ! और जिस हैसियत से मैं ( कर्मचारी ) से मैं स्वंय काम करता था, उस हैसियत के दस कर्मचारी आज मेरी दुकान पर काम करते है ! बाबा जी की दया ही दया है ! सब बदल गया उनकी कृपा से !
जय गुरूदेव
अनंत कथामृत